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अंतःकरण मानव प्रकृत्ति का वह केन्द्र है जहां सत्व, रज और तम का वास है। योग में अन्तःकरण का प्रयोग चित्त के अर्थ में किया जाता है। परन्तु चित्त वेदान्त के अनुसार अन्तःकरण का एक स्वरुप है।
सांख्य के अनुसार अन्तःकरण तीन प्रकार के हैं - मन, बुद्धि तथा अहंकार
वेदान्त के अनुसार अन्तःकरण चार प्रकार के हैं - मन, बुद्धि, चित्त तथा अहंकार।
सिद्ध सिद्धान्त के अनुसार अन्तःकरण पांच प्रकार के हैं - मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त और चैतन्य
यही वह अन्तःकरण है जहां मनुष्य जानता है, अनुभव करता है तथा इच्छा करता है।
मानव जीवन की विकास यात्रा के क्रम में देखें तो बुद्धि पहले आता है, उसके बाद अहंकार, फिर मन तथा अन्त में चित्त आता है।



Page last modified on Thursday December 13, 2012 05:25:09 GMT-0000