दीनदयाल उपाध्याय और दलबदल
भाजपा ने अपने संस्थापक के निर्देशों का उल्लंघन किया है
2020-03-21 10:36
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दलबदल एक ऐसा संक्रामक रोग है जो हमारी संसदीय व्यवस्था को खोखला कर रहा है। इस रोग की गंभीरता को अन्य लोगों के अलावा जनसंघ के संस्थापक और भारतीय जनता पार्टी के लाखों सदस्यों के प्रेरणास्त्रोत दीनदयाल उपाध्याय ने भी समझा था। उन्हांेने 27 फरवरी 1961 को लिखे एक लेख में कहा था कि ‘‘प्रजातंत्र में एक से अधिक पार्टी होना स्वाभाविक है। इन पार्टियों को एक प्रकार के पंचशील को अपनाना चाहिए तभी स्वस्थ परंपराएं कायम हो सकेंगी। यदि वैचारिक और सैद्धांतिक आधार पर दलबदल होता है तो वह कुछ हद तक न्यायोचित माना जा सकता है। अन्य किसी भी आधार पर या कारण से होता है तो उसे उचित नहीं माना जा सकता। यदि ऐसी स्थिति हो कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिले या बहुत कम अंतर से बहुमत मिले और राजनैतिक दल सत्ता हथियाने के लिए अनैतिक तरीके अपनाकर बहुमत हासिल करने का प्रयास करें तो यह बहुत गलत होगा।