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बंगाल ट्रैप में फंस चुके हैं मोदी

जितनी उछलकूद करेंगे, उतना ही निकलना मुश्किल होता जाएगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-07 09:51
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आप को इस कदर बंगाल में उलझा दिया है कि उससे बाहर निकलना उनके लिए कठिन साबित होता जा रहा है। जब देश भीषण आर्थिक बदहाली का सामना कर रहा था और कोरोना की दूसरी लहर के दौर से गुजर रहा था, तो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की जगह उन्होंने अपने आपको और अपनी सरकार को पूरी तरह पश्चिम बंगाल के चुनाव में झोंक दिया था और उसे लगभग जीवन और मरण का सवाल बना दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में 18 सीटें जीतने के बाद विधानसभा चुनाव भी जीत लेने की आकांक्षा कोई गलत आकांक्षा नहीं थी, लेकिन उसके लिए अपने आपको दांव पर लगा देने का उनका फैसला निश्चय ही गलत था।

वैक्सीन पर राजनीति

देश के नागरिक और राज्य सरकारें संकट में
अनिल जैन - 2021-06-05 11:52
दुनिया के तमाम देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी सरकार ने कोरोना की वैश्विक महामारी से निबटने के सिलसिले में हर फैसला अपने राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर और अपनी छवि चमकाने के मकसद से किया है। यही वजह है कि इस समय देश में चौतरफा हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, दवाओं को लेकर सरकारी विशेषज्ञों की तरफ से बनी भ्रम की स्थिति जरूरी दवाओं और ऑक्सीजन के अभाव में तो बड़ी संख्या में लोग मरे ही हैं और अभी भी मर रहे हैं। इसके साथ ही कोरोना वैक्सीनेशन का अभियान भी बुरी तरह लड़खड़ा गया है।

राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं लक्षद्वीप के लोग

देश में सभी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को उनके साथ खड़ा होना होगा
बिनॉय विश्वम - 2021-06-04 10:07
लक्षद्वीप, केरल तट के दक्षिण पश्चिम तट की ओर अरब सागर में स्थित छोटे द्वीपों का समूह भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है। उसके 36 द्वीपों में से केवल 11 बसे हुए हैं और कुल जनसंख्या लगभग 75,000 के आसपास अनुमानित है। लक्षद्वीप अपनी सुंदरता और शांति के लिए जाना जाता है। भूमि और उसके लोग शेष भारत के ध्यान में कभी नहीं आए क्योंकि उन्होंने स्वयं एक विनम्र और संतुष्ट जीवन का निर्माण किया। यह भारत का सबसे शांतिपूर्ण हिस्सा है जहां अपराध दर शून्य के करीब है।

मोदी की इच्छा के पंख होते तो बात अलग होती

कागज पर सब कुछ अच्छा है, लेकिन जमीन पर बड़ा शून्य
के रवींद्रन - 2021-06-03 13:28
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में कोविड मामलों के उपचार और प्रबंधन की स्थिति को केवल ‘राम भरोसे’ माना जा सकता है। सरकार ने इस अवलोकन के खिलाफ तुरंत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों को अव्यावहारिक आदेश जारी करने से रोकने के लिए एक आदेश जारी कर दिया। खैर, अदालत ने केवल तकनीकी अंतर किया, न कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा जो कुछ भी मतलब था उसके खिलाफ कुछ कहा। आपत्ति केवल आदेश जारी करने को लेकर थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टिप्पणियों को केवल ‘सलाह’ के रूप में लिया जाना चाहिए, न कि आदेश के रूप में।

पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांतजी शर्मा नहीं रहे

उनसे जुड़े कुछ मर्मस्पर्शी संस्मरण
एल. एस. हरदेनिया - 2021-06-02 16:15
लक्ष्मीकांत शर्मा नहीं रहे। दुनिया उनके बारे में जो भी सोचती हो, मेरे उनके संबंध में जो अनुभव हैं, उनके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि वे एक अत्यंत संवेदनशील इंसान थे। वैसे तो उनके बारे में मेरे बहुत से अनुभव हैं परंतु यहां आज उनमें से कुछ का उल्लेख करना चाहता हूं।

उत्तर प्रदेश में चुनावी संभावनाओं से घबरा रही है बीजेपी

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की पुरानी रणनीति 2022 में काम नहीं कर सकती है
अमूल्य गांगुली - 2021-06-01 16:09
भाजपा के विरोधियों ने चार राज्यों में से तीन - पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु - में विधानसभा चुनावों के अंतिम दौर में आसानी से भगवा पार्टी को पछाड़ दिया। यहां तक कि चौथे, असम में, उन्होंने सीटों के नहीं तो वोट शेयर के मामले में काफी अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि विपक्षी गठबंधन ने बीजेपी-असम गण परिषद के 44.4 फीसदी वोटों के मुकाबले 43.5 फीसदी वोट हासिल किए।

विपक्ष को एकजुट करने के लिए कांग्रेस का चाहिए कायाकल्प

मोदी के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों से बातचीत जरूरी
अशोक बी शर्मा - 2021-05-31 13:24
कोविड की दूसरी लहर ने मोदी सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. जनता में सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लेकिन वह खुशकिस्मत हैं कि उन्हें सरकार से मुकाबले के लिए कोई राष्ट्रीय विकल्प नहीं मिला। उन्हें क्षेत्रीय दलों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन क्षेत्रीय दलों का एक होना अभी बाकी है. क्षेत्रीय ताकतों को एकजुट करने वाला कौन है। जयप्रकाश नारायण या अन्ना हजारे के विपरीत, जिन्हें राष्ट्रीय नायकों के रूप में पेश किया गया था, ऐसा कोई व्यक्ति दृष्टि में नहीं है। अब इन क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर एकजुट करना अखिल भारतीय पार्टी पर निर्भर करता है। यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है, जिसकी अखिल भारतीय उपस्थिति है और संसद में सबसे बड़ा विपक्ष है, ऐसा करने के लिए। लेकिन ज्वलंत सवाल यह है कि क्या क्षेत्रीय ताकतें कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होने को तैयार हैं?

नरेंद्र मोदी शासन के तहत तबाही के दो साल

आगे भी अंधेरा ही दिख रहा है
सीताराम येचुरी - 2021-05-29 15:12
मोदी सरकार के दोबारा चुने जाने के बाद से इन दो वर्षों में नए जोश के साथ भारत को एक कठोर रूप से अपनी अवधारणा में बदलने की आरएसएस परियोजना की प्राप्ति के लिए गति को तेज किया गया। 1925 में इसकी स्थापना पर इसका हिन्दू राष्ट्र बनाना ही घोषित उद्देश्य था। सावरकर के हिंदुत्व के सिक्के को एक राजनीतिक परियोजना के रूप में हिंदू धर्म के साथ जोड़ा गया। 1939 में गोलवलकर द्वारा उन्नत इस परियोजना को प्राप्त करने के लिए एक संगठनात्मक संरचना के साथ वैचारिक निर्माण किया गया। भारतीय संविधान पर इस हमले की नींव आरएसएस की वह परियोजना है। धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक रिपब्लिकन संविधान के इस विनाश ने 2019 के चुनावों के बाद से एक उन्मादी गति प्राप्त कर ली है।

किसान आंदोलन पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट की हैरान करने वाली चुप्पी

आंदोलन के 6 महीने पूरे
अनिल जैन - 2021-05-28 12:19
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसानों के आंदोलन को छह महीने पूरे हो चुके हैं। यह आंदोलन न सिर्फ मोदी सरकार के कार्यकाल का बल्कि आजाद भारत का ऐसा सबसे बडा आंदोलन है जो इतने लंबे समय से जारी है। देश के कई राज्यों के किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर सर्दी, गरमी और बरसात झेलते हुए छह महीने से दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे हैं। इस दौरान आंदोलन में कई उतार-चढाव आए। आंदोलन के रूप और तेवर में भी बदलाव आते गए लेकिन यह आंदोलन आज भी जारी है। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण, गरमी की मार और खेती संबंधी जरूरी कामों में छोटे किसानों की व्यस्तता ने आंदोलन की धार को थोडा कमजोर किया है, लेकिन इस सबके बावजूद किसानों का हौंसला अभी टूटा नहीं है।

इस कोरोना संकट के काल में नेहरू क्यों याद आते हैं

अवैज्ञानिक सोच हमारे संकट को बढ़ाने का काम कर रहे हैं
एल. एस. हरदेनिया - 2021-05-27 12:10
27 मई को जवाहरलाल नेहरूजी की पुण्यतिथि थी। उनको स्मरण करते हुए हम कोरोना संकट के इस दौर में उनकी कमी बहुत खलती है। मेरी राय में जवाहरलाल नेहरू एक महान क्रांतिकारी, एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ, एक सक्षम प्रशासक तो थे ही परंतु इसके साथ ही वे वैज्ञानिक भी थे। उनकी स्पष्ट राय थी कि आम आदमी में वैज्ञानिक समझ पैदा करना आवश्यक है। ‘‘विज्ञान ही भूख, गरीबी, निरक्षरता, अस्वच्छता, अंधविश्वास और पुरानी दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति दिला सकता है।‘‘ यह महत्वपूर्ण संदेश पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दस वर्ष पूर्व दिए एक भाषण के दौरान दिया था।