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किसान आंदोलन के सबक

कामगार वर्ग भी झुका सकता है सरकार को!
अनिल जैन - 2021-12-13 09:35
एक साल से कुछ ज्यादा दिन तक चले किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के बहुआयामी दमनचक्र का जिस शिद्दत से मुकाबला करते हुए उन्हें अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर किया है, वह अपने आप में ऐतिहासिक है और साथ ही केंद्र सरकार के तुगलकी फैसलों से आहत समाज के दूसरे वर्गों के लिए एक प्रेरक मिसाल भी। इस आंदोलन ने साबित किया है कि जब किसी संगठित और संकल्पित आंदोलित समूह का मकसद साफ हो, उसके नेतृत्व में चारित्रिक बल हो और आंदोलनकारियों में धीरज हो तो उसके सामने सत्ता को अपने कदम पीछे खींचने ही पड़ते हैं, खास कर ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में, जिनमें वोटों के खोने का डर किसी भी सत्तासीन राजनीतिक नेतृत्व के मन में सिहरन पैदा कर देता है। देश की खेती-किसानी से संबंधित तीन विवादास्पद कानूनों का रद्द होना बताता है कि देश की किसान शक्ति ने सरकार के मन में यह डर पैदा करने में कामयाबी हासिल की है।

ममता का सोनिया परिवार पर वार

मोदी का विकल्प राहुल हो ही नहीं सकते
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-12-11 09:56
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2024 चुनाव के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसे गलत नहीं कहा जा सकता। उनकी रणनीति का पहला बिन्दु यह है कि वह राहुल गांधी को नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपना नेता नहीं मानेंगी। चूंकि कांग्रेस राहुल को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, तो ममता बनर्जी कांग्रेस से भी कोई वास्ता नहीं रखेगी। उनकी रणनीति का दूसरा बिन्दु यह है कि वह कमजोर हो रही कांग्रेस की जगह अपनी तृणमूल कांग्रेस को स्थापित करेगी और इस क्रम में उन सारे कांग्रेसियों को अपनी पार्टी में शामिल करेंगी, जो राहुल गांधी से विरक्त होकर कांग्रेस छोड़ना चाह रहे हैं और किसी नये मंच की तलाश में हैं। जाहिर है, ममता बनर्जी उन्हें मंच प्रदान करेंगी।

नागालैन्ड हत्याकांड का जिम्मेवार कौन?

इस त्रासदी के समय हमें नागालैंड के लोगों के साथ होना चाहिए
कृष्णा झा - 2021-12-10 09:48
ट्रक ढलान पर थी जब गोलियों की बौछार शुरू हुई। शांत, हरे भरे पहाड़ों में छाई निस्तब्धता को तोड़ती उस गर्जना में घायलों की चीख और इस आकस्मिक भीषण प्रहार से आहत अचंभित मरते हुए मजदूरों की आह भी शामिल थी। हफ्ते भर की कठिन मेहनत के बाद तिरू घाटी के कोयला खदानों से लौटते ये मजदूर नागालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव की ओर जा रहे थे। वापसी के लिये लंबे रास्ते को छोड़कर वे शॉर्टकट से छह किलोमीटर दूर अपने घर जल्दी पहुंचना चाहते थे। जिन्होंने उन पर यह प्राण घातक हमला किया था वे भारतीय सेना के पैराकमान्डों थे। जोरहट में पोस्टेड ये कमांडों इस सूचना पर घातक हमला करने के लिये छुपकर बैठे थे कि उस क्षेत्र में विद्रोही संगठन के लोग घूम रहे थे।

ममता का कांग्रेस विरोधी रुख

तृणमूल सुप्रीमो भाजपा विरोधी दलों की खो रही हैं सद्भावना
आशीष बिश्वास - 2021-12-09 08:51
बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के बाद, सीपीआई (एम) ने स्वीकार किया कि कुछ प्रमुख मुद्दों पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक मुश्किल, अघोषित सहयोगी के रूप में ब्रांड करना, उल्टा पड़ गया था। वाम दलों ने विपक्षी खेमे के भीतर टीएमसी को ट्रोजन हॉर्स के रूप में देखा। उन्होंने मजदूर वर्ग के प्रति दोनों पक्षों की स्पष्ट शत्रुता, गरीब किसानों की दुर्दशा के प्रति उनकी कथित उदासीनता की ओर इशारा किया, अपने ही रैंक के प्रमुख नेताओं की ओर से घोर भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने की उनकी प्रवृत्ति का उल्लेख नहीं किया।

चुनावी मोड में नरेन्द्र मोदी

क्या उत्तर प्रदेश का किला वह फतह कर पाएंगे?
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-12-08 17:40
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गए हैं। उत्तर प्रदेश चुनाव के कुछ महीने अभी बाकी हैं। कोविड की नई किस्म आमिक्रॉन के कारण यह भी निश्चित नहीं है कि चुनाव अपने सही समय में हो ही जाएंगे, क्योंकि भारत के स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत में आमिक्रॉन फरवरी महीने में अपने पूरे सबाब पर होगा। और दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में चुनाव अभियान के अपने पूरे सबाब पर होने का समय भी वही है। पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु में कोरोना संक्रमण के बीच चुनाव कराने का नतीजा भारत भुगत चुका है, इसलिए पूरी संभावना है कि उससे सबक लेते हुए सरकार कोरोना संक्रमण की एक और नई लहर के बीच चुनाव नहीं करवा पाए। कहा जा रहा है कि जिस डेल्टा किस्म ने भारत पर सितम ढाया था, उस डेल्टा से भी पांच गुना ज्यादा संक्रमणशील है कि आमिक्रॉन किस्म।

उत्तर भारत का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र हरियाणा के फतेहाबाद में

केंद्र का निर्णय वर्तमान समय में लोगों के हितों के विपरीत है
डॉ अरुण मित्रा - 2021-12-07 09:35
जलवायु संकट ने वैश्विक समुदाय को जीवाश्म ईंधन के व्यवहार्य विकल्पों पर बहस करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसके बारे में आम सहमति है कि ये जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्पादन का प्रमुख कारण हैं। इस बात पर भी सहमति है कि नवीकरणीय संसाधन जीवाश्म ईंधन का सबसे अच्छा विकल्प हैं। लेकिन बिजली उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर ऐसी कोई सहमति नहीं है क्योंकि यह कई खतरों से भरा है। यह सब ग्लासगो में हुई बहस में स्पष्ट था। फिर भी विश्व के कुछ भागों में इस कार्य के लिए परमाणु शक्ति की कल्पना की जा रही है। इसलिए हरियाणा में फतेहाबाद के पास गोरखपुर गांव में उत्तर भारत में पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र की खबर को सावधानी से पढ़ा जाना चाहिए।

किसान संघर्ष की ऐतिहासिकता

आंदोलन जारी रहेगा
कृष्णा झा - 2021-12-04 09:36
किसानों की मांगें अभी भी अधूरी हैं। उन्हें पूरा नहीं किया गया, बावजूद इसके कि तीन अन्य कृषि कानूनों को रद्द कर दिया गया मात्र क्षणों में, बिना किसी बहस के। पिछले मॉनसून सत्र में, जो कोविड-19 के आक्रमण के कारण सिर्फ हफ्तेभर चल पाया कम से कम पच्चीस बिल पारित कर दिये गए, प्रतिदिन 2.7 की दर से। इनमें इन्श्योरेन्स के निजीकरण और तीन कृषि कानून बिलों को भी ले लिया गया और वह भी बिना बहस के। इन सब कदमों में भारत के जनवाद के कमजोर होते कंधों की छाप थी। किसी भी बिल पर बहस नहीं हुई। पारित होने के लिये भी ध्वनिमत ही लिये गए बावजूद सारे शोर के। पूरे विरोधी पक्ष को नृशंसता से कुचल दिया गया था। उस समय संसद में चलती इस पूरी गैरकानूनी कार्रवाई का विरोध करने वालों में इस शीत सत्र में बारह सांसदों को निलंबित कर दिया गया।

भाजपा ने ही परिवार आधारित पार्टियों को पोसा है

नरेन्द्र मोदी को परिवारवाद के खिलाफ बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं
एल. एस. हरदेनिया - 2021-12-03 09:32
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि परिवार आधारित राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। मोदीजी के इस कथन से असहमत होना कठिन है, क्योंकि इस तरह की पार्टियों के न तो कोई सिद्धांत होते हैं और ना ही उनमें आंतरिक प्रजातंत्र होता है। परंतु अफसोस की बात है कि स्वयं मोदी की पार्टी को ऐसी पार्टियों से सत्ता में भागीदारी करने में तनिक सा संकोच भी नहीं होता है। यदि ऐसी पार्टियां सचमुच में देश के लिए खतरनाक हैं, तो भाजपा उनके साथ सत्ता में भागीदारी क्यों करती है या उन्हें सहयोग देकर सत्ता में क्यों आती है?

उस भीषणतम गैस त्रासदी को अभी भी भुगत रहा है भोपाल

औद्योगिक इकाइयों की जवाबदेही स्पष्ट की जाए
अनिल जैन - 2021-12-02 11:16
इंसान को तमाम तरह की सुख-सुविधाओं के साजो-सामान देने वाले सतर्कताविहीन या कि गैरजिम्मेदाराना विकास कितना मारक हो सकता है, इसकी जो मिसाल भोपाल में साढ़े तीन दशक पहले देखने को मिली थी, उसे वहां अभी अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी मध्य प्रदेश के दौरे पर होते हैं तो वे अपने भाषण में कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए भोपाल गैस कांड का जिक्र करना नहीं भूलते हैं। मोदी अपने भाषण में उस भयावह गैस कांड के लिए जिम्मेदार अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन के भारत से भाग निकलने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराते हैं। लेकिन उस गैस त्रासदी के बाद जो त्रासदी वहां आज तक जारी है, उसका जिक्र वे कभी नहीं करते।

वाजपेयी-युग के सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री की जांच

उपक्रमों की नई बिक्री में हो सकती है देरी
नन्तू बनर्जी - 2021-12-01 12:03
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की सबसे बड़ी आर्थिक उपलब्धि शायद देश के कुछ सबसे प्रसिद्ध राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों की बिक्री थी। वाजपेयी ने 73 महीने और 13 दिनों की कुल अवधि के लिए भारत के प्रधान मंत्री के रूप में तीन कार्यकालों की सेवा की, ज्यादातर 1998 और 2004 के बीच। अपने शासन के अंतिम पांच वर्षों में, उन्होंने राज्य के स्वामित्व वाले 10 उद्यमों को बेचा। उस समय कुछ लोगों ने सरकार पर गंभीरता से सवाल उठाया था।