पांच राज्यांे की चुनाव की खबरों के बीच भले वह सुर्खियांे से हट गया, पर पूरे प्रदेश में उसके बाद से कार्यकर्ताओं का धरना प्रदर्षन जारी है। वाकई राहुल का भट्टा परसौल पहुंचना महत्वपूर्ण था। अपनी गाड़ियों का काफिला छोड़कर हरियाणा के एक सामान्य कांग्रेस नेता की गाड़ी से आगे बढ़ना और फिर मोटरसाईकिल से ग्रेटर नोएडा के परसौल भट्टा व अन्य गांवों मंे जाकर लोगों से मिलना एवं अंततः भट्टा के पूर्व धरनास्थल पर बैठ जाना पुलिस की चाक चौबंद बंदोबस्त को देखते हुए हैरतअंगेज भी था। राहुल के वहां पहुंचने के बाद दूसरे दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाएं वस्तुतः उनके ऐसा न कर पाने की खीझ ही थी। उ. प्र. कांग्रेस में राहुल के भट्टा परसौल मिशन के बाद जैसा उत्साह देखा जा रहा है वह कुछ घंटे पहले तक मौजूद नहीं था। अगर तत्काल निर्मित हुए माहौल के आधार पर विचार किया जाए तो राहुल का वह कदम ऐसा करिश्मा दिखाई देगा जिसने एक साथ प्रदेश सरकार एवं अन्य राजनीतिक दलों को पटखनी देकर कांग्रेस मंे नवजीवन के संचार का आधार कायम कर दिया है। किंतु क्या यही सच भी है?
ध्यान रखने की बात है कि राहुल गांधी भट्टा परसौल तक वेश बदलकर नहीं पहुंचे, न उनके साथ जाने वाली प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी या दिग्विजय सिंह ही। सभी को टी. वी. कैमरे द्वारा मोटरसाइकिल पर सवार होकर चलते साफ देखा जा सकता था। सीधे दिल्ली से ग्रेटर नोएडा जाने की बजाय हरियाणा के पलवल होते हुए पहुंचने का मार्ग चुनने के पीछे यही संदेश देने का भाव हो सकता था कि उन्होंने तमाम घेरेबंदी को धत्ता बताया है। निश्चय ही कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों ने काफी सोच समझकर उनके वहां पहुंचने का कार्यक्रम तय किया था। जिस मोटरसाइकिल पर राहुल सवार थे उसे परसौल गांव का ही एक नवजवान चला रहा था। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि राहुल कई घंटों तक उन गांवों में घूमते लोगों से मिलते रहे और पीएसी या पुलिस के अधिकारियों ने उन्हें रोका नहीं। जो पुलिस दूसरे नेताओं को धारा 144 के आवरण में गांवों की सीमा तक नहीं जाने देने के लिए चौकस थी उसकी चौकसी राहुल के मामले में कहां चली गई? जरा सोचिए, राहुल के वहां पहुंचने की खबर के बाद श्रीप्रकाष जायसवाल, परवेज हाशमी, राजबब्बर...आदि नेता वहां कैसे आसानी से पहुंच गए? हालांकि अब मुख्यमंत्री मायावती ने दो पुलिस अधिकारियों को कम महत्व के विभाग में स्थानांतरण कर दिया है, लेकिन उन्होंने आरंभ में इसे ऐसे लिया मानो कोई सामान्य घटना हो। न किसी पुलिस अधिकारी को तत्काल चूक के लिए दंड न कोई बयान! क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? उल्टे प्रदेश के मुख्य सचिव ने सबडिविजनल मजिस्ट्रेट के माध्यम से राहुल गांधी से बातचीत की। कहा जा रहा है कि मुख्य सचिव ने उनसे वहां से चले जाने का अनुरोध किया और नहीं मानने पर निषेधाज्ञा के उल्लंघन (धारा 144) एवं शांति भंग करने (धारा 151) के आरोप में हिरासत में लेने की घोषणा की।
जाहिर है, कांग्रेस पार्टी भले राहुल गांधी को रॉबिनहुड साबित करे, पूरा घटनाक्रम ऐसेे प्रश्न पैदा करता है जिनका उत्तर नहीं मिलता। जो मायावती राहुल का तीखे व्यंग्यात्मक लहजे में उपहास उड़ातीं हैं उनने प्रतिक्रिया व्यक्त करने में एक दिन लगा दिया। रात में स्वयं जवाब देने की जगह अपने कैबिनेट सचिव शशांक शेखर को मैदान में उतारा। इससे क्या साबित होता है? नहीं भूलिए कि वह भाजपा द्वारा भट्टा परसौल कांड के विरुद्ध आयोजित बंद का दिवस था। राहुल के प्रवेश की गूंज मेें भाजपा का बंद कहां खो गया पता ही नहीं चला। क्या मायावती स्वयं चाहती थी कि भाजपा का बंद सुर्खियां न बने। बहरहाल, राहुल ने पूरे प्रदेश कांग्रेस को सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित कर दिया है। मिशन 2012 के पूर्व पार्टी के अंदर आलोड़न, अंगड़ाई तथा प्रदेश की जनता को आकर्षित करने के लिए मुद्दों एवं अभियान के लिए हाथ पैर मार रही पार्टी को इसमें उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। कांग्रेस द्वारा पूरे प्रदेश मंें धरना प्रदर्शन देखकर राहुल एवं कांग्रेस नेतृत्व का मन यकीनन बल्लियों उछल रहा होगा। हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगा कि कांग्रेस को 2012 के विधानसभा चुनाव में इसका लाभ मिलेगा। उस समय तक इस मुद्दे को गरमाए रखना आसान नहीं होगा। राहुल का किसानों के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात इस रणनीति का हिस्सा हो सकती है, पर कांग्रेस संगठन में अभी इतनी जीवतंता एवं सशक्तता नहीं है कि वह योजनाबद्ध तरीके से लड़ाई को लंबा ले चले।
वैसे किसानों की समस्याआंे, उद्योगांे, सड़कों या अन्य कारोबारों के लिए जमीनों का अधिग्रहण केवल उ. प्र. नहीं, पूरे देश में बड़ा मुद्दा बन चुका है, पर कांग्रेस इसे राजनीतिक आंदोलन का रूप नहीं दे पाएगी, क्योंकि अपने शासन वाले प्रदेशों में वह भी यही कर रही है। कांग्रेस कीे तीन मांगे हैं- भट्टा परसौल घटना की न्यायिक जांच की जाए, गिरफ्तार किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेकर उन्हें तुरत रिहा किया जाए एवं न्यायिक जांच होने तक जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया बंद की जाए। इन मांगों से किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। किंतु राहुल एवं कांग्रेस यमुना एक्सप्रेस वे ही नहीं, उसके दोनों ओर की संभावित परियोजनाओं, होटल, मॉल, मार्केट, टाउनशीप आदि के बारे मंें अपना मत साफ करे। ग्रामीण केवल अतिरिक्त मुआवजा नहीं मांग रहे, वे अतिरिक्त निजी परियोजनाओं के लिए जमीनों की बलि चढ़ने का भी विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस के लिए ऐसा करना संभव नहीं। उसकी सरकार होती तो वह भी ऐसा ही कर रही होती। आखिर जैतापुर में कांग्रेस क्या कर रही है? ध्यान रखिए कि राहुल गांधी ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती वे धरना समाप्त नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा हो गया।
राहुल अलीगढ़ के टप्पल भी गए थे। वहां मारे गए किसानों के परिवारों से मिलकर सांत्वना दी एवं संघर्ष में साथ खड़े होने की वैसी ही घोषणा की जैसी उन्होंने भट्टा में की। राहुल एवं कांग्रेस से पूछना चाहिए कि टप्पल मंें घोषणा के बाद उन्होंने क्या किया? अगर राहुल एवं कांग्रेस किसानों के इतने ही हितैशी हैं, वे चाहते हैं कि किसानों को जमीन का उचित मुआवजा मिले, रोजगार में उनका समायोजन हो तो 1894 के अधिग्रहण कानून को बदलकर समयानुकूल कानून लाने में इतना विलंब क्यों किया गया? सच यह है कि उ. प्र. सरकार इस समय जमीनों का सर्वाधिक मुआवजा दे रही है। हां, बाजार मूल्य को देखते हुए वह कम है। अधिग्रहण कानून में बदलाव मात्र समाधान नही है, पर केन्द्र ने किसानों के हक में संतुलित नीति बना दी होती तो उस मापदंड का पालन करना देश के लिए अपरिहार्य होता। तो इस हालात के लिए प्रदेश सरकार से कम जिम्मेवार केन्द्र की सरकार नहीं है? सबसे बड़ी बात कि 17 जनवरी से किसान वहां धरने पर बैठे थे, क्रमवार अनशन चल रहा था लेकिन राहुल गांधी एवं कांग्रेस का दिल 110 दिनों तक नहीं पिघला। कांग्रेस के पास इन सब बातों का क्या जवाब है? राहुल गांधी को रॉबिनहुड बनाने वाले कांग्रेसी अपने गिरेबान में झांके तो उनको अपने शीशे के घर का अहसास हो जाएगा। (संवाद)
राहुल गांधी भट्टा परसौल जाने से रॉबिनहुड नहीं हो गए
जिनके घर शीशे के बने होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते
अवधेश कुमार - 2011-05-21 12:02
भट्टा परसौल के कुछ किसानों के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद राहुल गांधी एवं मायावती व उनकी सरकार आमने-सामने आ गए हैं। हालांकि राहुल ऐसा न करते तो भी कांग्रेस उनको महिमामंडित कर ही रही थी। भट्टा परसौल और आसपास के गांवों में जाने के बाद से पार्टी कार्यकर्ताओं का एक वर्ग राहुल गांधी को रॉबिनहुड की उपाधि दे रहा है।