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ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से

आरक्षण, राजनीति, अन्याय ...

System Administrator - 2007-10-20 07:17 UTC
सर्वोच्च न्यायालय की एक खंड पीठ के कल के आदेश से यह साफ हो गया है कि इस अध्ययन सत्र से देश के उच्च शिक्षा के संस्थानों में अन्य पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रति शत आरक्षण लागू नहीं हो पायेगा। यह अलग बात है कि अब तक केन्द्र सरकार इसे लागू करने पर आमादा रही है।

राष्ट्रीय पुनर्निर्माण ...

एक कार्यक्रम की पहल

समाज का कोई भी वर्ग भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं
राजकिशोर - 2007-10-20 07:09 UTC
देश इस समय एक भयावह संकट से गुजर रहा है। उदारीकरण के मुट्ठी भर समर्थकों को छोड़ कर समाज का कोई भी वर्ग भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं है। किसान, मजदूर, मध्य वर्ग, छात्र, महिलाएं, लेखक, बुध्दिजीवी सभी उद्विग्न हैं। राजनीतिक दल न केवल अप्रासंगिक, बल्कि समाज के लिए अहितकर, हो चुके हैं। नेताओं को विदूषक बने अरसा हो गया। हर आंदोलन किसी एक मुद्दे से बंधा हुआ है।
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धन कमाइये और सेक्स का मजा ...

भारत का बदलता मिजाज
System Administrator - 2007-10-20 07:05 UTC
केन्द्र सरकार आपकी सेवा में हाजिर मिलेगी
धन कमाइये और सेक्स का मजा लीजिए
पिछले लगभग एक दशक से भारत की पूरी राष्ट्रीय सोच की दिशा बदल गयी लगती है। किसी भी कीमत पर धन कमाना और सेक्स के पीछे भागना ही सर्वत्र दिखायी देने लगा है। हमारे समाचार माध्यम और सरकारें इसमें जनता की भरपूर मदद कर रही हैं।
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पिछड़ों की पहचान ...

System Administrator - 2007-10-20 06:59 UTC
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कल अपने एक फैसले में आखिर 1931 के आंकड़ों के आधार पर 2007-08 में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्चतर शिक्षा के संस्थानों में आरक्षण लागू करने पर रोक लगा दी।

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राष्ट्रपति चुनाव से उभरे सवाल

सांसदों और विधायकों के मत
System Administrator - 2007-10-20 06:54 UTC
कुछ मतदान प्रक्रिया से अलग रहे और कुछ ने मानसिक दिवालियेपन का परिचय दिया
भारत में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव संपन्न हो गये परन्तु इसने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर सांसदों और विधायकों की भी मति क्यों मारी गयी? वे मतदान करने और नहीं करने के अपने मौलिक अधिकार की बात तो करते रहे, लेकिन क्या लोकतंत्र में मतदान करना उनका मौलिक कर्तव्य नहीं था? अनेक सांसदों और विधायकों ने मानसिक दिवालियेपन की हद तक जाकर उन कारणों के आधार पर मत क्यों दिया जिनका राष्ट्रपति चुनाव से कोई लेना देना नहीं? ऐसे और भी अनेक सवाल हैं जो जवाब मांगते हैं।
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जेल और अपराध ...

System Administrator - 2007-10-20 06:51 UTC
इस समय दुनिया एक विशेष तरह की वीभत्स पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है जिसमें जीवन के अधिकांश पक्षों की योग्यता, श्रेष्ठता और वांछनीयता के लिए पूंजी या धन को ही सर्वोच्च मानदंड माना जा रहा है। इस समाज ने अधिकांश कार्यों के लिए न्यूनतम धन का निर्धारण किया है जिससे कम धन वालों को अयोग्य करार दिया जाता है –
ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से

दिल्ली का संकट ...

System Administrator - 2007-10-20 06:49 UTC
दिल्ली की बदहाली के लिए बाहर से आने वाले लोगों, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश से, को दोषी ठहराने वाले अपने बयान पर मुख्य मंत्री शीला दीक्षित ने माफी मांग ली, लेकिन इससे मूल मुद्दा खत्म नहीं होता। लोक सभा में उनके बयान पर हंगामा होने और सदन में उन्हें तलब किये जाने के बाद उनके पास माफी मांगने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था, लेकिन दिल्ली की बदहाली के लिए उनकी सरकार को माफ नहीं किया जा सकता।
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बीस रुपये से भी कम पर गुजारा

System Administrator - 2007-10-20 06:41 UTC
अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री के कार्यकाल में भारत में गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे भी ज्यादा आश्चर्य यह कि डा. मनमोहन सिंह देश के विकास के नाम पर अभी भी अपनी पीठ थपथपाते हैं। कहते हैं कि उनकी आर्थिक नीतियां ही सही हैं। उधर करोड़ों लोग दाने - दाने को तरस रहे हैं।

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नांदीग्राम कांड ...

System Administrator - 2007-10-20 06:32 UTC
आम लोगों को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने के आंदोलन में हमारे पूर्वज वामपंथियों में से अनेकों के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता, लेकिन इस आधार पर आज के नकली वामपंथियों पर भरोसा करना खतरे से खाली नहीं है।
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छत्तीसगढ़ में हिंसा और ...

System Administrator - 2007-10-20 06:19 UTC
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में बीजापुर जिले के रानीपोटली गांव स्थित सशस्त्र बल के एक शिविर पर माओवादियों के हमले में कल 54 लोगों की जानें गयीं जिनमें छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के 15 जवान भी शामिल थे। शेष मृतक स्थानीय आदिवासी युवा थे जिन्हें विशेष पुलिस अधिकारी का ओहदा देकर नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए सल्वा जुडुम संगठन में शामिल किया गया था।