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सांसदों के वेतन बढ़ें पर वे अपनी जिम्मेदारी भी समझें

कल्याणी शंकर - 2010-08-20 11:21
पिछले दिनों सांसदों ने अपने वेतन का सवाल संसद मे उठाया। सवाल उठता है कि क्या उनके वेतन में वृद्धि की जानी चाहिए़? जवाब स्पष्ट है। वे भी अब सरकारी सेवक माने जाते हैं। सरकारी सेवको के लिए बने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में वे भी आते हैं। इसलिए अन्य सरकारी सेवको की तरह अपने वेतन में वृद्धि पाने के हकदार हैं। लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि उन्हें अन्य सरकारी सेवकों की तरह अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।

कैसे होंगे राष्ट्रमंडल खेल?

खुदी पड़ी है दिल्ली
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-08-19 10:27
नई दिल्लीः राष्ट्रमंडल खेल महासंघ के अध्यक्ष माइक फेनेल ने एक बार फिर राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों का जायजा लिया। इसके पहले भी वे बहुत बार इस तरह का जायजा ले चुके हैं। पहली बार जायजा लेने के बाद तो उन्हें लगा था कि दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल आयोजित ही नहीं हो सकते, क्योंकि तैयारियां समय के अनुसार चल नहीं रही थीं।

राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार

केन्द्र सरकार को पहले हस्तक्षेप करना चाहिए था
अमूल्य गांगुली - 2010-08-18 10:43
दिल्ली में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में आ रही भ्रष्टाचार की खबरों से यह साबित हो रहा है कि भारत इस तरह के बड़े आयोजन साफ सुथरे तरीके से कराने में समर्थ नहीं है। अब इसमें शक नहीं रहा कि इसके आयोजन की जिन्हें जिम्मेदारी दी गई वे अपने लोभ पर काबू नहीं रख पाए और भारी भ्रष्टाचार को अंजाम दिया।

बिहार में लालू पासवान की मोर्चेबंदी

जातीय समीकरण पर ही लड़े जाएंगे चुनाव
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-08-18 10:35
बिहार में आखिरकार लालू यादव और रामविलास पासवान ने चुनावी मोर्चेबंदी कर ही ली। इस तरह की मोर्चेबंदी में सबसे ज्यादा समस्या सीटों के बंटबारे पर ही आती है और बिहार के दोनों नेता इस बंटवारे को अंजाम देने में सफल रहे हैं। 75 सीटों पर रामविलास पासवान की पार्टी उम्मीदवार खड़े करेगी तो शेष 168 सीटों पर लालू की पार्टी के उम्मीदवार होंगे। मोर्चे ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का नाम भी तय कर लिया है। मुख्यमंत्री के उम्मीदवार खुद लालू यादव हैं, तो उपमुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में रामविलास पासवान के भाई को पेश किया जा रहा है।

दिशा खो रही है यूपीए की दूसरी सरकार

शीर्ष स्तर पर है भ्रम का माहौल
राजनैतिक संवाददाता - 2010-08-16 09:18
नई दिल्लीः जब 22 जुलाई 2008 को समर्थक वामदलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस लिया था, तो उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अब वे अपने आपको मुक्त समझ रहे हैं। उसके 10 महीने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में मुख्य सत्ताधारी दल ने वामदलो को एक बार फिर पराजित किया और बढ़ी ताकत के साथ वह सत्ता में आई। वामदलों के लोकसभा सांसदों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई। कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़े कुछ दलों ने एकतरफा घोषणा करते हुए उसके नेतृत्व में बनी सरकार का समर्थन करने का फैसला कर लिया। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में एक नया आत्मविश्वास जगा और लगने लगा कि अब वे प्रधानमंत्री के रूप में सही अर्थों में काम करने लगे हैं।

सीपीएम की मुश्किलें

पश्चिम बंगाल में तृणमूल और माओवादियों का गठबंधन
आशीष बिश्वास - 2010-08-16 09:13
कोलकाताः अब तो प्रणब मुखर्जी, पी चिदंबरम और उनकी कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनकी सहयोगी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ माओवादियों का घनिष्ठ संबंध है। इस संबंध को नकारने से कांग्रेस की छवि को नुकसान हो रहा है।

अल्पसंख्यकों को रोजगार दे भारतीय कंपनियां: सलमान

एस एन वर्मा - 2010-08-14 02:42
नई दिल्ली। कंपनी तथा अल्पसंख्यक मामलों के कैबिनेट मंत्री सलमान खुर्शीद ने अल्पसंख्यकों तथा देश के कमजोर वर्गों केा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कंपनियों को सकारात्मक कदम उठाने का आहवान किया है।

क्या है जम्मू और कश्मीर के बिगड़ते हालात के पीछे

मुख्यमंत्री उमर को युवाओं तक पहुंचना होगा
कल्याणी शंकर - 2010-08-13 09:17
जब 6 जनवरी 2009 को उमर अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर का मुख्यमंत्री पद संभाला था तो उस समय उनसे बहुत अपेक्षाएं थी। वे राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे और जिस चुनाव के बाद उन्होंने वह पद संभाला था, उसमें भारी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया था। लेकिन डेढ़ साल के बाद अब लोग उनसे निराश हो रहे हैं।
वामंपथी उग्रवाद

बढ़ती नक्सली ताकत, बेहाल जनता और हतप्रभ सरकार

ज्ञान पाठक - 2010-08-12 12:59
यह सत्य है कि वामपंथी उग्रवाद, प्रशासनिक और राजनैतिक संस्थानों की अकर्मण्यता द्वारा सृजित माहौल में पनपा और फल-फूल रहा है। हिंसा-प्रतिहिंसा, बंद आदि के कारण जनता बेहाल हो गयी है और केन्द्र तथा राज्य सरकारें हतप्रभ सी जान पड़ती हैं। सरकारी कार्रवाई और योजनाएं अतिवादी वामपंथियों की ताकत के आगे कमजोर दिखायी दे रही हैं। कारण स्पष्ट है। जहां एक ओर माओवादी नक्सली शोषित वर्गों के बीच लगातार लोकप्रिय हो रहे हैं वहीं नेता, सरकार और संपन्न लोग गरीबों के प्रति अपनी शोषण और अन्यायपूर्ण नीतियों वाली प्रवृत्तियों के कारण अविश्वसनीय होते जा रहे हैं। आम लोग महसूस करते हैं कि उनके हितों के प्रति सरकारें और बड़े सम्पन्न लोग असंवेदनशील हैं।

पूर्वोत्तर भारत में आतंकवाद और अलगाववाद

गुत्थी सुलझाने में उलझी सरकार – समझौतों की अवधि समाप्ति के बाद क्या होगा
ज्ञान पाठक - 2010-08-12 12:52
पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्य - असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा - पहले से ही अलग-अलग भाषाओं, बोलियों और सामाजिक-आर्थिक पहचान के साथ 200 से अधिक जातीय दलों सहित एक जटिल सांस्कृतिक और जातीय स्थिति में थे जो विभिन्न आतंकवादी गुटों द्वारा की जा रही भिन्न-भिन्न तरह की मांगों के कारण और जटिल बनते चले गये। इसके अलावा बांग्लादेश, भूटान, चीन तथा म्यांमार से इसकी सीमाएं लगती हैं और इसकी अपनी तरह की सुरक्षा जटिलताएं हैं।