भाजपा से संबंधित जो खुलासे हो रहे हैं, वे निश्चय ही देश की इस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के लिए शर्मिंदा होने का सबब है। खुलासे तो कांग्रेस को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। 2008 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सतीश शर्मा के एक सहयोगी द्वारा एक अमेरिकी राजनयिक हो करोड़ो रुपए की राशि दिखाकर उसे अजित सिंह और उनके सांसदों को खरीदने के काम में लाने की बात करना निश्चय ही कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी का कारण होना चाहिए। पर इस मामले में दो छोटे लोग शामिल हैं, पर भाजपा मामले में तो दो बड़े नेताओं के नाम सामने आए हैं।
एक नाम तो खुद भाजपा के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी का है, जो यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि उनकी सरकार आने पर अमेरिका के साथ भारत के हुए परमाणु करार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विपक्ष में रहका उस करार का विरोध करना और सरकार में आकर उसका समर्थक हो जाने की बात करना किसी भी पार्टी के दोहरे चेहरे को दिखाता है और इस चेहरे को यदि आडवाणी के आइने में देखा जाए तो फिर कैसा लगेगा।
आडचाणी द्वारा इस तरह की बात करने के पहले ही उनकी पार्टी के प्रवक्ता भी अमेरिकी राजनयिक से कहते हुए दिखाई देते हैं कि अमेरिका से गहराते संबंधों के खिलाफ उनकी पार्टी के प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया जाय, क्योंकि वह प्रस्ताव लोगों को दिखाने के लिए है। इस तरह की दोमुही बातें कहना किसी भी पार्टी को शोभा नहीं देता। यह तो जनता को मूर्ख बनाने वाली बात हुई और पार्टी प्रवस्ता अमेरिका को साफ साफ कहना चाहते हैं कि वे देश की जनता को मूर्ख बनाने के लिए अमेरिका विरोधी प्रस्ताव पास कर रहे हैं।
हद तो राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने भी कर दी। उन्होंने भाजपा की राजनीति के केन्द्र बिन्दु रहे हिन्दुत्व को ही अवसरवाद की राजनीति बता दिया। उन्होंने अमेरिकी राजनयिक को कहा कि हिन्दुत्व उनकी पार्टी के लिए प्रतिबद्धता का मामला नहीं, बल्कि अवसरवाद का मामला है। इसके नाम पर वे लोगों को समर्थन हासिल करते हैं। यह वोट पाने का जरिया है, न कि इसके पीछे हिन्दुओं के हितों के लिए लड़ने की उनकी प्रतिद्धता है। वे यह भी कहते दिखाई पड़ रहे हैं कि पाकिस्तान से रिश्तों में कुछ सुधार आने के बाद उनका हिन्दुवाद कमजोर हुआ है। वे यह भी कहते हैं कि यदि पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी संसद हमले जैसा कोई और हमला भारत में करता है तो उसके बाद उनके हिन्दुत्व की राजनीति को चार चांद लग जाएगा।
इससे ज्यादा घिनौनी बात कोई राजनेता नहीं कर सकता। आप अपनी राजनीति के लिए आतंकवादियों की हिंसक गतिविधियों पर आश्रित हैं। यानी आप बाट जोह रहे हैं कि कब पाकिस्तान द्वारा संरक्षित आतंकवादी भारत में आतंकी हमला करे और हिन्दुत्व का उभार लाकर आप राजनीति की अवसरवादी रोटियां सेकें।
लेकिन जो कुछ अमेरिका के गुप्त केबल संदेशों के खुलासे से सामने आ रहा है, उस तरह के आरोप भाजपा पर निष्पक्ष विश्लेषक पहले से ही लगाते रहे हैं। भाजपा ने राममंदिर का इस्तेमाल सत्ता में आने के लिए किया था और सत्ता में आने के बाद वह हिन्दु हितों की बात भूल गए, इस तरह का आरोप तो अनेक ऐसे लोग भी उस पर लगा रहे हैं, जो राम मंदिर आांदोलन के समय उनके साथ आ गए थे। इसलिए अमेरिकी केबल से जो भी खुलासे हो रहे हैं, वे किसी को चौंकाते नहीं, बल्कि थोड़ा अचरज पैदा करते हैं कि अपनी इस अवसरवादी राजनीति के बारे मंे भाजपा नेता बेझिझक विदेशियांे से चर्चा की कर लेते हैं।
अरुण जेटली तो खुद को अमेरिका प्रेमी बताते बताते यह भी कह डालते हैं कि उनके अमेरिका में 5 घर है और उनकी अनेक बहनें और भतीजियां अमेरिकी की नागरिक हो गई हैं। भाजपा नेताओ ने अमेरिकी राजनयिको से बातें की, वे निश्चय ही बहुत ही शर्मनाक है और यदि आज भाजपा को इसके लिए शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ रहा है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। भाजपा के अन्य नेता अरुण जेटली द्वारा व्यक्त की गई राय पर जिस तरह से चुप हैं, उससे यही पता चलता है कि पार्टी के अंदर इस बात को सभी लोग पहले से ही भली भांति जानते हैं कि हिन्दुत्व उनके लिए महज दिखावा और वोट पाने का साधन है, न कि किसी प्रकार की प्रतिद्धता।
सीपीएम नेता प्रकाश करात के बारे में अपनी राय भी अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी भेजी थी। उसकी श्री करात के बारे में बनी राय सही नहीं साबित हुई। दूतावास का मानना था कि श्री करात आने वाले दिनों में देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे, लेकिन वैसा कुछ हुआ नही। उनके नेतृत्व में उनकी पार्टी चुनाव हार गई है और देश की राजनीति में पहले वाली भूमिका खो चुकी है। (संवाद)
विकीलीक्स से भाजपा हो रही है शर्मिंदा
करात के बारे में अमेरिका का आकलन गलत
अमूल्य गांगुली - 2011-03-31 09:17
अमेरिकी दूतावास से भेजे गए गुप्त केबल संदेश लगभग सही साबित हो रहे हैं। उनके सच होने पर किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। अमेरिकी राजनयिकों ने भारत के नेताओं से बातचीत करने के बाद ही बातचीत से संबंधित बातें और उनसे उपजी अपनी राय को अपने विदेश विभाग को अमेरिका भेजा था। उन्होंने भाजपा और सीपीएम से जुड़े संदेश भी भेजे थे, जिनका अब खुलासा हो रहा है।