जयललिता और ममता दोनों के पास सरकार में रहने का अनुभव है। जया तो दो बार प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। ममता बनर्जी दो बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। हालांकि ममता के पास राज्य में सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है। आने वाले दिनों में उनकी प्रशासनिक क्षमता का पता चलेगा। सच कहा जाए तो उनके अपने राज्य पश्चिम बंगाल में उनकी सही चुनौतियों का समय अब शुरू हुआ है।

वैसे ममता बनर्जी ने शुरुआत अच्छी की है। उन्होंने कांग्रेस को भी सरकार में शामिल होने का न्यौता दिया। यदि वह चाहतीं, तो अपने बूते ही सरकार बना और चला सकती हैं, क्योकि उनकी पार्टी को विधानसभा में अकेले ही बहुमत प्राप्त है। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह उनकी समझदारी है, क्योकि उन्हें आने वाले दिनों में केन्द्र की सहायता की जरूरत पड़ती रहेगी, इसलि केन्द्र सरकार चला रही कांग्रेस से उनका संबंध लगातार अच्छा बना रहना उनके और उनके राज्य के हित में है।

उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से भी अपना बेहतर संबंध बना रखा है। श्री मुखर्जी केन्द्र सरकार में वित्त मंत्री हैं और राज्य के लिए आर्थिक पैकेज सुनिश्चित कराने मं वित्त मंत्री की भी भूमिका होती है। सुश्री बनर्जी ने श्री मुखर्जी के बेटे को भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने की इच्छा दिखाकर वित्त मंत्री से अपना संबंध और भी अच्छा कर लिया है।

विधानसभा चलाने के लिए उन्हें वाम दलों के सहयोग की भी जस्रत पड़ेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्षी सीपीएम के साथ उनका अब कैसा संबंध रहता हैं। प्रशासन में सीपीएम के कैडर भारी पैमाने में घुसे हुए हैं। वे उनसे कैसे निबटती है, यह देखना भी दिलचरूप होगा। ममता बनर्जी एक फायर ब्रांड नेता के रूप मे जानी जाती हैं। अपने विरोधियों का विरोध करना तो उन्हें आता है, ेलकिन सरकार चलाते हुए वे खुद विरोध का सामना किस प्रकार करती हैं, यह देखना दिलचरूप् होगा।

ममता बनर्जी के सामने प्रदेश की आर्थिक विकास की चुनौतियां हैं। राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ी हुई है। उसे ठीक करना उनके लिए बहुत मायने रखेगा, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती माओवादियों की तरफ से आएगी। माओवादी सीपीएम विरोध के कारण उनके साथ रहे हैं। उसके कारण उनको खासा राजनैतिक लाभ मिला है। अब देखना होगा कि वे माओवादियों के साथ कैसा संबेध रखती हैं।

जहां तक जयललिता का सवाल है, तो यह उनके लिए मुख्यमंत्री का तीसरा कार्यकाल होगा। उनके पास राज्य की सरकार चलाने का काफी अनुभव रहा है। वे एक मजबूत प्रशासक रही हैं, जो अपने राजनैतिक विरोधियों के साथ कड़ाई से पेश आती हैं। वे बदले की राजनीति करना भी जानती हैं। एक बार उन्होंने तो रातों रात ही करुणानिधि को घर से उठाकर जेल भिजवा दिया था। वैसे उनकी महत्वाकांक्षा देश के प्रधानमंत्री बनने की भी है। इसलिए उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में वाम मार्चे के नेताओं के अलावा भाजपा नेता व गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी आमंत्रित कर रखा था। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू भी उनके शपथग्रहण समारोह में उपस्थित थे। (संवाद)