अभी शेष है कुपोषण से आजादी
लड़कों की बनिस्बत लड़कियां ज्यादा कुपोषित
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2016-08-11 09:49 UTC
लंबे समय से भारत ऐसा देश रहा है, जहां एक ओर संपन्नता और समृध्दि के द्वीप जगमगा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर घोर गरीबी और बदहाली का महासागर हिलोरे मार रहा है। बीते ढाई दशकों से यानी नवउदारीकृत आर्थिक नीतियां लागू होने के बाद से आर्थिक गैरबराबरी यह फासला और बढा है। एक छोटा तबका आला दर्जे के ऐशो-आराम वाली जीवनशैली के मजे ले रहा है और दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में हमारे देश के धनकुबेर शामिल हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश की आबादी के एक बडे हिस्से को भरपेट भोजन तक मयस्सर नहीं है। हमारे लगभग आधे बच्चे कुपोषित हैं। इस स्थिति पर कोई चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था- 'एक ओर देश में हर साल उचित भंडारण के अभाव में लाखों टन अनाज सड जाता है जबकि दूसरी ओर करोडों भारतीयों को भूखे पेट सोना पडता है।’ देश की सर्वोच्च अदालत की इस कठोर टिप्पणी के बाद भी आज तक हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। भंडारण की बदइंतजामी के चलते अनाज के सडने और लोगों के भूख से मरने-बिलबिलाने का सिलसिला लगातार जारी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और दर्दनाक स्थिति तब है जब हम अपनी आजादी के सात दशक पूरा करने की दहलीज पर हैं।