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प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सक्रिय कर दिया है

मुस्लिम और ब्राह्मण पार्टी के साथ जुड़ रहे हैं
प्रदीप कपूर - 2019-04-04 08:51
लखनऊः प्रियंका गांधी वाड्रा के कारण कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश में पुनरुत्थान ने एक तरफ बीजेपी तो दूसरी तरफ सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को बेवजह परेशान किया है। प्रियंका गांधी के कारण ब्राह्मणों, युवा, गैर-यादव ओबीसी, शहरी और ग्रामीण युवाओं और पूर्वी यूपी में गरीब किसानों के कांग्रेस की ओर आकर्षित होने की संभावना है।

राजनीति को अमीरों की जेब से निकालें

मुद्दा आधारित राजनीति स्थापित करने का समय
कन्हैया कुमार - 2019-04-03 10:10
घटनाएं कुछ इस तरह से घटीं कि मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब एक राजनेता बन गया। मेरा नेता बन जाना महज एक दुर्घटना है। वैसे मैं हमेशा राजनीतिक रहा हूं, लेकिन कुछ साल पहले तक मुझे और मेरे दोस्तों को लोकसभा का चुनाव लड़ने के किसी भी सुझाव पर हंसी आती थी।

समझौता पर फैसलाः उठ रहे हैं अनेक सवाल

एल एस हरदेनिया - 2019-04-02 11:53
समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में 68 लोग मारे गए थे। परंतु इस अपराध के लिए जिन आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया था उन्हें अदालत ने निर्दोष पाया। अदालत के फैसले के बाद अनेक प्रश्न उठ रहे हैं।

दुनिया का सबसे महंगा आम चुनाव

चुनावों में धन-बल का बढ़ता इस्तेमाल
योगेश कुमार गोयल - 2019-04-01 10:27
देशभर में लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल पूरी तरह गर्म हो चुका है, तमाम छोटे-बड़े राजनीतिक दलों ने महासमर जीतने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी है। चुनाव चाहे छोटे स्तर पर हो या फिर लोकसभा जैसे बड़े स्तर का, प्रत्येक चुनाव में साम, दाम, दंड, भेद हर प्रकार के हथकंडे अपनाते हुए चुनाव जीतने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता रहा है। यही वजह है कि हमारे यहां हर चुनाव में बहुत बड़ी धनराशि चुनाव प्रक्रिया पर ही खर्च हो जाती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 5 अरब डाॅलर अर्थात् 35 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था। विधानसभा चुनावों के मामले में खर्चीले चुनाव की बात करें तो कर्नाटक का पिछला विधानसभा चुनाव राजनीतिक दलों द्वारा खर्च किए गए धन के मामले में अब तक का देश में सबसे महंगा विधानसभा चुनाव रहा, जहां 9.5-10.5 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था, जो कर्नाटक के उससे पहले के चुनावी खर्च से दोगुना था।

ईवीएम और वीवीपीएटी विवाद

बीच का रास्ता अपनाया जाना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-03-30 12:09
इलेक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीन पर छिड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ईवीएम के खिलाफ मोर्चा निकालने वाले राजनैतिक पार्टियों के नेता अब मशीनो से की गई मतगणना के साथ साथ 50 फीसदी वीवीपीएटी पर्चियों की गणना की भी मांग कर रहे हैं। लेकिन यह निर्वाचन आयोग को स्वीकार नहीं है। आयोग ने पिछले महीनों कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान प्रत्येक विधानसभा के एक एक बूथ के वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की थी और उनका मशीनों से हुई गिनती का मिलान किया था। मिलान शत प्रतिशत सफल रहा। किसी बूथ की वीवीपीएटी पर्चियों की गणना की जाय, इसके लिए आयोग लाॅटरी का सहारा लेता है। लाॅटरी में जो बूथ आता है, उसकी पर्चियों की गणना की जाती है और देखा जाता है कि मशीन से जो आंकड़े प्राप्त हुए थे, उससे इसके आंकड़े मिलते हैं या नहीं। अब तक जितने भी बूथों की वीवीपीएट पर्चियों की गिनती हुई है, उन सबके आंकड़े उन्हीं बूथों की मशीनों द्वारा दिए गए आंकड़े से बिल्कुल ही मेल खाते पाए गए हैं।

उम्मीदवारों के चयन में भाजपा को परेशानी

दिग्विजय सिंह के खिलाफ अभी तक कोई नाम तय नहीं
एल. एस. हरदेनिया - 2019-03-29 12:13
भोपालः हालाँकि कांग्रेस ने भोपाल से दिग्विजय सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है, लेकिन अब लगता है कि भाजपा को यह सीट कठिन दिखाइ्र पड़ रही है। इसके कारण वह अपना उम्मीदवार यहां से तय नहीं कर पा रही है। भाजपा नेता भोपाल के लिए कई नामों का सुझाव दे रहे हैं, उदाहरण के लिए, वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने कहा कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा जाना चाहिए। यह तर्क देते हुए कि अगर भाजपा में शामिल होने के पांच घंटे बाद पार्टी अभिनेत्री जयाप्रदा को पार्टी टिकट दे सकती है, तो साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से टिकट देने में क्या परेशानी है, क्योंकि वह तो एक कट्टर राष्ट्रवादी है।

गोवा में चुनौतियों का नया दौर

प्रमोद सावंत को मिला है कांटों का ताज
योगेश कुमार गोयल - 2019-03-28 08:57
गोवा में मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के चंद घंटों बाद रातों-रात तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाया गया और विधानसभा में बहुमत भी साबित कर दिया गया, उससे भाजपा ने गोवा में नेतृत्व को लेकर मंडराता संकट तो सुलझा लिया लेकिन गोवा के मौजूदा घटनाक्रम को देखें तो राज्य में पार्टी के लिए चुनौतियों तो अभी शुरू हुई है।

क्या आडवाणी ऐसी ही बिदाई के हकदार थे?

बेहतर होता वे खुद राजनीति से रिटायर होने का ऐलान कर देते
अनिल जैन - 2019-03-27 10:15
आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी के संसदीय जीवन और एक तरह से उनके राजनीतिक जीवन पर भारतीय जनता पार्टी के कर्ता-धर्ताओं ने पूर्ण विराम लगा ही दिया। अपने छह दशक के राजनीतिक जीवन में जिन आडवाणी ने अपनी पार्टी के असंख्य लोगों को चुनाव लडाने या न लडाने का फैसला करने में अहम भूमिका निभाई, इस बार उन्हीं आडवाणी का फैसला पार्टी ने कर दिया। उनका टिकट काट दिया गया। टिकट काटने वाले भी और कोई नहीं, वे ही रहे, जिन्हें आडवाणी ने न सिर्फ राजनीति का ककहरा सिखाया बल्कि उनको राष्ट्रीय राजनीति में पहचान भी दिलाई और जरूरत पडने पर उनका और उनके गलत कामों का बचाव भी किया।

भाजपा में उम्मीदवार चयन को लेकर असंतोष

कांग्रेस में भी गुटबाजी, पर स्थिति थोड़ी बेहतर
एल. एस. हरदेनिया - 2019-03-26 10:26
भोपालः लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की आंशिक सूची की घोषणा के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों को अंदरूनी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2019

भारतीयों की खुशी पर ‘विकास’ का ग्रहण

अनिल जैन - 2019-03-25 09:51
हमारे देश में पिछले करीब तीन दशक से यानी जब से नई आर्थिक नीतियां लागू हुई है, तब से सरकारों की ओर से आए दिन आंकडों के सहारे देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश की जा रही है। आर्थिक विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सर्वे भी अक्सर बताते रहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और देश में अरबपतियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इन सबके आधार पर तो तस्वीर यही बनती है कि भारत के लोग लगातार खुशहाली की ओर बढ रहे हैं। लेकिन हकीकत यह नही है।