आज पेट्रोल पानी की तरह देश के करोड़ों लोगों के लिए आवश्यक आवश्यकता बन गया है। कीमतें बढ़ने पर भी उनका उपभोग आवश्यक है। आज जब महंगाई से थोड़ी सी राहत महसूस की जा रही थी और थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर तय होने वाली मुद्रास्फीति की दर दहाई अंक से नीचे उतर गई है, तो वैसी हालत में पेट्रोल की कीमतों का यह झटका लोगों की कमर तोड़ रहा है। आज हमारे देश में पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर की सीमा को छू रहा है, जो अमेरिका में तेल की कीमत से 20 रुपए प्रति लीटर से भी ज्यादा है। ंतेल कंपनियां कहती हैं कि वह पेट्रोल कीमत के इस स्तर पर भी घाटे में है। तो क्या उसे बताना नहीं चाहिए कि वह क्यों घाटे में है, जबकि अमेरिकी तेल कंपनियां इससे बहुत कम कीमत पर पेट्रोल बेचकर भी फायदे में है।
सवाल सिर्फ पेट्रोल का ही नहीं है। डीजल भी महंगा होने जा रहा है। पेट्रोल की कीमत तय करने का अधिकार तो सरकार ने तेल कंपनियों को दे दिया है, लेकिन डीजल, केरासन, रसोई गैस और सीएनजी गैस की कीमत खुद तय करती है। ये कंपनियां ज्यादातर सरकारी ही हैं, इसलिए पेट्रोल की कीमत तय करने के पहले उन्होंने भी सरकार अनुमति ले ली होगी। यही कारण है कि इन कंपनियों ने कीमत चुनाव के बाद ही बढ़ाई, ताकि केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टियों की चुनावी संभावना को कीमत में की गई वृद्धि प्रभावित नहीं कर सके।
अब केन्द्र सरकार डीजल की कीमत बढ़ाएगी। संकेत है कि वह भी 4 रुपए प्रति लीटर तक महंगा किया जा सकता है। डीजल का इस्तेमाल ज्यादातर माल ढोने वाली गाड़ियों में होता है। जाहिर है इसके महंगा होने का मतलब है कि माल भाड़़ा ज्यादा होना। उसके बाद तो सारी चीजें महंगी हो जाएंगी। दूध तो अभी महंगा किया गया है। यह और भी महंगा हो जाएगा। सब्जियां पहले से ही महंगी है। अब यह और भी महंगी हो जाएगी। अनाज भी महंगे होंगे। सच तो यह है कि डीजल की कीमत बढ़ने के साथ सबकुछ महंगा हो जाएगा।
सरकार एक तरफ तो महंगाई पर नियंत्रण करने की बात करती है और दूसरी तरफ ऐसे निर्णय लेती है, जिससे कीमत और भी बढ़ती हो। जाहिर है यह सुनने में बहुत अटपटा लगता है, लेकिन सच्चाई यही है। तेल उत्पादों की कीमतें कंपनियों को हो रहे घाटे के नाम पर बढ़ाई जाती है। कहा जाता है कि कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगा हो रहा है, इसलिए यहां भी उसके उत्पाद महंगे करने होंगे, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होता है तो यहां तेल उत्पाद सस्ते क्यों नहीं होते? तेल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत उस समय बढ़ाई है, जब कच्चा तेल सस्ता होकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में 99 डालर प्रति बैरल से भी नीचे हो गया था। गौरतलब है कि लीबिया में नाटों के हस्तक्षेप के बाद कच्चा तेल 120 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। जाहिर है, उस स्तर से कच्चे तेल की कीमत अभी काफी कम है, फिर भी पेट्रोल महंगा कर दिया गया।
बात डीजल तक ही सीमित नहीं है। सरकार रसोई गैस को भी महगी करने की बात कर रही है। वह संकेत दे रही है कि गैस सिलिंडर को 25 से 30 रुपए तक महंगा किया जा सकता है। जब दुनिया में कच्चा तेल सस्ता हो रहा हो उसी समय रसोई गैस की कीमत बढ़ाने का भी क्या मतलब है? सिर्फ घाटा घाटा कहने से तो लोग इसे सही नहीं मान सकते। महंगाई केन्द्र सरकार की नीतियों के कारण भी बढ़ती है। महंगाई पर नियंत्रण करना केन्द्र सरकार का काम है। उसके पास असीमित राजकोषीय अधिकार हैं, जिनका इस्तेमाल वह अपने लिए संसाधन जुटाने में करती है और उनके कारण भी कीमतें बढ़ती है। इसलिए कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए उसे यदि कहीं कहीं सब्सिडी देनी पड़ती है तो उसे कम करने के नाम पर महंगाई बढ़ाने के उसके निर्णय को उचित नहीं माना जा सकता।
केन्द्र सरकार तेल उत्पादों पर दी जा रही सब्सिडियों की चर्चा तो खूब करती है, लेकिन वह यह क्यों नहंी बताती कि कच्चे तेल और उसके उत्पादों से उसे कितना टैक्स मिलता है। सच तो यह है कि भारत में तेल उत्पादों और कच्चे तेल से जितने सरकारी राजस्व की उगाही होती है, उतना बहुत की कम देश में होता होगा। (संवाद)
पेट्रोल पर सब्सिडी की बातें तो बहुत होती हैं
सरकार बताए तेल से उसे कितना टैक्स मिलता है
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-05-23 10:05
पेट्रोल की कीमत 5 रुपए प्रति लीटर की दर से बढ़ाकर तेल कंपनियों ने एक नया रिकार्ड बना डाला है। अब तक कभी भी एक झटके में इसकी कीमत इतनी ज्यादा नहीं बढ़ाई गई थी। कंपनियों का इससे भी संतोष नहीं है। वह कह रही है कि कीमत में 10 रुपए प्रति लीटर और वृद्धि करने के बाद ही उनका पेट्रोल घाटा समाप्त होगा। जब से कंपनियों को कीमतें खुद तय करने का अधिकार मिला है, तब से वे 9 बार कीमतें बढ़ा चुकी हैं और बढ़ाने के बाद यह कहने में भी नहीं चुकती कि वह अभी भी लोगों से कम कीमत ही वसूल कर रही हैं।