राज्य में राजनैतिक अस्थिरता के आसार भी पैदा हो रहे हैं। कडप्पा लोकसभा सीट से जगनमोहन रेड्डी की जीत और पुलिवेंडुला विधानसभा सीट से उनकी मां राज्यलक्ष्मी की जीत कांग्रेस की समस्या और भी बढ़ाने वाली साबित होगी। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होगा। जगन के पार्टी से बाहर हो जाने के बाद भी उनके समर्थक फिलहाल कांग्रेस में बने हुए हैं और राज्य सरकार के बहुमत स्वरूप पर अब तक कोई आंच नहीं आई हैं, लेकिज जगन की जीत के साथ ही कांग्रेस की अंदरूनी राजनैतिक हलचल तेज हो जाएगी।

अलग तेंलगना राज्य के लिए आंदोलन कभी भी तूफानी रूप ले सकता है। अलग राज्य के समर्थक विधानसभा चुनावों के समाप्त होने और उनके नतीजे आने का इंतजार कर रहे थे। अब वे केन्द्र सरकार से कहेंगे कि जल्द से जल्द राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दो। हालांकि केन्द्र अलग राज्य के गठन के प्रति उत्साह नहीं दिखाएगा।

केन्द्र सरका ने तेलंगना राज्य के मसले पर श्रीकृष्ण आयोग का गठन किया था। उस आयोग ने अपनी अनुशंसाएं भी दे दी हैं, जिनके तहत एक से ज्यादा विकल्प बता दिए गए हैं। उसकी रिपोर्ट आए हुए भी 5 महीने से ज्यादा हो गए हैं। उसकी रिपोर्ट पर केन्द्रीय गुहमंत्रालय ने एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी। उस बैठक में आयोग की रिपोर्ट की प्रति सभी दलों के प्रतिनिधियों को दे दी गई थी। उसके बाद फिर उस पर कोई दूसरी बैछक नहीं हुई है। हालांकि किसी को उसके लिए किसी प्रकार की बैठक आयोजित करने की मांग भी नहीं है। तेलंगना राज्य के समर्थक अब किसी प्रकार की बैठक, बहस अथवा चर्चा नहीं चाहते। उन्हें बस अलग राज्य चाहिए।

लेकिन अलग राज्य सबको मजबूर नहीं हैं। तटीय आंध्र के लोग इसके सख्त खिलाफ हैं। रायलसीमा के लोग भी राज्य का बंटवारा नहीं चाहते। राज्य को बंटने से रोकने के लिए वे भी उसी तीव्रता का आंदोलन करने में सक्षम हैं, जिस तीव्रता का आंदोलन अलग राज्य के समर्थक करते हैं। इस तरह इस मसले पर दो विरोधी आंदोलनों का सामना करने में राज्य की सरकार अपने आपको निश्चय ही कमजोर स्थिति में पाएगी।

अलग राज्य के मसले पर राज्य की अधिकाश पार्टियों ने अपनी राय जाहिर कर दी है। लेतंबना राज्य समिति तो अलग राज्य के लिए बनी ही है, भाजपा, टीडीपी और वाम पार्टियों ने भी इसका समर्थन किया है। अब सिर्फ कांग्रेस को अपना रुख तय करना है, लेकिन कांग्रेस के अंदर इस मसले पर तीवग मतभेद है। पार्टी अलग राज्य के मसले पर पूरी तरह दो भागों में बंटी हुई है। जो तेलंगना इलाके के हैं, वे अलग राज्य की मांग करते हैं और जो अन्य इलाकेां के हैं, वे राज्य को एक रखना चाहते हैं।

केन्द्र सरकार राज्य को एक रखना चाहती है। वह अलग राज्य के मसले को एक खास किस्म से हल करना चाहती है, जिसके तहत उसे एक विशेष क्षेत्र का स्टैटस दिया जाएगा। उसकी यह इच्डा तभी पूरी होगी, जब उसके खुद के विधायक इस मसले पर सहमत हों। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। पार्टी के विधायक तेंलगना राज्य के या तो विराधी हैं या समर्थक। वे बीच का रास्ता अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं।

दोनों पक्ष इस कदर अपनी मांग पर अड़े हुए हैं कि वे मांग नहीं माने जाने पर वे विधानसभा से ही इस्तीफा दे देंगे। उनके वैसा करने पर कांग्रेस की किरण रेड्डी की सरकार अल्पमत में आ जाएगी। इससे तो राज्य की सरकार ही गिर जाएगी। राज्य सरकार के गिरने के साथ साथ राज्य में आंदोलन के कारण हिंसा पैदा होने का भी डर है।

केन्द्र सरकार को अंाध्र प्रदेश में विस्फोटक होने वाली स्थिति का अहसास है। केन्द्र सरकार ने पारा मिलिटरी बलों को भी सतर्क कर दिया है। वहां इन्हें भेजा जा सकता है। पर सवाल उठता है कि सेना की ताकत से इस तरह के आंदोलनों को दबा देना समस्या का समाधान नहीं है। (संवाद)