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आतंक पर अमेरिकी नीति से बेनकाब चीन

प्रभुनाथ शुक्ल - 2017-08-21 19:21
वैश्विक आतंकवाद पर भारत और अमेरिका की दोस्ती गांठ काफी मजबूत हो चली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तीसरी दुनिया के सबसे ताकतवर राष्टपति डोनाल्ड टंप की नजदीकियां पाकिस्तान और चीन को मुश्किल में डाल रही हैं। भारत दुनिया के अधिकांश मुल्कों को वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एक मंच पर लाने में कामयाब हुआ है। जिसकी वजह है कि आज अमेरिका, ब्रिेटेन और फ्रांस का अच्छा सहयोग मिल रहा है। अमेरिका ने कश्मीर में आतंकवाद की जड़ हिजबुल मुजाहिदीन को अंतरर्राष्टीय आतंकवादी संगठन घोषित किया है। कूटनीतिक तौर पर आतंकवाद के खिलाफ यह भारत की बड़ी जीत और पाकिस्तान के साथ चीन की पराजय है। जबकि दो महींने पहले संबंधित आतंकी संगठन के सरगना सैयद सलाउद्दीन को अमेरिका ने ग्लोबल आतंकी घोषित किया था। इसके साथ ही अमेरिका की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

मोसुल फतह और उसके बाद

आईएसआईएस का खतरा बना रहेगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-07-11 12:06
इराक के प्रधानमंत्री जब मोसुल फतह की घोषणा कर रहे थे, उसी समय टिगरिस नदी के किनारे आईएसआईएस के लड़ाकों द्वारा चलाई जा रही गोलियों की आवाज भी सुनी जा रही थी। यानी जीत के जश्न के बीच पराजित पक्ष के इरादे की गूंज भी सुनी जा सकती थी। जाहिर है, मोसुल फतह का जश्न कोई स्थाई जश्न नहीं है। अभी भी इस्लामिक स्टेट के फिर से उभर आने का खतरा बना हुआ है।

पाकिस्तान में जनगणना: अफगान शरणार्थियों को गिनना कठिन होगा

शंकर रे - 2017-04-07 10:24
पाकिस्तान में छठी जनगणना की शुरुआत हो गई है और इसका बलोच पार्टियां विरोध कर रही हैं। अधिकांश बलोच पार्टियां जगगणना के तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं। उन्हें डर है कि कम प्रशिक्षित कर्मचारी अफगानी शरणार्थियों की भी गिनती कर लेंगे। ये शरणार्थी 1980 के पहले से ही यहां आना शुरू कर चुके थे। जब अफगानिस्तान में सोवियत सेना ने प्रवेश किया था और उनका अमेरिकी समर्थन तालिबान से संघर्ष चल रहा था, तो अफगानिस्तानी भारी संख्या में अपना देश छोड़ रहे थे। पड़ोस के बलोचिस्तान में भी वे भारी संख्या में आ बसे।

शेख हसीना की भारत यात्रा

दोनों देशोे के संबंधों के लिए महत्वपूर्ण
कल्याणी शंकर - 2017-04-05 12:20
जब नरेन्द्र मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के पद के लिए शपथग्रहण किया था, तो लोगों को चैंकाते हुए उन्होंने अपने पड़ोसी देशों के सभी सरकार प्रमुखों को उसमें आमंत्रित किया था। वैसा करके उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि पड़ोसी देश उनकी सरकार के लिए बहुत मायने रखते हैं। शपथग्रहण के बाद उन्होंने बहुत जल्द ही अधिकांश देशों की यात्राएं भी कर डालीं। अब साढ़े साल के अंतराल के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आ रही हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के लिए यह यात्रा यह दिखाने का अवसर प्रदान कर रही है कि आपसी संबंधों में सुधार लाने के लिए वे वाकई गंभीर हैं।

शंघाई सहयोग संगठन का जून शिखर सम्मेलन

भारत को अपना हक जमाना होगा
नित्य चक्रबर्ती - 2017-03-11 11:29
अगले जून महीने में कजाखस्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन होने वाला है। इस शिखर में उम्मीद की जा रही है कि भारत अपने ओर से काफी सक्रियता दिखाएगा। पिछले शिखर में भारत और पाकिस्तान को इस सहयोग संगठन का पूर्णकालीन सदस्य बनाया गया था। अब अपनी सदस्यता का पूरा इस्तेमाल करने का समय भारत के लिए आ गया है। उसे क्षेत्रीय सुरक्षा से संबंधित मसलों को उठाना है और इसके साथ ऊर्जा संसाधनो में साझेदारी की बात भी आगे बढ़ानी है। भारत के सबंध इस संगठन के सभी मूल 6 सदस्य देशों के साथ अच्छा है। वे मूल सदस्य देश है- चीन, रूस, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान, और ताजिकिस्तान। इसके कारण भारत को एक अन्य नये सदस्य देश पाकिस्तान के अपने संबंधों के बारे मे स्थिति स्पष्ट करने में भारत को आसानी होगी। भारत आशावान है कि आतंकवाद के खिलाफ उसके स्वर को मूल सदस्य देशों का समर्थन मिलेगा।

ट्रंप आउटसोर्सिंग रोकने की अपनी जिद पर अड़े

पूर्वी भारतीय कंपनियों को अपना बिजनेस माॅडल बदलना पड़ेगा
कल्याणी शंकर - 2017-03-08 11:50
भारत की सिल्कन वैली बंगलुरु और हैदराबाद की साइबर सिटी, जिनमें भारत के बड़ी आईटी कंपनियों के ठिकाने हैं, इस समय अनिश्चितता और आशंका से कांप रही हैं। इसका कारण अमेरिका के टंªप प्रशासन द्वारा एच1-बी वीजा को रोक दिया जाना है। भारत के साॅफ्टवेयर उद्योग की हालत पहले से ही पतली चल रही रही है और उसका मुनाफा लगातार गिरता जा रहा है। उसके साथ साथ टंªप प्रशासन का फैसला उसके ऊपर और भी भारी पड़ता जा रहा है।

अमेरिका और चीन में व्यापार युद्ध की आशंका

भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए
सुब्रत मजुमदार - 2017-02-03 12:45
एक कहावत है कि जब अमेरिका छींकता है, तो पूरी दुनिया को जुकाम हो जाता है। अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका प्रथम और अमेरिकी खरीदें व अमेरिकी को रोजगार दें, तो चीन को कंपकंपी आ रही है। चीन निर्यातोन्मुख देश है और उसके विकास का इंजिन अमेरिका है। चीन का डर उस समय सामने आया, जब चीन के राष्ट्रपति शीपिंग ने कहा कि मैं इस बिन्दु को सामने रखना चाहता हूं कि दुनिया की समस्याओं के लिए भूमंडलीकरण जिम्मेदार नहीं है।

ओबामा काल में भारत अमेरिकी संबंध के स्वर्णिम साल

क्या ट्रंप सिलसिले को तोड़ देंगे?
कल्याणी शंकर - 2017-01-18 11:14
पिछले मंगलवार को ओबामा ने अपने 8 साल के कार्यकाल को पूरा करने के बाद एक भाव विह्वल भाषण दिया। 8 साल पहले जब वे राष्ट्रपति के पद पर बैठे थे, तो उनके अपने देश और भारत समेत दुनिया के अन्य देशों की उनसे अनेक अपेक्षाएं थीं। अब जब वे अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं तो यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत की अपेक्षाओं पर उनका कार्यकाल कितना खरा उतरा।

शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन

भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है
नित्या चक्रबर्ती - 2017-01-06 11:06
शंघाई सहयोग संगठन की पूर्ण सदस्यता प्राप्ति की सारी प्रकिया पूरी हो जाने के बाद होने वाले शिखर सम्मेलन में भारत को पूरी ताकत के साथ उसमें हिस्सा लेना चाहिए। वह शिखर सम्मेलन इस साल के बीच में होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह एक बहुत अच्छा अवसर प्रदान करता है और इसका इस्तेमाल कर वे यूरेशिया क्षेत्र में भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं। संगठन के सदस्य देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है।

ट्रंप की जीत का श्रेय हिलेरी को ही मिलना चाहिए

सांडर्स को गलत तरीके से पराजित करना डेमोक्रेट पर भारी पड़ा
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-11-12 10:56
डोलाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हुई जीत से दुनिया भर और खुद अमेरिका के अनेक लोग हैरान हैं। वे लोग ट्रंप की जीत की उम्मीद नहीं कर रहे थे और उनकी जीत की आशंका से डर भी रहे थे, क्योंकि राष्ट्रपति उस उम्मीदवार की कुछ बातें लीक से हटकर थीं। ट्रंप अमेरिका में दूसरे देशों के मुसलमानों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात कर रहे थे। इराक में शहीद हुए एक अमेरिकी मुस्लिम जवान के परिवार के साथ बहुत ही क्रूरता से पेश आए थे। महिलाओं के प्रति भी वे कुछ असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को वे एक नाटक बता रहे थे। अमेरिकी युवकों की बेरोजगारी के लिए वे आउटसोर्सिंग को जिम्मेदार बता रहे थे और राष्ट्रपति बनने पर उसपर रोक लगाने की घोषणा कर रहे थे। वे मुक्त व्यापार को अमेरिकी हितों के खिलाफ बोल रहे थे। जापान को अमेरिका द्वारा दी जा रही सुरक्षा का भी वे मजाक उड़ा रहे थे और कह रहे थे कि यदि जापान पर कोई हमला होगा, तो अमेरिकी सेना उसे बचाने जाएगी और जब अमेरिका पर हमला होगा, तो जापान के लोग अपने घरों में बैठकर सोनी टीवी देखेंगे। चीन के बारे में भी वे कुछ ऐसी बातें कर रहे थे, जिससे लगता था कि उनके राष्ट्रपति बनने से उस देश के साथ भी संबंध खराब होंगे। पाकिस्तान को वे दुनिया का सबसे खतरनाक देश बता रहे थे। भारत के अनेक लोगों को डर लग रहा था कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद आउटसोर्सिंग पर नियंत्रण लगेगा और भारत में उसका खराब असर पड़ेगा। अमेरिका में आ रहे विदेशी लोगों के प्रति भी उनके विचार अच्छे नहीं थे।