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तन्त्र में उल्लास

तान्त्रिक कुल (कौल) साधना में उल्लास की अनुभूति को सिद्धि का सोपान कहा जाता है। मद्यादि द्रव्यों के सेवन से चित्त में उल्लास उत्पन्न करने की उसकी अपनी परम्परा है।

इस साधना में सात उल्लास होते हैं। ये हैं -

आरम्भ, जिसमें साधक के तीन चुल्लू से अधिक मद्य पीना वर्जित है, तरुण, यौवनोल्लास, प्रौढ़ उल्लास, तदन्तोल्लास, उन्मनी उल्लास तथा अनवस्था उल्लास।

कौल मार्गियों का मानना है कि सातवी अवस्था पर पहुंचकर साधक परमात्मा में लीन होकर ब्रह्मानंद का अनुभव करने लगता है।

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