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नरेंद्र मोदी शासन के तहत तबाही के दो साल

आगे भी अंधेरा ही दिख रहा है
सीताराम येचुरी - 2021-05-29 15:12 UTC
मोदी सरकार के दोबारा चुने जाने के बाद से इन दो वर्षों में नए जोश के साथ भारत को एक कठोर रूप से अपनी अवधारणा में बदलने की आरएसएस परियोजना की प्राप्ति के लिए गति को तेज किया गया। 1925 में इसकी स्थापना पर इसका हिन्दू राष्ट्र बनाना ही घोषित उद्देश्य था। सावरकर के हिंदुत्व के सिक्के को एक राजनीतिक परियोजना के रूप में हिंदू धर्म के साथ जोड़ा गया। 1939 में गोलवलकर द्वारा उन्नत इस परियोजना को प्राप्त करने के लिए एक संगठनात्मक संरचना के साथ वैचारिक निर्माण किया गया। भारतीय संविधान पर इस हमले की नींव आरएसएस की वह परियोजना है। धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक रिपब्लिकन संविधान के इस विनाश ने 2019 के चुनावों के बाद से एक उन्मादी गति प्राप्त कर ली है।

किसान आंदोलन पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट की हैरान करने वाली चुप्पी

आंदोलन के 6 महीने पूरे
अनिल जैन - 2021-05-28 12:19 UTC
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसानों के आंदोलन को छह महीने पूरे हो चुके हैं। यह आंदोलन न सिर्फ मोदी सरकार के कार्यकाल का बल्कि आजाद भारत का ऐसा सबसे बडा आंदोलन है जो इतने लंबे समय से जारी है। देश के कई राज्यों के किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर सर्दी, गरमी और बरसात झेलते हुए छह महीने से दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे हैं। इस दौरान आंदोलन में कई उतार-चढाव आए। आंदोलन के रूप और तेवर में भी बदलाव आते गए लेकिन यह आंदोलन आज भी जारी है। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण, गरमी की मार और खेती संबंधी जरूरी कामों में छोटे किसानों की व्यस्तता ने आंदोलन की धार को थोडा कमजोर किया है, लेकिन इस सबके बावजूद किसानों का हौंसला अभी टूटा नहीं है।

इस कोरोना संकट के काल में नेहरू क्यों याद आते हैं

अवैज्ञानिक सोच हमारे संकट को बढ़ाने का काम कर रहे हैं
एल. एस. हरदेनिया - 2021-05-27 12:10 UTC
27 मई को जवाहरलाल नेहरूजी की पुण्यतिथि थी। उनको स्मरण करते हुए हम कोरोना संकट के इस दौर में उनकी कमी बहुत खलती है। मेरी राय में जवाहरलाल नेहरू एक महान क्रांतिकारी, एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ, एक सक्षम प्रशासक तो थे ही परंतु इसके साथ ही वे वैज्ञानिक भी थे। उनकी स्पष्ट राय थी कि आम आदमी में वैज्ञानिक समझ पैदा करना आवश्यक है। ‘‘विज्ञान ही भूख, गरीबी, निरक्षरता, अस्वच्छता, अंधविश्वास और पुरानी दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति दिला सकता है।‘‘ यह महत्वपूर्ण संदेश पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दस वर्ष पूर्व दिए एक भाषण के दौरान दिया था।

कोरोना महामारी और हम

निबटने के झोलाछाप तरीके ही बढा रहे हैं संकट
अनिल जैन - 2021-05-26 12:05 UTC
भारत में नौकरशाही तो राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बहुत पहले से बनती रही है। आर्थिक, वैदेशिक और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सलाहकार भी सरकार के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की भाव-भंगिमा के अनुरूप सलाह देते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में यह पहली बार देखने को मिल रहा है शीर्ष पदों पर बैठे डॉक्टर और वैज्ञानिक भी पूरी तरह राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं। वे भी सरकार की शहनाई पर तबले की संगत दे रहे हैं, यानी वही सब कुछ बोल रहे हैं जैसा सरकार चाहती है। समझ में ही नहीं आ रहा है कि देश में कोरोना महामारी से उपजे संकट का प्रबंधन कौन संभाल रहा है? डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की सरकार परस्ती का खामियाजा आम लोगों को सिर्फ आर्थिक रूप से ही नहीं उठाना पड रहा है, बल्कि उनकी सेहत के साथ भी गंभीर खिलवाड हो रहा है।

नरेंद्र मोदी फिर 2002 में वापस आ गए हैं

विश्व को संदेह है कि मोदी सरकार महामारी से निपटने की क्षमता रखती है
अमूल्य गांगुली - 2021-05-25 10:00 UTC
नरेंद्र मोदी के लिए पहिया पूरा घूम गया है। जिस तरह 2002 के गुजरात दंगों के बाद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों में वे व्यक्तित्वहीन थे, उसी तरह उन्हें यूरोप और अमेरिका में फिर से निंदा का सामना करना पड़ रहा है, मुख्य रूप से मीडिया। इतना काफी नहीं था, तो सरकारों से भी उन्हें निंदा का सामना करना पड़ रहा है।

भारत का वैक्सिन संकट

गलती कहां हुई?
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-05-24 11:27 UTC
भारत ने कोरोना संकट के दौरान वह सब कुछ देखा, जिसकी कुछ महीने पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लोग अस्पतालां में भर्त्ती होने के लिए दौड़ लगा रहे थे, लेकिन बेड नहीं मिल रहे थे। कहीं कहीं तो बेड की कालाबाजारी हो रही थी। अस्पताल में बेड पाने में असमर्थ लोग ऑक्सीजन के लिए दौड़ रहे थे, ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी। हॉस्पीटल में भर्त्ती लोगों को भी ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी। ऑक्सीजन के बिना हॉस्पीटल में भर्त्ती और हॉस्पीटल से बाहर हजारों क्या लाखां लोगों की मौत हो गई। भारत ने यह भी देखा कि भारी संख्या में लोग शवों में यमुना और गंगा में बहा रहे थे। दाह संस्कार के लिए उनके पास पैसे नहीं रहे होंगे। मामला शवों को बहाने तक सीमित नहीं था, अनेक लोग शवों को गंगा किनारे की रेत में दबा भी रहे थे, जो हवा चलने और रेतों के उड़ने के कारण सबकी आंखों के सामने आ गए।

डूबने से बचने की कोशिश कर रहा है आरएसएस

लोगों की सुरक्षा के लिए सरकार ने व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं किया
बिनॉय विश्वम - 2021-05-22 10:09 UTC
मोदी सरकार का वैचारिक अग्रदूत आरएसएस खुलकर सामने आया है. जबकि प्रधान मंत्री और उनकी टीम अपने विशिष्ट शैली में महामारी की दूसरी लहर से उत्पन्न गंभीर स्थिति को संभाल रही है, आरएसएस के संरक्षक संकट की वास्तविक गंभीरता को समझ सकते हैं। यह एक प्रणालीगत संकट है जिसने सरकार की इमारतों को हिलाना शुरू कर दिया है। आरएसएस यह अनुमान लगा सकता है कि केवल प्रधान मंत्री की सामान्य बयानबाजी से इसे दूर नहीं किया जा सकता है। पवित्र गंगा में तैरते मानव शरीर एक संदेश द रहे हैं। यह संकट के सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक आयाम के बारे में बताता है जो मोदी सरकार की स्वास्थ्य नीति का शुद्ध परिणाम है। अन्य क्षेत्रों की तरह, नीति कॉर्पोरेट पूंजी के असीम लालच की ऋणी है। इससे उत्पन्न मानवीय निराशा और क्रोध कोई सामान्य बात नहीं है जिसे सामान्य उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है।

मध्य प्रदेश में कोविड की स्थिति में सुधार से राहत

सार्वजनिक भागीदारी आधारित मॉडल की सफलता
एल एस हरदेनिया - 2021-05-21 11:51 UTC
भोपालः मध्य प्रदेश की दूसरी कोरोना लहर शुरू होने के बाद से भारी मुश्किलों का सामना करने के बाद पिछले दो-तीन दिनों से लोग कुछ राहत महसूस कर रहे हैं। समाचार पत्र नए मामलों की संख्या में गिरावट और मौतों की संख्या के बारे में रिपोर्ट दे रहे हैं।

दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित भारत क्यों?

सरकार की अविवेकपूर्ण नीतियां इसके लिए जिम्मेदार
डॉ अरुण मित्रा - 2021-05-20 13:15 UTC
कोविड मामलों की संख्या और इससे होने वाली मौतों की संख्या गंभीर चिंता का विषय है। वर्तमान में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दुनिया में कोविड मामलों की कुल संख्या में दूसरे नंबर पर है। यह सच है कि हमारे पास एक बड़ी आबादी है और इसलिए संख्या अधिक है, लेकिन दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ अनुपातिक संख्या की तुलना भी चिंताजनक है। हम एक ही जातीय पृष्ठभूमि से आते हैं, समान संस्कृति, भोजन की आदतें, पोषण की स्थिति है और आय में असमानताओं के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली तक पहुंच में असमानताएं समान हैं।

कोरोना ने कामकाजी महिलाओं को बना दिया है बेरोजगार

घरों में काम करने वाली महिलाओं की सरकार सहायता करे
एल. एस. हरदेनिया - 2021-05-19 09:53 UTC
लॉकडाउन के कारण वेतनभोगी लोगों को छोड़कर समाज का कोई वर्ग ऐसा नहीं है जिसकी आय लगभग शून्य न हो गई हो। इसी तरह के वर्ग में घरेलू कामकाज करने वाली महिलाएं (जिन्हें डोमेस्टिक वर्कर कहा जाता है) शामिल हैं।