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टाला जा सकता था आईसी 814 विमान अपहरण

विमान अपहरण के बीस साल
आलोक कुमार - 2019-12-26 11:40
इंडियन एयरलाइंस की विमान आईसी 814 के अपहरण के बीस साल पूरे हो गए। आतंकवाद के इतिहास में इसे भूलना मुमकिन नहीं। बीती सदी के आखिरी दिनइससेपाक परस्त आतंकवाद ने हमें गहरा जख्म दिया था। हमारे सुरक्षा तंत्र को निशक्त किया गया। विमान अपहरण के नाम पर पाकिस्तानपरस्त आतंकियों के आगे हमें घुटने टेकने को मजबूर होने पड़े। एयरबस 3000 श्रेणी के इस भारतीय विमान में फंसे 155 मुसाफिर औऱ 15 क्रू मेंबर्स की जान की कीमत पर काफी मंहगा सौदा करना पड़ा। सौदे में जम्मू जेल से छूटा खूंखार आतंकी मौलाना अजहर मसूद आजतक निरंतर भारत पर बड़ा से बड़ा आतंकी हमला किए जा रहा है। उसे अंतर्राष्ट्रीय आंतकवादी करार देने में हमें चीन के आगे कूटनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

आरसीईपी में भारत

हमें अपना समय खुद चुनना होगा
अशोक बी शर्मा - 2019-11-08 10:35
भारत ने वर्तमान रूप में मेगा ट्रेडिंग ब्लॉक रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है क्योंकि इसकी मांग पूरी नहीं हुई थी। खैर इसका मतलब यह नहीं है कि उसे अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को छोड़ना होगा। किसी व्यापार ब्लॉक में शामिल होना क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के तरीकों में से एक है। भारत के दूरदराज के प्रशांत द्वीप समूह तक के क्षेत्र के सभी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध हैं। पारस्परिक विकास, आर्थिक सहयोग, संपर्क और लोगों से लोगों का संपर्क भारत की नीति की आधारशिला रहा है और इसलिए आरसीईपी का हिस्सा नहीं होने से यह एक्ट ईस्ट पाॅलिसी को किसी भी तरह से अप्रासंगिक नहीं बनाता है।

चीन हाँगकाँग में बैकफुट पर

मानव अधिकार का घोर उल्लधन
अरुण श्रीवास्तव - 2019-09-04 08:27
चीन का तीव्र दुष्प्रचार दुनिया को यह समझाने का कदम है कि प्रदर्शनकारी राष्ट्रविरोधी हैं और प्रत्यर्पण बिल को खत्म करने की उनकी मांग हांगकांग के हित के खिलाफ है। आंदोलन के समर्थकों अपमानित करना चीनी शासकों की ज्ञात रणनीति रही है। शुरुआती चरण में हफ्तों तक शासकों के निर्देश पर चीनी मीडिया ने हांगकांग के उथल-पुथल को नजरअंदाज किया। यह संदेश भेजने का एक रणनीतिक कदम था कि सरकार विरोध के प्रति सहिष्णु है।

हांगकांग विद्रोह पर चीन बैकफुट पर

‘एक देश, दो व्यवस्था’ का फ्रेमवर्क काम नहीं कर पा रहा है
अरुण श्रीवास्तव - 2019-08-24 10:56
चीनी सरकार इस बात से अवगत है कि विश्व बंधुत्व के लिए उदार चेहरा दिखाए बिना कोई भी कठोर कार्रवाई दुखद साबित होगी। यह हांगकांग की अंतर्राष्ट्रीय छवि को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा, और बड़ी संख्या में मुख्य भूमि चीन के हमवतन की भावनाओं को गंभीर रूप से आहत करेगा, जो चीन निश्चित रूप से नहीं चाहेगा। इस पृष्ठभूमि में हॉन्ग कॉन्ग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम का कथन महत्वपूर्ण है कि ‘बेहद घिनौने हिंसक अपराध को कानून के अनुसार कड़ी सजा दी जानी चाहिए’।

शिनझियांग मसले पर मुस्लिम देशों का चीन को समर्थन

धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-07-15 09:53
शिनझियांग मसले पर अमेरिका और यूरोपीय देश खिन्न हैं, क्योंकि वहां के मुसलमानों की धार्मिक आस्था के अधिकार को चीन ने बाधित कर रखा है। गौरतलब हो कि शिनझियांग चीन का पश्चिमी प्रांत है, जो कभी तुर्कीस्तान का हिस्सा था। उसे आज भी चीनी तुर्कीस्तान कहा जाता है। यह क्षेत्रफल के लिहाज से चीन का सबसे बड़ा प्रांत है। लेकिन इस प्रांत में सबसे अधिक संख्या उन उयिघरों की है, जो मुसलमान हैं। चीन एक साम्यवादी धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन उसकी धर्मनिरपेक्षता भारत वाली धर्मनिरपेक्षता नहीं है, जहां सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। चीन में धार्मिक स्वतंत्रता हो हतोत्साह ही नहीं, बल्कि बाधित भी किया जाता है।

ट्रंप पर मुकदमा भारत की अदालतों के लिए नजीर है!

अनिल जैन - 2019-07-06 10:47
अमेरिकी और यूरोपीय सभ्यता-संस्कृति तथा वहां की जीवनशैली की हम लाख बुराई करें, लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कानून का वास्तविक शासन वहीं चलता है और वहां की संवैधानिक संस्थाएं बिना किसी दबाव-प्रभाव या लालच के अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी सजग रहकर काम करती हैं। अमेरिका की एक संघीय अदालत का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ एक फैसला इस सिलसिले में ताजा मिसाल है, जो दुनिया भर की तमाम अदालतों, खासकर भारत की तो हर छोटी-बडी अदालत के लिए एक नजीर है, जिनकी भूमिका और विश्वसनीयता पर इन दिनों संदेह और विवादों के बादल मंडरा रहे हैं। उनके फैसलों पर तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं।

क्या अमेरिका ईरान पर हमला करेगा?

अनिल जैन - 2019-06-24 11:25
अमेरिका ने ईरान पर बम बरसाने का इरादा फिलहाल भले ही मुल्तवी कर दिया हो, मगर दोनों देशों के बीच अशुभ टलने के अभी कोई आसार नहीं नजर नहीं आते। फारस की खाडी में अत्याधुनिक परमाणु मिसाइलों से लैस विशालकाय अमेरिकी नौसेना के बेडे और ऊपर आकाश में लगातार मंडरा रहे लडाकू विमान इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि अमेरिका और ईरान लगभग तीन दशक बाद एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खडे हैं। दोनों के बीच पिछले कुछ समय से लगातार बढते जा रहे तनाव के बीच ताजा मामला है ईरान द्वारा अमेरिका के जासूसी ड्रोन को मार गिराए जाने का।
विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष

आग का गोला न बन जाए पृथ्वी

क्यों बढ़ रहा है पृथ्वी का तापमान?
योगेश कुमार गोयल - 2019-04-20 18:48
गर्मी के मौसम की शुरूआत के साथ ही इस वर्ष भी जिस प्रकार अप्रैल माह के तीसरे ही सप्ताह में प्रकृति ने तेज आंधी तथा बारिश के साथ कुछ राज्यों में जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करते हुए कई दर्जन लोगों की बलि ले ली, उसे विगत कुछ वर्षों से तेजी से बदलते प्रकृति के मिजाज के मद्देनजर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का निरन्तर बिगड़ता मिजाज गंभीर चिंता का सबब बना है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनियाभर में दोहा, कोपेनहेगन, कानकुन इत्यादि बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन होते रहे हैं और वर्ष 2015 में पेरिस सम्मेलन में 197 देशों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए अपने-अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने और 2030 तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया था किन्तु उसके बावजूद इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम उठते नहीं देखे गए हैं। दरअसल वास्तविकता यही है कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के बिगड़ते मिजाज को लेकर चर्चाएं और चिंताएं तो बहुत होती हैं, तरह-तरह के संकल्प भी दोहराये जाते हैं किन्तु सुख-संसाधनों की अंधी चाहत, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने के दबाव के चलते इस तरह की चर्चाएं और चिंताएं अर्थहीन होकर रह जाती हैं।

ग्लोबल आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा चालबाज चीन

वैश्विक आतंकवाद पर कब साफ होगी नीति और नीयत
प्रभुनाथ शुक्ल - 2019-03-15 10:39
वैश्विक आतंकवाद पर दुनिया कितनी संजीदा है इसका अंदाजा संयुक्त राष्ट सुरक्षा परिषद में चीन की चालों से चल गया है। परिषद के स्थायी स्दस्य देशों अमेरिका, ब्रिेटेन, फ्रांस और रसिया को ठंेगा दिखाते हुए चालबाज चीन ने यह बता दिया कि ग्लोबल आतंकवाद पर दुनिया के आंसू सिर्फ घड़ियाली हैं, जमींनी हकीकत दूसरी है। चीन चैथी बार वीटो का इस्तेमाल करते हुए भारत की कूटनीति पर पानी फेर दिया। भारत और उसका मित्र राष्ट अमेरिका चाह कर भी पाकिस्तानी आतंकी एंव जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक अजहर मसूद को अंतरराष्टीय आतंकवादी घोषित कराने में नाकामयाब रहे। हालांकि भारत चीन की फितरत से पूर्व परिचित था। आतंकी मसूद पर सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास हो जाता तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाती। वह किसी देश की यात्रा नहीं कर पाता। हथियार नहीं खरीद सकता था। उसकी संपत्तियां जब्त हो जाती। पुलवामा हमले के बाद भारत को पूरा भरोसा था कि वह अपनी कूटनीति के जरिए दुनिया के देशों को वैश्विक आतंकवाद की भयावहता समझाने में कामयाब होगा और मसूद को अंतर राष्टीय आतंकी घोषित करवा पाएगा, चालाबाज चीन खुद मसूद से डर गया और चैथी बार इस पर तकनीकी अडंगा लगा दिया। जबकि पूरी दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है। जिसमें परिषद से जुड़े सभी स्थाई और अस्थाई देश शामिल हैं।

‘वाटर स्ट्राइक’ से टूटेगी पाकिस्तान की कमर

अब भूखा-प्यासा मरेगा पाकिस्तान!
योगेश कुमार गोयल - 2019-02-22 09:43
पुलवामा फिदायीन हमले के बाद से ही भारत सरकार द्वारा हर वो जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं, जिनके जरिये दहशतगर्द मुल्क पाकिस्तान की कमर तोड़ी जा सके और अगर कहा जाए कि ये कठोर कदम पाकिस्तान के खिलाफ कई स्तर की सर्जिकल स्ट्राइक हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी कड़ी में पहले पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस लेते हुए वहां से आयात होने वाले सामान पर कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी बढ़ाकर उसकी आर्थिक रूप से कमर तोड़ने का महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भी पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाने में सफलता मिल रही है और अब पाकिस्तान को जाने वाला तीन नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी रोकने का फैसला कर ‘वाटर स्ट्राइक’ के जरिये पाकिस्तान को त्राहिमाम्-त्राहिमाम् करने पर विवश किया जा रहा है। जब भी पाकिस्तान के पाले-पासे दहशतगर्दों द्वारा कोई बड़ा आतंकी हमला अंजाम दिया गया, हर बार नदियों का पानी रोके जाने की मांग उठी किन्तु इससे पूर्व कोई भी सरकार इतना कड़ा फैसला लेने की हिम्मत नहीं दिखा सकी। यह तय है कि भारत से पानी रोके जाने से पाकिस्तान की ऐसी कमर टूटेगी कि वह न अपनी जमीन पर आतंकियों को पालने-पोसने में समर्थ होगा और न ही घाटी में अलगाववादियों को समर्थन करने की उसकी हैसियत बचेगी। भारत द्वारा कहा गया है कि वह पूर्वी नदियों पर बांध बनाकर अपने हिस्से का पानी जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब में बन रही बिजली परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल करेगा। दोनों राज्यों में कई बिजली परियोजनाएं बनाई जा रही हैं और इन राज्यों के बाद जो पानी बचेगा, वह राजस्थान तथा अन्य राज्यों को दिया जाएगा।