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क्या नए राष्ट्रपति निभा पाएंगे भारतीय संघ के मुखिया की जिम्मेदारी?

के आर नारायणन होने चाहिए राष्ट्रपतियों के रोल माॅडल
अनिल सिन्हा - 2017-06-24 11:59 UTC
वास्तव में, भारत के राष्ट्रपति का दायित्व एक संघीय गणराज्य के संवैधानिक मुखिया के रूप में काम करने का होता है। इस पद की कल्पना करते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने जो अपेक्षाएं इस पद से की थीं वे मूलतः यही थीं कि इस पद पर बैठा व्यक्ति भारतीय संघ को बाहर या भीतर से आ रही चुनौतियों से निबटने में राष्ट्र का नेतृत्व करे। यही वजह है कि उसे कई विशेषाधिकार दिए गए जिसका वह असामान्य और आपात स्थिति में इस्तेमाल कर सके। अगर ध्यान से देखें तो राष्ट्पति को कैबिनेट के निर्णयों पर खामोशी से दस्तखत करने वाला पदाधिकारी बनाने का संविधान का कोई इरादा नही है। इसके बदले यह उसे ऐसा पदाधिकारी बनाना चाहता है जो भारतीय गणराज्य के संघीय चरित्र की रक्षा करे।

राष्ट्रपति चुनावः किसी वर्ग विेशेष से जोड़कर निर्णय लेना उचित नहीं

डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2017-06-23 10:23 UTC
देश का यह गैर राजनीतिक सर्वोपरि पद राष्ट्रहित एवं जनहित की दृष्टि में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसकी निष्पक्ष भूमिका देश को संकटकालीन स्थिति से बाहर निकालते हुए अस्मिता एवं गौरव की रक्षा में सहायक पृष्ठभूमि निभाती है। इस पद पर आसीन व्यक्ति से देश को काफी आशाएं होती हैं। लोकतंत्र में भटके नेतृत्व को दिशा निर्देश एवं संकटकाल की स्थिति में महत्वपूर्ण निर्णय की पृष्ठभूमि इस पद की सार्थकता को दर्शाती है। राष्ट्रपति देश के सर्वोपरि पद पर विराजमान देश का प्रथम नागरिक होता है।

फिर आपातकाल की ओरः मीडिया की स्थिति बेहद चिंताजनक

अनिल जैन - 2017-06-23 03:49 UTC
आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का एक स्याह और शर्मनाक अध्याय...एक दुरूस्वप्न...एक मनस और त्रासद कालखंड! पूरे बयालीस बरस हो गए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की सलामती के लिए आपातकाल लागू कर समूचे देश को कैदखाने में तब्दील कर दिया था। विपक्षी दलों के तमाम नेता और कार्यकर्ता जेलों में ठूंस दिए गए थे। सेंसरशिप लागू कर अखबारों की आजादी का गला घोंट दिया गया था। संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका आदि सभी संवैधानिक संस्थाएं इंदिरा गांधी के रसोईघर में तब्दील हो चुकी थी, जिसमें वही पकता था जो वे और उनके बेटे संजय गांधी चाहते थे। सरकार के मंत्रियों समेत सत्तारुढ दल के तमाम नेताओं की हैसियत मां-बेटे के अर्दलियों से ज्यादा नहीं रह गई थी। आखिरकार पूरे 21 महीने बाद जब चुनाव हुए तो जनता ने अपने मताधिकार के जरिए इस तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से ऐतिहासिक बगावत की और देश को आपातकाल के अभिशाप से मुक्ति मिली।

राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी

एक सुखद अनुभवों वाला कार्यकाल
कल्याणी शंकर - 2017-06-21 11:50 UTC
प्रणब मुखर्जी 25 जून को रिटायर्ड हो रहे हैं। उस दिन उनकी जगह कोई और राष्ट्रपति बन जाएंगे। चूंकि भाजपा उनके दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि दूसरे कार्यकाल में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

रामनाथ कोविंद राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार

एक तीर से कई निशाने
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-06-20 13:22 UTC
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बिहार के राज्यपाल डाॅक्टर रामनाथ कोविंद को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर वास्तव में सभी को चैंका दिया है। इसका कारण यह है कि जिन नामों की चर्चा राजग की उम्मीदवारी को लेकर हो रही थी, उनमें यह नाम था ही नहीं। हां, कुछ लोग यह अनुमान अवश्य लगा रहे थे कि प्रधानमंत्री शायद किसी दलित को इस पद के लिए चुनें। जब दलित राष्ट्रपति की चर्चा होती थी, तो बात आदिवासी राष्ट्रपति की ओर बढ़ जाती थी और तब झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के नाम की भी चर्चा होने लगती थी। जब दक्षिण भारत के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने की बात आती थी, तो लोग वेंकैया नायडू का नाम भी लेने लगते थे, लेकिन जिस दिन भाजपा अमित शाह ने राष्ट्रपति के नाम पर सहमति बनाने वाले तीन लोगों की एक समिति में श्री नायडू का नाम डाला, उसी दिन जाहिर हो गया कि श्री नायडू के उम्मीदवार बनने की संभावना समाप्त हो गई है।

गोरखालैंड राज्य के लिए फिर उबाल

बिमल गुरुंग के नहले पर ममता बनर्जी का दहला
आशीष बिश्वास - 2017-06-19 12:51 UTC
दार्जिलिंग और आसपास के पहाड़ी इलाकों में एक बार फिर अलग गोरखालैंड राज्य के लिए राजनैतिक पारा चढ़ गया है। आंदोलन हो रहे हैं और गिरफ्तारियां भी हो रही हैं। छापे भी मारे जा रहे हैं और कार्यालय भी बंद किए जा रहे हैं। इस इस बीच आंदोलन चला रही मुख्य पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता केन्द्र और राज्य सरकारों के साथ बातचीत के लिए भी लाॅबिइंग में लगे हुए हैं, लेकिन दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आंदोलनकारियों से बातचीत की संभावना से इनकार कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन

भाजपा को सता रही है इसकी चिंता
प्रदीप कपूर - 2017-06-17 11:52 UTC
लखनऊः 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में एक महागठबंधन बनने की संभावना हवा में तैर रही है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि इससे उसे कोई खतरा नहीं है।

आपातकाल के सबकः लोकतंत्र विरोधी प्रावधानों को देश सहन नहीं करेगा

अनिल सिन्हा - 2017-06-16 11:25 UTC
आपातकाल 25 जून, 1975 की रात को जब लागू हुआ तो आम लोगों को वास्तव में पहली बार पता चला कि संविधान का यह प्रावधान क्या मायने रखता है। असलियत यह है कि देश में यह तीसरी बार लगा था और जब लगा था तो दूसरी दफा का आपातकाल जारी ही था। आपात काल पहली बार 1962 में चीन के युद्ध के समय लगा था और दूसरी बार बंाग्लादेश युद्ध के समय। यही वजह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह सलाह दी गई और बेटे संजय गांधी की तरफ से दबाब डाला गया तो वह शुरू में इसके लिए तैयार नहीं थीं। वह बाद में मान गईं।

भाजपा में गाय पर घमसान

क्या संघ परिवार राजनाथ को सुनेगा?
अमूल्य गांगुली - 2017-06-15 12:28 UTC
राजनाथ सिंह ने रोशनी देख ली है, पर क्या संघ परिवार के अन्य लोग भी उसे देख पाएंगे? केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी किसी से यह नहीं कह रही है कि वे क्या खाएं और क्या पहनें? इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत बहुलतावादी देश है और हम इस वास्तविकता को समझते हैं कि यहां सांस्कृतिक विभिन्नताएं हैं।

कर्ज से दबकर किसानों की आत्महत्या

कृषि में गंभीर सुधार करने की जरूरत
कल्याणी शंकर - 2017-06-14 11:31 UTC
हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन ने पिछले दिनों ट्विट किया कि यदि खेती की स्थिति बिगड़ती है तो किसी की स्थिति अच्छी नहीं रहेगी। इसलिए सरकार को चाहिए कि किसानों की बेहतर स्थिति को वह अपने सभी कार्यक्रमों और नीतियों का केन्द्र बनाए। विख्यात कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन ने सोशल मीडिया में अपने ये विचार उस समय रखे, जब मंदसौर में पुलिस की गोली से किसानों के मरने की खबर आई थी।