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त्रिपुरा में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार लगातार तनाव का सामना कर रही है

भाजपा विधायकों को मिलाने के लिए तृणमूल कांग्रेस सक्रिय
सागरनील सिन्हा - 2021-06-22 09:39 UTC
फिलहाल बीजेपी नेतृत्व को इस बात से संतोष हो सकता है कि वह किसी तरह अपने असंतुष्ट विधायकों को पार्टी छोड़ने से रोककर राज्य में बगावत की आग पर काबू पाने में कामयाब रही है. हालाँकि, आंतरिक दरार मरी नहीं है। पार्टी के महासचिव (संगठन) बीएल संतोष को भेजकर भगवा पार्टी के दिल्ली नेतृत्व की सतर्कता ने असंतुष्टों को अपनी विद्रोही आवाजों को शांत करने के लिए मजबूर कर दिया।

सरकार मगरूर है

मगर विपक्ष तो भी नाकारा है!
अनिल जैन - 2021-06-21 15:21 UTC
भारतीय राजनीति इस समय अपने इतने निकृष्टतम दौर से गुजर रही है कि वह देश की समस्याओं का समाधान करने के बजाय खुद अपने आप में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। किसी भी लोकतंत्र के लिए इससे ज्यादा बुरा दौर और क्या हो सकता है कि जब महंगाई पूरी तरह लूट में तब्दील हो चुकी हो, सत्ता में बैठे लोगों का भ्रष्टाचार अपनी सारी हदें पार कर संस्थागत स्वरूप ले चुका हो, अभूतपूर्व वैश्विक महामारी के चलते लाखों लोग उचित इलाज, दवा और ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ चुके हों, लोगों को अपने परिजनों के शव अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे न होने या श्मशानों में जगह न मिलने के कारण नदी में बहाना पडे़ हों और कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन के नाम पर देश का अधिकांश हिस्सा पुलिस स्टेट में तब्दील हो चुका हो।

आईपीसी की धारा 124ए से संबंधित देशद्रोह को हटाना अनिवार्य है

मोदी सरकार लोकतांत्रिक असहमति को रोकने के लिए इसका दुरूपयोग कर रही है
बिनॉय विश्वम - 2021-06-19 12:20 UTC
जब से आरएसएस के नेतृत्व वाली भाजपा सत्ता में आई है, संविधान की लोकतांत्रिक भावना पर लगातार हमले हो रहे हैं। वास्तव में स्वयं लोकतंत्र और उसके मूल्यों को राज्य सत्ता के प्रबंधकों द्वारा घोर खतरा है। देशभक्ति के नाम पर, एक बिल्कुल अलग रूप धारण करने का प्रयास किया गया है, जिसमें जनता से कोई सरोकार नहीं है और बदले में उनसे कोई प्यार नहीं है। उनके लिए, असहमति को एक अपराध के रूप में दर्शाया गया है और राष्ट्रविरोधी शब्द का इस्तेमाल हर उस व्यक्ति पर हमला करने के लिए किया गया है जिसने ‘हिंदुत्व’ के रास्ते में आने की हिम्मत की।

राज्यसभा में अगले साल बहुमत से और दूर हो जाएगी भाजपा

विधानसभा चुनावों में मिल रही हार भाजपा को पड़ रही है भारी
अनिल जैन - 2021-06-18 11:35 UTC
भाजपा और आरएसएस के अंदरूनी हलकों में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि अगले साल भाजपा और उसके गठबंधन यानी एनडीए को राज्यसभा में बहुमत हासिल हो जाएगा और उसके बाद केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण का कानून लाएगी और समान नागरिक संहिता संबंधी कानून भी पारित कराया जाएगा। भाजपा और आरएसएस के समर्थकों की ओर से यही दावा सोशल मीडिया में भी किया जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि अगले साल होने वाले राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सीटें बढने के बजाय कम हो सकती है।

सत्ता हासिल करने के मिशन 2022 को अंतिम रूप दे रहे अखिलेश

भाजपा के आधार में गिरावट से समाजवादी पार्टी को मिला बढ़ावा
प्रदीप कपूर - 2021-06-17 10:53 UTC
लखनऊः पंचायत चुनावों में हालिया सफलता से उत्साहित अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए मिशन 2022 की तैयारी कर रहे हैं। अखिलेश यादव चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के लिए समर्थन आधार बढ़ाने के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन करने के लिए आक्रामक मूड में हैं।

बुझ गया चिराग?

मौसम का हाल समझने में विफल मौसम वैज्ञानिक का बेटा
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-16 10:49 UTC
रामविलास पासवान दलित नेता थे, लेकिन उनकी छवि दलित नेता की नहीं, बल्कि एक मौसम वैज्ञानिक की बन गई थी। राजनैतिक मौसम का उनका अनुमान सही होता था और हमेशा जीतने वाली पार्टी के साथ वे चले जाते थे। उनकी इस अवसरवादिता के कारण ही उन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है और इसके कारण ही वे 1989 से 2020 के एकतीस साल के दौरान वे लगभग सभी सरकारों का हिस्सा रहे। वे वीपी सिंह सरकार में में ही नहीं, देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में भी मंत्री थे। उसके बाद अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे। उसके बाद बनी मनमोहन सरकार में भी वे कैबिनेट मंत्री थे। मनमोहन सरकार के बाद मोदी सरकार बनी और उसमें भी वे मंत्री थे। जब उनकी मौत हुई, उस समय भी वे मंत्री के अपने पद पर मौजूद थे। 1989 से 2020 के बीच वे सिर्फ दो सरकारों- चंद्रशेखर सरकार और नरसिंहराव सरकार- में मंत्री नहीं थे। इप एकतीस सालों में सबसे ज्यादा दिनों तक उनका मंत्री के पद पर बने रहने का रिकॉर्ड है।

हिमंत विश्व शर्मा सरकार ने प्रभावी ढंग से कोविड से लड़ाई लड़ी

एक महीने पुराने असम मंत्रिमंडल के हाथों कई कठिन काम
सागरनील सिन्हा - 2021-06-15 10:44 UTC
महामारी के समय में सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता कोविड-19 वायरस से निपटने की रही है। यही बात एक महीने पहले बनी हिमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व वाली नई असम सरकार पर भी लागू होती है। हालांकि भाजपा सत्ता में लौट आई, मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की जगह हिमंत ने ले ली, जिन्होंने एक नए मंत्रिमंडल का गठन करके अपनी पारी की शुरुआत की, जो पुराने और नए चेहरों का मिश्रण है।

राम मंदिर निर्माण में चंपत घोटाला

उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना भाजपा के लिए और हुआ दुष्कर
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-14 11:08 UTC
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने दिल्ली फतह तो कर ली। उन्हें मोदी- शाह मुख्यमंत्री पद से हटा नहीं सके, लेकिन क्या वे उत्तर प्रदेश भी फतह कर पाएंगे- इन सवालों पर राजनैतिक पंडित माथापच्ची कर ही रहे थे कि अयोध्या में राममंदिर निर्माण करवा रहे ट्रस्ट द्वारा घोटाले की एक ऐसी खबर आ गई है, जिसे झुठलाना असंभव है। आगामी चुनाव में योगी आदित्यनाथ निश्चय ही राममंदिर के निर्माण को मुद्दा बनाएंगे, लेकिन यह मुद्दा उनके खिलाफ भी जा सकता है, क्योंकि रामजन्म मंदिर निर्माण से घोटाला भी जुड़ गए है। राममंदिर सुनते ही लोगों के जेहन में घोटाला भी गूंजने लगेगा और भाजपा को यह मुद्दा फायदा कम और नुकसान ज्यादा पहुंचाएगा।

प्रधानमंत्री पर क्यों भारी पड़े योगी

मोदी के इर्दगिर्द बुना तिलिस्म समाप्त
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-12 10:18 UTC
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी दिल्ली आए। केन्द्रीय नेताओं से मिले। फिर लखनऊ वापस चले गए। इसके साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से उनके हटाए जाने की अफवाहों पर विराम लग गया। योगी की दिल्ली यात्रा उनकी विजयी यात्रा रही। पहली बार मोदी- शाह की जोड़ी को यह अहसास हुआ कि अपनी इच्छा के अनुसार वे पार्टी में सबकुछ नहीं कर सकते। योगी उन दोनों पर भारी पड़े और उन्हें हटाने का विचार उन्हें त्यागना पड़ा। कहने को तो कहा जा सकता है कि बंगाल के चुनाव नतीजों ने मोदी को कमजोर कर दिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी उसके पहले से ही कमजोर पड़ रहे हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत दिलाने की उनकी क्षमता 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी जीत के पहले से ही संदिग्ध हो चुकी थी। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उनकी पार्टी हारी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तो भाजपा विधानसभा चुनावों में अधिकतर हार का ही सामना करती रही है। असम एक मात्र अपवाद है, जहां मोदी ने भाजपा को जीत दिलाई।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मंत्रिपरिषद को भी महत्वहीन बना दिया है

यही कारण है कि प्रधानमंत्री को मंत्रिपरिषद विस्तार की हड़बड़ी नहीं
अनिल जैन - 2021-06-11 11:08 UTC
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुके हैं लेकिन इन दो सालों में वे अपने मंत्रिपरिषद को भी पूरी तरह आकार नहीं दे पाए हैं। उनकी सरकार का तीसरा साल शुरू हो चुका है लेकिन अभी भी आधी-अधूरी मंत्रिपरिषद से ही काम चल रहा है। इसी वजह से कई कैबिनेट और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री ऐसे हैं जिनके पास दो और तीन से ज्यादा मंत्रालयों का दायित्व है। यह स्थिति बताती है कि प्रधानमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद को कितना महत्व देते हैं और क्यों अधिकांश महत्वपूर्ण फैसले मंत्रिमंडल यानी कैबिनेट में चर्चा के बगैर प्रधानमंत्री अपने स्तर पर ही ले लिया करते हैं।