ऊँ
'ऊँ' मंत्रों के प्रारम्भ में उच्चारित की जाने वाली ध्वनि है, जिसे प्रणव के नाम से भी जाना जाता है, और जिसके बारे में स्वयं भगवान कृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में अर्जुन से कहा है -प्रणवः सर्ववेदेषु (7-8) , वेदों में जिस प्रणव की चर्चा है वह मैं ही हूं। महाभारत अश्वमेध 44-6 में कहा गया ओंकारः सर्ववेदानाम्। यही वेदों का सार है तथा सामवेद में जो उद्गीथ है वह ओंकार ही है। यही भगवान की विभूति है। यही प्रथम ध्वनि है जो संसार के प्रारम्भ के पूर्व अस्तित्व में था। इसलिए किसी भी मंत्र के प्रारम्भ में इसके की उच्चारण का विधान है। यही शब्द ब्रह्म है।
कठोपनिषद् (2-15) में कहा गया है -
सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद्वदन्ति।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्ये चरन्ति तत् ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि ओम् इत्येतत्।
(सभी वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, सभी प्रकार के तप जिसके लिए किये जाते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन जिसकी प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है, उस पद को मैं संक्षेप में तुम्हारे लिए कहता हूं कि वह ओम् है।)
अर्थात् ओम् उसी परमात्मा का शब्द रुप है जिसके बारे में ऋग्वेद (1-164-47) में कहा गया है -
एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति।
इसका अर्थ है - सत् तो एक ही है जिसे विप्र (जानने वाले) अनेक प्रकार से बोलते हैं।
यही कारण है कि ऊं शब्द का उच्चारण सर्व प्रथम किया जाता है और उसके बाद अन्य मंत्रों का पाठ या गायन होता है।
चित्त की मूल अवस्था शान्त है। इसमें किसी भी प्रकार का विचलन या विक्षोभ आने पर, चाहे वह हर्ष के नाम पर हो या विषाद के नाम पर, चित्त की यह मूल शान्त अवस्था नहीं रह जाती, तथा इसी को श्रीमद्भगवद गीता में कहा गया है - अशान्तस्य कुतः सुखम् (अशान्त चित्त के लिए सुख कहां)। चित्त को इसी मूल अवस्था में लाकर ब्रह्मानंद की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करना ही मूल ध्येय है। यही कारण है कि साम (पाठ तथा गायन) उच्च स्वर से प्रारम्भ कर मध्यम् और निम्न स्वर की ओर चलता है विशेषकर उनमें जो चित्त को उसकी मूल शान्त अवस्था (शान्ताकारम्) में लाने की चेष्टा करते हैं।
किसी व्यक्ति के चित्त की अवस्था चाहे जो भी हो वह इस ऊं के उच्चारण से 60 सेकंड से भी कम समय में चित्त को अपनी मूल अवस्था में स्थापित कर सकता है। यह समय इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितने समय में अन्दर की वायु को विधिवत् उच्चारण करते हुए सहज रुप से बाहर निकालता है। यही कारण है कि बालक अपना चित्त 15 सेकंड में ही स्थिर कर लेता है और अधिक उम्र के लोगों को 45, 50 या 55 सेकंड तक लग जाते हैं।
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