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कौल मार्ग

भारतीय अध्यात्म और साधना का वह मार्ग जो कुल तथा अकुल का सम्बंध स्थापित करता है वह कौल मार्ग कहा जाता है। कुल-अकुल ज्ञान को कौल ज्ञान भी कहा जाता है।

योगी मत्स्येन्द्रनाथ को सकल कुलशास्त्र का अवतारक माना जाता है।

इस मार्ग में कुल शक्ति को कहते हैं तथा अकुल भगवान शिव को, जो एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते, जैसे चांद और चांदनी। शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व नहीं तथा शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं। परन्तु जब शिव में सिसृक्षा का स्फुरण होता है तो निर्गुण, निरंजन और निरुपाधिक परमशिव से शिव तथा शक्ति, अकुल तथा कुल नामक दो तत्व उत्पन्न होते हैं। परमशिव से निकला यह शिव सगुण, सांजन, सोपाधिक और सिसृक्षा सम्पन्न हो जाता है।

इन शिव तथा शक्ति से 34 तत्वों का उद्भव होता है।

जीव तेरहवां तत्व है।

इस प्रकार जीव शिव तत्व ही है परन्तु माया या अविद्या के छह कंचुकों या आवरणों से ढका है। यह आवरण तो तब मिटता है जब कुल और अकुल में सम्बंध स्थापित हो जाता है।

इस मार्ग में शक्ति का स्थान मूलाधार पद्म को तथा परमशिव का स्थान सहस्रार पद्म को माना जाता है। कुण्डलिनी वहां साढ़े तीन वलयों में सुप्तावस्था में है। जिस ज्ञान से साधना द्वारा इन दोनों का सामरस्य स्थापित किया जाता है वही ज्ञान कौल ज्ञान है।

कौलज्ञान निर्णय में बताया गया है कि यह ज्ञान प्राचीन काल से ही श्रुत परम्परा में है। इस ग्रंथ में रोमकूपादि कौल, वृषणोत्थ कौलिक, वह्नि कौल, तथा कौल सद्भाव का उल्लेख मिलता है परन्तु इनके अर्थ में मतभेद बने हुए हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि ये कौलों के विभिन्न सम्प्रदाय हैं परन्तु कुछ, जिनमें हजारी प्रसाद द्विवेदी भी शामिल हैं, इन्हें साधना पद्धतियां मानते हैं।

कौलमार्ग को सत्य या आदि युग में कौलज्ञान कहा जाता था। द्वितीय अर्थात् त्रेता युग में इसका नाम महत्कौल हो गया। तृतीय या द्वापर युग में इसे सिद्धामृत कहा गया। आज कलियुग या चौथे युग में इसका नाम मत्स्योदर कौल है।

मत्स्योदर कौल से जो ज्ञान निकला उसे योगिनी कौल कहा जाता है।


Page last modified on Monday August 25, 2014 17:39:04 GMT-0000