घोटालों का कोई राजनैतिक रंग नहीं होता। जो भी सत्ता में होते हैं, घोटालों में लिप्त हो जाते हैं। घोटालों को वे अपना अधिकार मानते हैं, क्योंकि वे घोटाला करने की स्थिति में हैं, चाहे वे जिस पार्टी के हो। केन्द्र में हम कांग्रेस और डीएमके के भ्रष्टाचार की बात सुन रहे हैं। 2 जी घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों के घोटालों की चर्चा जोर शोर से हो रही है। लेकिन जो काम केन्द्र में कांग्रेस और डीएमके के लोग कर रहे हैं, वही काम पंजाब में सत्तारूढ़ अकाली दल और भाजपा के नेता कर रहे हैं।

अकाली दल के मुख्य संसदीय सचिव सोहन सिंह ठंडाल को अदालत ने सजा सुनाई है तो भाजपा के मुख्य संसदीय सचिव को सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार किया है। राज खुराना घूस मामले में पंजाब सरकार के दो मंत्रियों का नाम भी आ रहा है। उनमें से एक तो भाजपा के सबसे वरिष्ठ मंत्री और सरकार मे तीसरे नंबर की हस्ती माने जाने वाले मनोरंजन कालिया भी हैं।

पंजाब एक और मामले में अन्य राज्यों से अलग है। यहां एक ऐसे मंत्री भी हैं, जो अदालत से सजा पा चुके हैं और यहां के मुख्यमंत्री के खिलाफ भी मुकदमे चल रहे हैं। अब यदि पावरफुल राजनीतिज्ञ के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है तो कोई आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि उनके खिलाफ मुकदमों को अपने तार्किक मुकाम पर पहुंचना ही नहीं हैं।

किसी के खिलाफ आरोप सामने आने पर सबसे पहले तो पुलिस उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी करती है। यदि जनता और अदालत के दबाव में मुकदमा दर्ज भी होता है, तो दबाव डालकर या लोभ दिखाकर गवाहों को प्रभावित कर लिया जाता है। उसके बाद मुकदमों को सालों साल तक चलते रहने का इंतजाम कर लिया जाता है। इस बीच सरकार बदल जाती है। जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले चल रहे होते हैं, वे सत्ता में आ जाते हैं। फिर तो उनके खिलाफ मामला ही शांत हो जाता है।

2002 और 2007 के बीच राज्य मंे कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सरकार थी। उस दौरान प्रकाश सिंह बादल, उनकी पत्नी, सुरिन्दर कौर और बेटे सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज हुआ था। जब बादल की सरका बनी तो इसने अमरिन्दर सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज कर दिया।

बादल की सरकार आने के बाद उनके खिलाफ सारे मुकदमो के नतीजे आए और वे सबमें बरी हो गए। इसका कारण यह है कि उनके खिलाफ सभ गवाह मुकर गए। सभी सबूत नष्ट कर दिए गए। सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों ने उनके खिलाफ मुकदमों को ही बहुत कमजोर कर दिया। जाहिर है, उनका पूरा परिवार बच गया।

बादल सरकार के तहत ही निगरानी ब्यूरो ने कैप्टन अमरिन्दर सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज किया है। अगले साल विधानसभा के चुनाव फिर से होने वाले हैं। उसमें यदि कांग्रेस की सरकार आ जाती है, तो उन मुकदमों का क्या हश्र होगा, इसके बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

कांग्रेस में भ्रष्ट लोगों की कमी नहीं है। भ्रष्टाचार के तरह तरह के रूपों का इजाद करने वाले लोगों की भी वहां कमी नहीं है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामलों को दबाने के मामले में पंजाब में भाजपा और अकाली दल ने कांग्रेस के नेताओं को भी मात दे दी है। विधानसभा अध्यक्ष निर्मल सिंह कहलों के खिलाफ नौकरियों में घूस का मामला सामने आया था। मांग हुई कि उसकी सीबीआई से जांच हो, लेकिन पंजाब सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। पंजाब के एक नेता जगदीश सहनी ने अपनी ही पार्टी के नेता लक्ष्मी कांता चावला पर भ्रष्टाचार के आरोपा लगाए, लेकिन उस आरोप को भी पंजाब की सरकार नजरअंदाज कर गई।

अन्ना हजारे के सुर में सुर मिलाते हुए एक बार मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए। लेकिन अन्ना के एक अन्य बयान का वे भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए सहारा ले रहे हैं। अन्ना ने कहा था कि भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता हे, पर पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। इस बयान से पंजाब के भ्रष्ट नेता राहत महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि जबतक किसी को सजा नहीं मिल जाती, तबतक वह निर्दोष है, लेकिन जब एक भ्रष्ट मंत्री सजा पा चुका है, तो फिर उसे क्यों पार्टी से नहीं निकाला जा रहा?

उच्च पदों पर भ्रष्टाचार के बड़े मामलों के पीछे कार्पोरेट सेक्टर का प्रभाव है। कार्पोरेट सेक्टर व्सवस्था को भ्रष्ट बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। (संवाद)