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गरीबों को मुफ्त अनाज देने से चुनाव जीतने की संभावना नहीं

बहुस्तरीय भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है भारतीय राशन प्रणाली
नन्तू बनर्जी - 2023-11-21 11:20
केन्द्र सरकार की ओर से 2020-21 में कोविड महामारी के दौरान लंबी लॉकडाऊन अवधि में देश में गरीबों और निम्न आय वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना बहुत सोच-समझकर किया गया था। इस सुविधा को दो बार बढ़ाया गया था, आखिरी बार 1 जनवरी, 2023 को एक वर्ष की अवधि के लिए। पिछले विस्तार का संबंध संभवतः नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, और कर्नाटक में चुनावों से अधिक था। अब वर्तमान पांच राज्यों के चुनाव के दौरान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की कि देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी अर्थात् 80 करोड़ से अधिक लोगों के लिए लगभग सालाना 15,000 करोड़ रुपये के सरकारी खर्च पर मुफ्त राशन (खाद्यान्न) योजना फिर से पांच साल के लिए, यानी 2028 तक बढ़ा दी जायेगी।

मुद्रास्फीति नियंत्रण में है लेकिन रिजर्व बैंक को सतर्क रहना चाहिए

चुनावी खर्च और वैश्विक प्रतिकूलताओं से इसे गंभीर खतरा
अंजन रॉय - 2023-11-18 10:45
हाल ही में कीमतों में गिरावट का रुझान दिखा है। क्या इसके परिणामस्वरूप भारतीय रिजर्व बैंक को अपना मुद्रास्फीति विरोधी रुख ढीला करना चाहिए? एक विचार यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक को अब मुद्रास्फीति पर अपना रुख बदलने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए और अगले साल की शुरुआत से ब्याज की दरों को कम करना शुरू करना चाहिए।

कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस दोनों में नेतृत्व का संकट

भाजपा की येदियुरप्पा को मनाने की कोशिश, कांग्रेस में सिद्दा, डीकेएस गुटों में भिड़ंत
अरुण श्रीवास्तव - 2023-11-17 12:17
कर्नाटक भाजपा में हाल के घटनाक्रम इस बात का खुलासे करते हैं कि अमित शाह, अपनी तथाकथित 'चाणक्य' प्रसिद्धि के बावजूद, पार्टी मामलों पर पकड़ खो चुके हैं और उनके पास विचारों की भी कमी है। केवल एक सप्ताह पहले, भाजपा नेतृत्व ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के छोटे बेटे, पहली बार विधायक बने बी वाई विजयेंद्र को राज्य इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया। इसे पुराने लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को एक बार फिर से पार्टी की कमान सौंपने की एक घुमावदार चाल के रूप में देखा जा रहा है, जिन्हें इस साल मई में राज्य चुनाव के ठीक बीच में मोदी और शाह ने किनारा लगा दिया था ताकि पार्टी को लिंगायत ताकतवर नेता की छाया से दूर ले जाया जा सके।

चुनाव प्रचार के दूसरे चरण में कांग्रेस की बढ़त बरकरार

भाजपा की छत्तीसगढ़ में सुधार तथा मध्य प्रदेश में सरकार बचाने की पुरजोर कोशिश
डॉ. ज्ञान पाठक - 2023-11-13 11:48
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार चरम पर है और मुख्य प्रतियोगियों - कांग्रेस और भाजपा - के लिए प्रचार के केवल दो दिन बचे हैं। फिलहाल दोनों राज्यों में कांग्रेस अपनी बढ़त बनाये हुए नजर आ रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है, वहीं मध्य प्रदेश में वह अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रही है।

राज्यपालों की मनमानी शक्तियाँ समाप्त होनी चाहिए

नरेंद्र मोदी सरकार के तहत विधायिका की उपेक्षा कर रहे हैं राज्यपाल
पी. सुधीर - 2023-11-11 12:03
जिन तरीकों से भारतीय संघवाद और निर्वाचित राज्य विधानमंडलों की शक्तियों को कमजोर किया जा रहा है, उनमें से एक यह है कि राज्यपाल विधानमंडलों द्वारा पारित विधेयकों पर उनके संबंध में कोई निर्णय लिए बिना ही बैठे रहते हैं।
पंडित नेहरू के जन्मदिन 14 नवम्बर पर विशेष

अतीत के गौरव के प्रशंसक पर अंध-भक्ति के विरोधी थे नेहरू

धर्मनिरपेक्ष-वैज्ञानिक समझ पर निर्भर है आधुनिक भारत का उज्ज्वल भविष्य
एल. एस. हरदेनिया - 2023-11-10 10:43
पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में कुछ लोगों की यह धारणा है कि वे भले ही पैदा भारत में हुए हों, चिंतन और रहन-सहन से वे पूरी तरह यूरोपीय थे। नेहरू जी के बारे में इस तरह की गलत धारणा फैलाने में दक्षिणपंथी विचारों में विश्वास करने वाले संगठनों एवं समूहों की महत्वपूर्ण भूमिका है। दकियानूसी और हिंदुत्ववादी ताकतों ने इस तरह के भ्रम को विस्तार देने में कोई कसर नहीं उठा रखी है। यह बात पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस तरह का भ्रम अज्ञानता अथवा प्रायोजित प्रयासों पर आधारित है। ऐसे तत्व यदि नेहरू जी के विचारों का, उनकी पुस्तकों का, अध्ययन करते तो उनका यह भ्रम दूर हो सकता है।

आचार संहिता के बिना कार्य करती है लोक सभा आचार समिति

सांसद उन नियमों से पीछे हट रहे हैं जिनका उन्हें पालन करना चाहिए
नन्तू बनर्जी - 2023-11-10 10:40
यह अविश्वसनीय परन्तु सच है कि 21 अक्तूबर, 1951 और 21 फरवरी, 1952 के बीच देश में पहले आम चुनाव के बाद से लोकसभा के सीधे निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए कोई सूचीबद्ध 'आचार संहिता' नहीं है। हालांकि, विरोधाभासी रूप से, लोकसभा की एक नैतिक समिति है जिसके सदस्य उन नियमों या कृत्यों के बारे में अंधेरे में रहते हैं जो स्पष्ट रूप से उनके लिए अनैतिक बताये गये हैं। लोकसभा में पहली आचार समिति का गठन 16 मई 2000 को तेलुगु देशम पार्टी के दिवंगत जीएमसी बालयोगी द्वारा किया गया था। लोकसभा को अभी भी अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता लाना बाकी है और सदस्यों के व्यावसायिक हित की घोषणा की व्यवस्था भी करनी है जैसा कि राज्यसभा सदस्यों के लिए पहले से ही मौजूद है।

जाति आधारित सामाजिक-आर्थिक सर्वे से नीतीश ने आरएसएस-मोदी को पछाड़ा

संघ के हिंदू वोट ध्रुवीकरण के फॉर्मूले को बिगाड़ सकता है यह रणनीतिक कदम
अरुण श्रीवास्तव - 2023-11-09 10:43
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि नरेंद्र मोदी उनकी राजनीतिक कौशल और प्रशासनिक कुशलता की बराबरी नहीं कर सकते। हालांकि मोदी के मध्यम वर्ग के भक्त दावा करते हैं कि उन्हें पूरी समझ है कि अपने प्रतिद्वंद्वी को कब और कैसे पछाड़ना है। मंगलवार को जाति जनगणना के सामाजिक-आर्थिक आंकड़े जारी करने का नीतीश का कदम स्पष्ट संदेश देता है कि उनके पास और भी बहुत कुछ है जिनमें सामाजिक समावेशन के साथ-साथ राजनीतिक समय दोनों के महत्व की गहरी समझ शामिल है।

नारायण मूर्ति का सप्ताह में 70 घंटे काम का प्रस्ताव स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा

विश्व भर में डॉक्टरों के अनुसार प्रतिदिन छह घंटे का काम सर्वोत्तम विकल्प
डॉ अरुण मित्रा - 2023-11-08 11:02
ऐसा लगता है कि इंफोसिस के अध्यक्ष श्री एन आर नारायण मूर्ति उस लोकप्रिय कविता को भूल गये हैं जो हमें स्कूल के दिनों में पढ़ायी गयी थी। कविता का शीर्षक था - 'द क्राई ऑफ द चिल्ड्रेन', और कवयित्री थीं एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग। वह इंग्लैंड में चिमनी साफ करने वाले बच्चों की स्थिति को समर्पित थी जिन्हें खतरनाक उद्योगों में लंबे समय तक काम करवाया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप अनेक गंभीर बीमारियों की चपेट में आने और अंततः जल्दी ही मर जाने की संभावनाएं थीं। कविता बच्चों पर उनके नियोक्ताओं द्वारा थोपे गये शारीरिक श्रम की जांच करती है। यह अगस्त 1843 में ब्लैकवुड पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

गुमनाम राजनीतिक चंदा भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा

केंद्र द्वारा अनुमति दिये गये चुनावी बांड से याराना पूंजीवाद को बढ़ावा
नन्तू बनर्जी - 2023-11-07 11:25
राज्य और आम चुनाव लड़ने में मदद के लिए राजनीतिक दलों को गुप्त व्यापारिक दान में वृद्धि से भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचने का खतरा है। ऐसी व्यवस्था दान देने वालों की गुमनामी की रक्षा करता है। यदि फ्रांस, जो दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्रों में से एक है, व्यापारिक निगमों द्वारा राजनीतिक चंदे पर प्रतिबंध लगा सकता है, तो भारत में राजनीतिक दलों को अज्ञात व्यापारिक दिग्गजों से चुनावी धन जुटाने की आवश्यकता क्यों है?