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लखीमपुर खीरी नरंसहार

एक हारती हुई लड़ाई लड़ रही है मोदी सरकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-10-06 09:53
भाजपा नेताओ के सत्ता-उन्माद ने लखीमपुर खीरी में 8 लोगो की जान ले ली। उनमें से 4 तो भाजपा के ही थे। जिस तरह से किसानो पर लखीमपुरी खेरी में मोटर वाहन से किया गया हमला भाजपा के लिए भी घातक साबित हुआ है, उसी तरह किसान आंदोलन के खिलाफ भाजपा द्वारा अपनाया जा रहा रवैया खुद उसके लिए घातक साबित होगा। करीब साल भर से किसान जनविरोधी तीन कृषक कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार अपनी बात पर अडिग है। सरकार को बार बार बताया जा रहा है कि किस तरह ये कानून न केवल किसानों के खिलाफ है, बल्कि देश के एक आम आदमी के खिलाफ भी है, लेकिन मोदी सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है और कह रही है कि ये कानून देश के हित में है।

लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या से योगी आदित्यनाथ को बड़ा झटका

उत्तर प्रदेश में बीजेपी पर हमला करने के लिए विपक्षी दलों को नया हथियार
प्रदीप कपूर - 2021-10-05 11:06
लखनऊः लखीमपुर खीरी में आधा दर्जन से अधिक किसानों की हत्या ने उत्तर प्रदेश में राजनीतिक स्थिति को गर्म कर दिया है और सभी विपक्षी दलों ने योगी आदित्यनाथ सरकार को रक्षात्मक हाने पर मजबूर कर दिया है। लखीमपुर खीरी जाते समय पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं और कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रधान न्यायाधीश के अडिग रवैये से चमका सुप्रीम कोर्ट

उनके पूर्ववर्तियों के संदिंग्ध कार्यकाल से विराम
के रवींद्रन - 2021-10-04 11:22
जिन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने पदभार ग्रहण किया, वे बहुत अच्छी नहीं थी। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की उनके पद ग्रहण करने के क्रम में न्यायमूर्ति रमण द्वारा कथित संदिग्ध आचरण के खिलाफ शिकायत ने संदेह पैदा किया था। लेकिन यह गहरे संतोष की बात है कि नए मुख्य न्यायाधीश ने न केवल इन सभी नकारात्मकताओं को समाप्त कर दिया है, बल्कि एक वे ऐसे प्रकाशस्तंभ के रूप में उभरे हैं जो देश के सर्वोच्च न्यायालय के गौरव, विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बहाल करने की आशाओं को प्रज्वलित करता है। नए प्रधान न्यायाधीश के पदभार ग्रहण करने के बाद से जो छोटी अवधि बीत चुकी है, उसने साबित कर दिया है कि वह अपने पूर्ववर्तियों के कार्यकाल को चिह्नित करने वाले उस झंझट को तोड़ने में सफल रहे हैं।

नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन से मुलाकात एक फ्लॉप रही

अमेरिकियों को वही मिला जो वे भारतीय सरकार से चाहते थे
बिनॉय विश्वम - 2021-10-01 10:26
कॉरपोरेट घरानों के निहित स्वार्थों द्वारा नियंत्रित भारतीय मीडिया के बड़े वर्ग द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा का जश्न मनाया गया। उनमें से कुछ ने तो यहां तक दावा भी कर दिया कि इस 6वीं यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया की कल्पना को जीत लिया है! अतिशयोक्ति की इस तरह की भव्य भागीदारी उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिपरक संतुष्टि को पूरा कर सकती है लेकिन सच्चाई के साथ न्याय नहीं करेगी।

जब गांधी ने 125 वर्ष तक जीने की इच्छा त्याग दी थी

उनकी हत्या की कोशिश 1934 से ही शुरू हो गई थी
अनिल जैन - 2021-09-30 10:40
इस समय जब पूरी दुनिया महात्मा गांधी की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है और उनके विचारों की प्रासंगिकता पहले से कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है, तब भारत में सत्ताधारी जमात से जुड़ा वर्ग गांधी को नकारने में लगा हुआ है। इस समय देश में सांप्रदायिक और जातीय विद्वेष का माहौल भी लगभग उसी तरह का बना दिया गया है, जैसा कि देश की आजादी के समय और उसके बाद के कुछ वर्षों तक बना हुआ था। उसी माहौल से दुखी होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी मृत्यु की कामना करते हुए कहा था कि वे अब और जीना नहीं चाहते। उसी माहौल के चलते उनकी हत्या हुई थी।

मंत्रालय विस्तार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के मंडल कार्ड का एक हिस्सा है

अखिलेश यादव अपने समानांतर सब की साथ कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ रहे हैं
प्रदीप कपूर - 2021-09-29 11:14
लखनऊः योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में तीन ओबीसी, दो अनुसूचित जाति, एक अनुसूचित जनजाति के साथ भाजपा ने आक्रामक मंडल कार्ड खेला है। एक ब्राह्मण को भी मंत्री बनाया गया।

कौन बनाता है मुख्यमंत्री?

कम ही मामलों में विधायक अपना नेता चुनते हैं
एल. एस. हरदेनिया - 2021-09-28 17:17
तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने एक बार कहा था कि पंडित नेहरू के समय मुख्यमंत्री नामजद नहीं होते थे। उनकी इस टिप्पणी के कुछ दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भोपाल आई थीं। उनकी पत्रकार वार्ता आयोजित थी। पत्रकार वार्ता में मैंने पूछा कि अभी हाल में राष्ट्रपति महोदय ने यह टिप्पणी की थी कि नेहरूजी के जमाने में मुख्यमंत्री नामांकित नहीं होते थे। उत्तर देते हुए उन्होंने कहा क्या नेहरूजी को मुझसे ज्यादा कोई जानता था। स्पष्ट है कि उनका कहना था कि नेहरूजी के जमाने में भी मुख्यमंत्री नामांकित होते थे। इससे साफ है कि जब से देश में संसदीय प्रजातंत्र की शुरूआत हुई है तभी से मुख्यमंत्रियों का नामांकन ही होता आया है।

सुप्रीम कोर्ट के फूटर से मोदीजी के फोटो हटाने के आदेश

उसी तर्क से वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट से भी मोदीजी का फोटो हटना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-09-27 10:23
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर कोर्ट के ईमेल फूटर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर हटाने को कहा है। गौरतलब हो कि एनआईसी, जो कि भारत सरकार की एक संस्था है, वह अन्य सरकारी संगठनों और संस्थाओं के लिए ईमेल को डोमेन तैयार करती है। ईमेल के साथ जो मैसेज जाता है, उसके नीचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर सुप्रीम कोर्ट के ईमेल धारियों की ओर से जा रही है, जिसके साथ लिखा होता था, ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’। जब सुप्रीम कोर्ट के जजों को इसका अहसास हुआ, तो इस पर आपत्ति जताई गई और आदेश जारी किया गया है कि उस तस्वीर और उसके साथ जो स्लोगन है, उसे तुरंत हटाया जाय। यदि इस तरह का फूटर जाना ही था, तो वह सुप्रीम कोर्ट के भवन का हो सकता है, प्रधानमंत्री का तो हरगिज नहीं।

कांग्रेस में शुरू हो चुका है राहुल-प्रियंका का समय

सोनिया अब अपने पुराने सहयोगियों को सिर्फ 'आई एम सॉरी’ बोलने की जिम्मेदारी ही निभाएंगी
अनिल जैन - 2021-09-25 08:57
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद से विदाई को अगर संकेत माना जाए तो साफ है कि कांग्रेस में अब करीब तीन दशक पुराने उस दौर की फिर शुरुआत हो गई है, जब कोई क्षत्रप आलाकमान को आंख दिखाने की हिम्मत नहीं करता था। हालांकि पार्टी की कमान अभी औपचारिक तौर पर सोनिया गांधी के हाथों में ही है, लेकिन पंजाब का घटनाक्रम बताता है कि कांग्रेस में अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का समय शुरू हो चुका है और आने वाले दिनों वे कुछ और सख्त फैसले लेंगे। कैप्टन को हटा कर राहुल गांधी ने वह काम किया है जो वे पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भी नहीं कर पाए थे। खुद सोनिया गांधी ने भी पार्टी की कमान संभालने के बाद कभी इस तरह की राजनीति नही की, जैसी कैप्टन के मामले में राहुल और प्रियंका ने की है।

बुनियादी परिवर्तनों के दौर में

ध्वंस के दिन आ गए हैं
कृष्णा झा - 2021-09-24 09:48
आज हम बुनियादी परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे हैं। जब बुनियाद बदल जाती है तो ऊपरी ढांचे को भी बदलना पड़ता है। पूंजीवादी समाज टिका होता है मालिक और मजदूर के कंधों पर और वही उत्पादन का भी दायित्व निभाते हैं। उनमें से एक उत्पादन को व्यवस्थित करता है, जिसके लिये निवेश का होना अनिवार्य है, और इस निवेश को ही वैज्ञानिक शब्दों में पूंजी कहते हैं। यह पूंजी निकलती है जब उत्पादन अधिक होता है और अतिरिक्त मुनाफे के साथ अधेशेष मूल्य मिलता है। इस सत्य की खोज मार्क्स ने की थी जब वह अपने राजनैतिक अर्थशास्त्र की रचना कर रहे थे। अधिशेष तभी होता है जब मजदूर अपने मुआवजे के अतिरिक्त काम करता है। यह अतिरिक्त श्रम ही अधिशेष का स्रोत है और पूंजी की भूमिका भी निभाता है। समाज के विकास के साथ ही पूंजी भी विकसित होती है और इस सबकी चरम परिणति होती है वित्त पूंजी में। औद्योगिक पूंजी और बैंक का परस्पर में मिल जाना होता है और निवेश में भारी कमी आ जाती है।