Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

आसक्ति

अत्यधिक रागरंजित स्नेह को आसक्ति कहा जाता है। सामान्य अर्थों में आसक्ति मन का लगाव है।

नारद भक्ति सूत्र के अनुसार आसक्ति ग्यारह प्रकार के होते हैं। भागवत सम्प्रदाय का मानना है कि इन्हीं ग्यारह प्रकार से ईश्वर के प्रति मन का लगाव होता है, जिसे वे प्रेम-भक्ति कहते हैं। ये हैं -

1. गुणमाहात्म्यासक्ति - इसमें ईश्वर के गुणों के माहात्म्य के प्रति आसक्ति होती है।

2. रूपासक्ति - इसमें ईश्वर के रूप पर मन आसक्त हो जाता है।

3. पूजासक्ति - इसमें ईश्वर की पूजा के प्रति आसक्ति हो जाती है।

4. स्मरणासक्ति - इसमें ईश्वर के स्मरण के प्रति आसक्ति होती है।

5. दास्यासक्ति - इसमें ईश्वर के दास होने के प्रति आसक्ति होती है।

6. सख्यासक्ति - इसमें ईश्वर के प्रति सख्य भाव से ही आसक्ति होती है।

7. कान्तासक्ति - इसमें ईश्वर की प्रेयसी के भाव से आसक्ति होती है।

8. वात्सल्यासक्ति - इसमें ईश्वर के प्रति वात्सल्य भाव के रूप में आसक्ति होती है।

9. आत्मनिवेदनासक्ति - इसमें विनयशीलता से अपने अवगुणों का वर्णन करते हुए आत्मनिवेदन के भाव से आसक्ति होती है।

10. तन्मयासक्ति - इसमें ईश्वर के प्रति भाव-विभोर होकर तन्मय हो जाने के भाव में आसक्ति होती है। तथा

11. परमविरहासक्ति - इसमें ईश्वर से विरह होने के भाव में भक्त आसक्त हो जाता है।





Page last modified on Wednesday July 23, 2014 07:42:27 GMT-0000