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नाटक में अर्थप्रकृति का कार्य

नाट्यशास्त्र में कार्य अर्थप्रकृति की पांच स्थितियों में अन्तिम स्थिति है। यह किसी रूपक का मूल प्रयोजन या साध्य है जिसके लिए सभी उपकरण एकत्र किये जाते हैं।

यह कार्य वहां से प्रारम्भ होता है जहां से प्रयोजन या साध्य स्पष्ट कर दिया जाता है।

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नाटक में कार्य विकास, नाटक में कार्य व्यापार, नाड़ी, नाथ सम्प्रदाय, नाथ साहित्य


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