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जुलाहा

जुलाहा मुसलमानों में बुनकर समुदाय को कहा जाता है। परन्तु भारतीय योग-साधना में यह शब्द एक रूपक के रूप में साधक के अर्थ में आया है। सिद्धों से लेकर संतों तक के साहित्य में इस शब्द का उपयोग इसी अर्थ में मिलता है।

तन्तिपा चर्या में साधक यदि जुलाहा है, तो सूत साधक की मनोवृत्तियां हैं। तन ही साधक की चादर है, तथा अनाहद नाद करघा चलने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि।

कबीर के साहित्य में जुलाहा, सूत, चादर, और करघे की ध्वनि इन्हीं अर्थों में मिलता है। ईश्वर को कोरी माना गया तथा समस्त सृष्टि को उसका ताना-बाना। चादर या चदरिया तो शरीर ही है जिसे मैला होने से बचाने की बात बार-बार कही गयी है। यह तन रूपी चादर तो वासना आदि से मलिन या गंदा होता है, तथा जर्जर हो जाने पर इसे आत्मा बदल देती है।

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Page last modified on Tuesday June 27, 2023 13:37:58 GMT-0000