शुक्रवार, 1 दिसम्बर, 2006
मरते बच्चे, दोषी माताएं
मानसिकता, नीतियां और कार्यक्रम बदलने ही होंगे
ज्ञान पाठक
भारत की माताएं यदि सावधानी बरततीं और अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान करातीं तो प्रत्येक साल मरने वाले 24 लाख बच्चों में से 15 प्रति शत की जानें बच जातीं, विशेषकर यदि स्तनपान कराने के सामान्य व्यवहार को वांछित 90 प्रति शत तक के स्तर तक ले जाया जाता।
ऐसा मानना है स्टेट ऑफ द वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग, इंडिया रिपोर्ट कार्ड – 2006 का। इंटरनेशनल बेबी फुड एक्शन नेटवर्क, एशिया पैसिफिक ने यह रपट हाल में ही जारी की है। रपट का कहना है कि दक्षिण एशिया में प्रत्येक साल पांच वर्ष से नीचे के 37 लाख बच्चे मौत को प्राप्त होते हैं। इनमें से 22 लाख बच्चे अपना पहला जन्म दिन भी नहीं देख पाते। इन आंकड़ों में अजन्मे बच्चों की गर्भ में ही मौत और जन्म के बाद उनकी किन्हीं कारणों से हत्या स्वाभाविक रुप से शामिल नहीं है।
यह रपट इस बात का खुलासा करती है कि 11 लाख से अधिक बच्चे अपने जन्म के एक माह के भीतर मर जाते हैं। पांच लाख बच्चों की मौत दो से 12 महीने के बीच हो जाती है। यह इस तथ्य के बावजूद जारी है कि 22 प्रति शत नवजात शिशुओं को यदि जन्म के एक घंटे के अंदर स्तन पान करा दिया जाये तो उन्हें बचाया जा सकता है।
भारत की माताएं कितनी लापरवाह और फिसड्डी हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2005 – 06 में एकत्र किये गये आंकड़ों के अनुसार मात्र 15.8 प्रति शत माताएं ही अपने बच्चे के जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराती हुई पायी गयीं। नवजात शिशुओं के जन्म के पहले छह माह के अंदर विशेष तौर पर माताओं के दूध की जरुरत होती है लेकिन दुर्भाग्य यह कि सिर्फ 46.9 प्रति शत माताएं ही ऐसा करती हैं। छह माह से कम उम्र के शिशुओं को 13.7 प्रति शत माताएं सिर्फ बोतलों में दूध भरकर पिलाती हैं, जबकि छह से नौ माह के बच्चों के 35 प्रति शत माताएं पोषाहार पर जीवित रखने की कोशिश करती हैं। शिशुओं को 17 महीने तक स्तन पान की जरुरत है और इस मामले में औसत भारतीय माताओं का रिकार्ड कुछ अच्छा है। यहां की माताएं 25.4 महीने तक स्तनपान कराती हैं।
भारत दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा और सबसे विकसित होने का दंभ भर सकता है लेकिन बच्चों की देखभाल और स्तनपान कराने के मामले में इसे 150 में से सिर्फ 68 अंक हासिल हुए। इस तरह भारत दक्षिण एशिया के आठ देशों में छठे स्थान पर रहा। इससे नीचे सिर्फ अफगानिस्तान और बर्मा को रखा गया है, क्योंकि वहां के आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हो पाये थे। इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति श्रीलंका की है। वह पहले स्थान पर है। दूसरे स्थान पर हैं बांगलादेश की माताएं। मालदीव तीसरे, पाकिस्तान चौथे, नेपाल पांचवें, स्थान पर हैं।
मातृत्व संरक्षण के मामले में भारत को दस में से शून्य अंक हासिल हुआ। मातृत्व संरक्षण में मातृत्व छुट्टियों, काम के समय बच्चे को दूध पिलाने की छूट और उस दौरान का वेतन भी उन्हें देना, कार्य के स्थलों पर स्तनपान कराने और बच्चों की देखभाल करने की सुविधाएं देना, और इस मामले में अंरर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रस्ताव को लागू करने को शामिल किया गया था।
“आपातकालीन स्थितियों में नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने” के मामले में भी भारत को शून्य स्थान मिला। इस मामले में भारत के लोग कतई चिंतित नहीं हैं और नीतियों तथा कार्यक्रमों में भी इनका समावेश नहीं किया गया है। जागरुकता के लिए भी कोई प्रबंध नहीं किया गया है तथा “सेवा में” और “सेवा के बाहर” आपातकालीन प्रशिक्षण के प्रबंध की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
बच्चों की देखभाल के जिन अन्य क्षेत्रों में खतरनाक स्थितियां हैं उनमें स्वास्थ्य और पोषाहार भी शामिल है। इसमें भारत को दस में से मात्र 3.5 अंक मिले। स्तनपान और एच आई वी की मरीज माताओं में जागरुकता और देखभाल के मामले में भी मात्र तीन अंक मिले।
एक और दुर्भाग्यजनक बात यह कि बच्चों के लिए मित्रवत अस्पतालों की भी भारत में भारी कमी है। इस मामले में भारत को मात्र 4.5 अंक मिले हैं। बच्चों के लिए मित्रवत अस्पतालों की भारी कमी तो है ही, समुचित प्रशिक्षण व्यवस्था का अभाव और प्रशिक्षित मानवबल की भी भारी कमी है।
“जानकारी देकर सहयोग करने” के मामले में भी भारत के लोग फिसड्डी हैं। इस मामले में भारत को मात्र दस में से चार अंक ही मिल पाये। राष्ट्रीय नीति, कार्यक्रम और समन्वय”, “सामुदायिक पहुंच”, और “मॉनिटरिंग तथा मूल्यांकन” के मामलों में भारत ने पांच-पांच अंक हासिल किये।
साक्ष्य इस बात को स्पष्ट करते हैं कि अधिकांश नवजात शिशु पोषकता की कमी से मरते हैं। इसे कम करने के लिए हर स्तर पर समुचित व्यवस्था करने की आवश्यकता है और प्रथमिकता के तौर पर रणनीतियां बनानी ही होंगी। चूंकि अधिकाश मौतें जन्म के पहले बर्ष में ही हो जाती हैं इसलिए आपातकालीन व्यवस्था और रणनीति आवश्यक है।
ऐसा इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कानून के अनुसार भी अजन्मे या जन्मे बच्चे को जीने का मौलिक अधिकार है। जानबूझकर या लापरवाही से किसी को मार डालना भी आपराधिक मानवबध ही है। नीतियां और कार्यक्रम बनाते समय भारत को इसका भी ख्याल रखना होगा और बनाये गये कार्यक्रमों को तन, मन, धन से लागू भी करना होगा।#
ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से
मरते बच्चे, दोषी माताएं
System Administrator - 2007-10-20 05:26
भारत की माताएं यदि सावधानी बरततीं और अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान करातीं तो प्रत्येक साल मरने वाले 24 लाख बच्चों में से 15 प्रति शत की जानें बच जातीं, विशेषकर यदि स्तनपान कराने के सामान्य व्यवहार को वांछित 90 प्रति शत तक के स्तर तक ले जाया जाता।