कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे का दावा है कि इसका फायदा उसे मिलेगा, क्योंकि जब जब भारी मतदान हुए हैं हमेशा फायदा उसे ही हुआ है। कांग्रेस चाहे जो दावा कर ले, तथ्य कुछ और कहते हैं। 1967 के बाद सबसे ज्यादा मतदान 1980 के विधानसभा चुनाव में हुआ था। उस साल मतदान का प्रतिशत 80 तक पहुंच गया था। उस साल भी कांग्रेस दावा कर रही थी कि सफलता उसके मोर्चे को ही मिलेगी। पर जब जब चुनाव परिणाम आया तो जीत सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की हुई थी।

सच्चाई यह है कि ज्यादा मतदान होने का लाभ क्षेत्र के आधार पर दोनों मोर्चे को मिल रहा है। कुछ जिलों में ज्यादा मतदान का फायदा सीपीएम के मोर्चे को तो कुछ जिलों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे को मिल रहा है। दो एक जिले ऐसे भी हैं जहां के बारे मंे फिलहाल कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि फायदा किसे मिलेगा।

तिरुअनंदपुरम और पथनमथिता जिलों में कम मतदान हुए। इसका फायदा वाम लोकतांत्रिक मोर्चे को हो सकता है। इसका कारण यह है कि इन जिलों मंे चर्च समूहों ने मतदान में उत्साह से हिस्सा नहीं लिया। वे कांग्रेस के मतदाता हुआ करते थे। इस बार उनके उत्साह में कमी का नुकसान कांग्रेस और उसकी साथी पार्टियों को हो सकता है।

इस बार चुनाव में मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन भी एक बहुत बड़ा फैक्टर था। वाममोर्चा कभी भी किसी नेता पर आश्रित होकर चुनाव नहीं लड़ता है, लेकिन इस बार देखा गया कि मुख्यमंत्री की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी। चुनाव प्रचार में उनके निजी करिश्में को साफ देखा जा सकता था। उनकी सभाओं में जितनी भीड़ उमड़ रही थी, उससे बहुत कम सोनिया गांधी और राहुल की सभा में भीड़ दिखाई पड़ रही थी। सच कहा जाय तो सोनिया और राहुल की अनेक सभाएं काफी फीकी रही, जबकि मुख्यमंत्री की सभी सभाएं सुपरहिठ रहीं।

यदि मतदान का प्रतिशत बढ़ने का संबंध वीएस की सभाओं में उमड़ी भीड़ से है, तो यह कांग्रेस के लिए बुरी खबर हो सकती है। कांग्रेस इस बार अपनी सरकार को सुनिश्चित मानकर चल रही है। पिछले कई दशक से केरल में सीपीएम और कांग्रेस के मुख्यमंत्री बारी बारी से बनते रहे हैं। इस बार बारी कांग्रेस की है। पिछले लोकसभा और उसके बाद हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में कांग्रेसी मोर्चे ने भारी सफलता हासिल की थी। उन सफलताओं को भी कांग्रेस अपनी निश्चित जीत की भूमिका मान रही थी। पर यदि वीएस की सभाओं में उमड़ी भीड़ ने मतदान प्रतिशत को बढ़ा दिया है, तो कांग्रेस को भारी निराशा का सामना भी करना पड़ सकता है। (संवाद)