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चुनाव से पहले किसानों के आंदोलन की राजनीति क्या हो

इस पर राय बंटी हुई है
के रवींद्रन - 2021-08-16 10:20
राजनीति को प्रभावित करने वाले किसान आंदोलन की अनिवार्यता और किसानों के मुद्दे के प्रति राजनीतिक दलों का दृष्टिकोण आंदोलन के भविष्य के कोर्स को निर्धारित करने के लिए दिन-ब-दिन स्पष्ट होता जा रहा है क्योंकि पंजाब और उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव आ रहे हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि आंदोलन के नेतृत्व के एक वर्ग की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, हालांकि इस तरह के बदलाव पर राय विभाजित हैं।

जाति जनगणना से कौन डरता है?

आरक्षण की सम्यक समीक्षा के लिए यह बहुत जरूरी है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-08-14 11:08
जाति जनगणना की मांग जोरों पर है और उतना ही जोर लगाकर मोदी सरकार इसका विरोध कर रही है। मजे की बात यह है कि 2018 के अंतिम महीनों में मोदी सरकार ने ओबीसी जनगणना कराने का फैसला किया था और कैबिनेट के इस फैसले से देश को वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह ने अवगत कराया था। लेकिन 2019 का चुनाव जीतने के साथ ही मोदी सरकार का मूड बदल गया और उसने अपना निर्णय बदल लिया। लेकिन सरकार के निर्णय बदलने से मांग कमजोर नहीं हुई है, बल्कि और भी बढ़ गई है। यह मांग सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं कर रही हैं, बल्कि सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दल भी कर रहे हैं। घटक दल की तो बात ही छोड़िए खुद कुछ सरकारी प्रतिष्ठान जाति जनगणना कराए जाने की मांग कर रहे हैं, क्यांकि उन प्रतिष्ठानों के काम जाति के आंकड़े जुटाए बिना हो ही नहीं सकता। बहुत बार सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयें भी जाति आंकड़ों के आधार लिए बिना ही सरकारी कार्यक्रम और नीतियां बनाए जाने पर अपना गुस्सा व्यक्त कर चुके हैं।

आज के सन्दर्भ में एक और स्वाधीनता दिवस

हम एक डिजिटल दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं
कृष्णा झा - 2021-08-13 10:22
पिछले अगस्त के बाद एक साल और बीत गया। पिछले कई सालों की तरह इन सालों का भी वही हश्र रहा। कुछ अत्यंत प्रभावशाली घटनाएं थीं, कुछ दुहराना मात्र था, सिर्फ मात्रा का अंतर था। महामारी का दौर चलता रहा, अंतर सिर्फ यह था कि पिछले साल का आक्रमण कुछ अधिक भयानक था, जानें भी बहुत गई। बेकारी बढ़ी। निवेश की बहुत ज्यादा कमी रही।

यह 15 अगस्त स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के लिए लड़ने की हमें याद दिलाता है

आरएसएस-बीजेपी के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष ताकतों की संयुक्त कार्रवाई समय की मांग है
डी राजा - 2021-08-12 09:46
15 अगस्त के दिन, सात दशक से भी अधिक समय पहले, 1947 में, हमारे देश ने नियति के साथ अपने प्रयास की शुरुआत की थी। हमारे द्वारा प्राप्त राजनीतिक स्वतंत्रता हमारे देश के लोगों द्वारा दशकों के संघर्ष का परिणाम है। ब्रिटिश शासन की शोषक प्रकृति को स्वीकार करते हुए, हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने संगठित मंचों या राजनीतिक दलों के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही औपनिवेशिक आकाओं द्वारा शोषण का विरोध करना शुरू कर दिया था। लोगों ने कई बार अपने मूल सहयोगियों के साथ-साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लोगों की सामूहिक स्मृति पर एक अमिट छाप छोड़ते हुए इन स्वतःस्फूर्त विद्रोहों को बेरहमी से दबा दिया गया।

स्वास्थ्य सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए

थोक दवा उत्पादन में सार्वजनिक क्षेत्र को दी जानी चाहिए प्रमुख भूमिका
डॉ अरुण मित्रा - 2021-08-10 09:35
15 अगस्त 2021 को जब हम औपनिवेशिक शासन से आजादी का 75वां दिन मनाएंगें, तो इन 74 वर्षों में हमने जो हासिल किया है, उसकी समीक्षा करना जरूरी है। भले ही स्वास्थ्य चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन बहस में स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा बात नहीं की गई है। इस बार जब हम गंभीर कोविड महामारी संकट से गुज़रे हैं, देश में स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति के बारे में लोगों के मन में चिंता है।

स्वतंत्रता दिवस आ रहा है

लेकिन हमारी स्वतंत्रता हमसे छिनती जा रही है
कृष्णा झा - 2021-08-09 10:26
भारत एक ऐसा देश है, जो सारी जनता को अपने में समेटे हुए है बावजूद जाति, संप्रदाय और अन्य विभिन्नताओं के। सभी यहां एक हैं और इस एकता के साथ ही वे महाशक्तिमान ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ते रहे और गुलामी से आजाद हुए। पूर्ण स्वाधीनता की मांग कांग्रेस के अहमदाबाद सत्र में 1921 में कॉमरेड हसरत मोहानी द्वारा उठायी गयी थी जो 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी बन जाने के बाद उसके नेतृत्व के नेताओं में से एक थे। कांग्रेस ने स्वयं इस मांग को 1929 के दिसंबर 19 को लाहौर सत्र में उठाया। यह इर्विन पैक्ट द्वारा दिये गए डॉमिनियन स्टेटस के विरू( था, और यहां से आजादी का आंदोलन अधिक तीव्रता से शुरू हो गया।

भारत छोड़ो आंदोलन की 79 वीं वर्षगांठ

मौलाना आजाद ने इसकी शुरुआत की आंखों देखी कहानी बताई है
एल. एस. हरदेनिया - 2021-08-09 09:31
भारत छोड़ो आंदोलन के 79 साल पूरे हो चुके हैं। माना जाता है कि 9 अगस्त 1942 को यह अगस्त क्रांति शुरू हुई थी, जिसने 5 सालों के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। सच पूछा जाए तो कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन की तिथि तय नहीं की थी। वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप से भारत छोड़ो आंदोलन की तिथि अंग्रेज़़ों ने तय कर दी थी। हुआ यह कि 7 और 8 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन आयोजित किया गया था। अधिवेशन में ही 8 अगस्त को यह प्रस्ताव पारित हुआ कि अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद को कह दिया जाए कि अब आप भारत को छोड़ दें। गांधी जी को उम्मीद थी कि इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद शायद अंग्रेज़ शासक कांग्रेस को बातचीत के लिए आमंत्रित करेंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ और 9 अगस्त की प्रातः 4 और 5 बजे के बीच कांग्रेस के लगभग सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, सरोजनी नायडू आदि शामिल थे। सच पूछा जाए तो कांग्रेस की पूरी की पूरी कार्यकारिणी के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

मेजर ध्यानचंद खेल रत्न

मोदी ने शुरू की एक गलत परंपरा
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-08-07 09:59
मोदी सरकार ने एक बड़े फैसले में राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न कर दिया। ऐसा करने के पीछे का कारण बताते हुए मोदी ने कहा कि बहुत सारे लोग उनसे ऐसी मांग कर रहे थे। लोग ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे, यह तो सबको पता है, लेकिन वे लोग कौन थे, जो राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर उसकी जगह ध्यानचंद खेल रत्न का नाम करवाना चाह रहे थे, यह तो प्रधानमंत्री मोदी ही जानते हैं।

मेडिकल कोर्स में ओबीसी आरक्षण पर मोदी सरकार का रुख संदिग्ध

केंद्र द्वारा राज्यों को उनके महत्वपूर्ण अधिकारों से वंचित कर दिया गया है
प्रकाश कारत - 2021-08-06 09:33
मोदी सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण और वर्तमान शैक्षणिक वर्ष से स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटे में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की घोषणा की सराहना की जा रही है। ओबीसी के कल्याण के लिए मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के उदाहरण के रूप में भाजपा और उसके समर्थकों द्वारा प्रशंसा की जा रही है। प्रधानमंत्री ने सरकार के इस फैसले को ’ऐतिहासिक फैसला’ बताया है।

पूर्वोत्तर में सीमा पर तनाव को नियंत्रित रखने का एकमात्र तरीका राज्यों के बीच संवाद

विकास के माध्यम से क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने में केंद्र की बड़ी जिम्मेदारी
सागरनील सिन्हा - 2021-08-05 09:50
अक्सर देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक साथ जोड़ दिया जाता है लेकिन तथ्य यह है कि इस क्षेत्र के राज्य जनजाति, भाषा, भोजन, कपड़े, संस्कृति और इतिहास के मामले में एक दूसरे से अलग हैं। इन राज्यों के अंदर भी इस प्रकार के सांस्कृतिक अंतर देखे जाते हैं। इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में किस तरह की विविधता है। कभी-कभी, एक जनजाति का इतिहास दूसरी जनजाति के इतिहास का खंडन करता है। विभिन्न जनजातियाँ एक ही भूमि पर दावा करती हैं। यह न भूलें कि उनमें धार्मिक विभाजन है, क्योंकि सभी जनजातियाँ एक ही धर्म का पालन नहीं करती हैं। हालांकि यह देखा गया है कि दो जनजातियाँ एक ही धर्म का पालन करने के बावजूद आपस में मतभेद रखती हैं।