Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

चुनरी

चुनरी एक वस्त्र है जिसे स्त्रियां धारण करती हैं। यह सुहागिन स्त्रियों के लिए विशेष वस्त्र है जिसका सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थ है। विवाह के अवसर पर यह स्त्रियों को दी जाती है।

सन्त साहित्य में इसे शरीर के अर्थ में लिया गया है जो आत्मा की चुनरी है, जिसे आत्मा ने धारण कर रखा है। परमात्मा को पति माना गया है और आत्मा को पत्नी। यह शरीर रुपी चुनरी आत्मा-परमात्मा के विवाह के अवसर पर स्वयं परमात्मा द्वारा दी गयी है।

यह पद प्रसिद्ध है - लागा चुनरी में दाग मिटाऊं कैसे।

हठयोगी संत, विशेषकर वे जो भक्त थे, और जो परमात्मा को प्रिय और आत्मा को प्रेमिका मानते हैं, वे भी किस प्रकार शरीर को व्यर्थ मान सकते थे। उनके अनुसार तो वह इसी प्रिय के उपहार को धारण कर सदा सुहागिन पवित्र बनी रह सकती है। इसी पिण्ड को साफ-सुथरा और पवित्र रखकर वह अपने प्रिय से बेझिझक मिल सकती है। फिर व्यक्ति इस चिंता से मुक्त रह सकता है - हौं मैली पिअ ऊजरा कैसे लागूं पांय। हठयोगी मानता है कि ब्रह्मांड में जो कुछ है वह तो इसी शरीर में है। अर्थात् इसी चुनरी में है जिसे परमात्मा ने आत्मा को विवाह के अवसर पर भेंट की है।

लोभ, मोह और पाप से यह चुनरी मैली होती है। ज्ञान के साबुन से इसे साफ किया जाता है। इसे यत्न पूर्वक संभालकर रखना चाहिए। क्योंकि यह खसम (परमात्मा) की दी हुई है, और भी अधिक प्रेम से, प्रेम के घनीभूत छण में - विवाह के अवसर पर।


Page last modified on Sunday June 21, 2015 08:02:32 GMT-0000