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केरल स्थानीय निकायों के चुनाव

वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सफलता के पीछे का सच
पी श्रीकुमारन - 2015-11-10 16:30 UTC
तिरुअनंतपुरमः केरल में बदलाव की बयार बहती दिखाई दे रही है। पिछले दिनों प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनावों के संदेश स्पष्ट हैं।

बिहार चुनाव के नतीजे: जाति फैक्टर की उपेक्षा भाजपा को पड़ी भारी

उपेन्द्र प्रसाद - 2015-11-10 02:43 UTC
बिहार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के लिए सिर्फ और सिर्फ जाति फैक्टर जिम्मेदार है, जिसकी उपक्षा भारतीय जनता पार्टी ने वहां पूरी तौर पर कर दी। 1990 के मंडल आयोग की कुछ सिफारिशें लागू करने की घोषणा वीपी सिंह ने की थी, उस समय भारतीय जनता पार्टी ने उसका विरोध किया था। उसके कारण उसकी छवि पिछड़ा और दलित विरोधी बन गई थी। यही कारण है कि उसे लालू को सत्ता से बाहर करने के लिए मंडल आंदोलन के समर्थक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश कर चुनाव लड़ना पड़ा था और उसमें वह सफल भी हुई।

असहिष्णुता पर बहस: जातीय असहिष्णुता पर कोई सम्मान क्यों नहीं लौटाता?

उपेन्द्र प्रसाद - 2015-11-07 10:36 UTC
आजकल सम्मानों और पुरस्कारों को लौटाने की होड़ लगी हुई है। लौटाने वाले लोग कह रहे हैं कि देश में सहिष्णुता समाप्त हो गई है या हो रही है और इस प्रवृति का विरोध करते हुए वे अपने सम्मान और पुरस्कार लौटा रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या हमारा समाज वाकई बहुत सहिष्णु रहा है? जिस असहिष्णुता के विरोध में सम्मान वापस लौटाए जा रहे हैं, क्या वह समाज में अभी अभी आई है? आखिर पिछले दिनों कुछ ऐसा क्या नया हुआ, जिसने कुछ सहिष्णु लोगों को हिलाकर रख दिया है?

प्रधानमंत्री मोदी को बिहार से आगे देखना चाहिए

निवेशकों की चिंता को उन्हें दूर करना चाहिए
कल्याणी शंकर - 2015-11-06 10:46 UTC
बिहार चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी को आगे देखते हुए अपने सुधार कार्यक्रमों को पूरा करने में लग जाना होगा। अगर उन्होंने वैसा नहीं किया, तो विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे सारे प्रयास व्यर्थ चले जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव जीतना नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। दिल्ली चुनाव में हार का स्वाद चखने के बाद तो बिहार का चुनाव जीतना नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत जरूरी हो जाता है, ताकि वे साबित कर सकें कि उनके नाम का जादू अभी समाप्त नहीं हुआ है। यही कारण है कि उन्होंने बिहार में दो दर्जन से भी ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित किया। इससे पता चलता है कि वे बिहार चुनाव को कितना महत्व दे रहे थे। मीडिया द्वारा बिहार चुनाव को इतना उछाला गया कि इसने दुनिया भर के ध्यान को आकर्षित कर रखा था। नरेन्द्र मोदी के लिए बिहार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा उनकी पार्टी राज्यसभा में अपनी सदस्य-संख्या बढ़ा सकती है।

मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा क्यों नहीं?

पश्चिमी उड़ीसा में कोसली पढ़ाई की उपेक्षा
साकेत श्रीभूषण साहू - 2015-11-06 10:44 UTC
शिक्षा के माध्यम का मतलब वह भाषा होती है, जिसे कक्षा में पढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यदि कोई छात्र उस भाषा से परिचित नहीं है, जिस भाषा में उसे कक्षा में पढ़ाया जाना है, तो निश्चय ही वह भाषा उसके लिए एक विदेशी भाषा है। यही कारण है कि यदि वह छात्र पढ़ाई को समझ नहीं पाता है, तो वह स्वाभाविक ही है। किसी विदेशी भाषा में किसी बच्चे को पढ़ाने का मतलब है कि उसे बिना तैराकी सिखाए गहरे पानी में उतार देना।

भारत को रुपया रूबल व्यापार का प्रस्ताव मान लेना चाहिए

मोदी और पुतिन की बातचीत में सुरक्षा और व्यापार पर होगा जोर
नन्तू बनर्जी - 2015-11-05 10:27 UTC
रूस ने भारत को वस्तु विनिमय व्यापार को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। इस वस्तु विनिमय व्यापार को रूपया- रूबल व्यापार भी कहा जाता रहा है। रूस जब सोवियत संघ का हिस्सा था, तो उसके साथ इस तरह के व्यापार का समझौता था। लेकिन बाद में वह समाप्त हो गया। उस व्यापार को शुरू करने का एक नया प्रस्ताव बहुत ही सही समय पर आया है। भारत को इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

बराक ओबामा की मध्यपूर्व नीति को झटका

पुतिन ने अमेरिका की धाक वहां समाप्त कर दी
अरुण श्रीवास्तव - 2015-11-05 10:26 UTC
सीरिया में अमेरिकी वर्चस्व को उस समय बहुत बड़ा झटका लगा, जब रूस ने वहां उग्रवादियों के खिलाफ जमकर बमबारी शुरू कर दी। उसके बाद ओबामा प्रशासन ने अपना चेहरा बचाने के लिए आईएसआईएस के खिलाफ अपने सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी है।

नरेन्द्र मोदी का अति पिछड़ा कार्ड

बैकवर्ड फाॅरवर्ड की लड़ाई में एक नया मोड़
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-11-02 10:22 UTC
चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव ने इस चुनाव को बैकवर्ड फाॅरवर्ड की लड़ाई करार दिया था। वह 1990 के दशक की भाषा बोल रहे थे। 2005 से एक के बाद एक 5 आम चुनावों मंे पराजय का सामना करने के बाद मुस्लिम-यादव समीकरण पर से उनका भरोसा उठ गया था। उन्हें पता चल गया था कि जिसे वे मुस्लिम-यादव समीकरण की जीत बताया करते थे, वास्तव में वह पिछड़े वर्गों के लोगों की लामबंदी के कारण संभव हुआ करती थी। इस सत्य के अहसास के साथ उन्होंने नीतीश कुमार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और वैसा करते समय बिहार के चुनाव को उन्होंने बैकवर्ड फाॅरवर्ड की लड़ाई बनाने का मन बना लिया था। उन्हें पता है कि पिछड़े वर्गो के साथ उनके द्वारा किए गए विश्वासघात के कारण अब वे वर्ग उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर पाएंगे और इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार को अपना मुखौटा बनाने का फैसला कर लिया।

आरक्षण मसले पर भारी पड़ रहे हैं मोदी

नीतीश और लालू के पास जवाब नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-11-02 10:20 UTC
लालू यादव और नीतीश ने जब बिहार में आरक्षण को एक चुनावी मुद्दा बनाया था, तो उन्हें इसका अंदाज नहीं था कि यह मुद्दा ऐसा मोड़ ले लेगा, जहां उनको लेने के देने पड़ने लगेंगे। नरेन्द्र मोदी ने अब आरक्षण के उनके ही हथियार से उन पर ही हमला करना शुरू कर दिया है और उनके पास बचाव में कुछ कहने को रह नहीं गया है।
भारत

अभी और डूबेगी कांग्रेस

राहुल गांधी स्वाभाविक राजनीतिज्ञ नहीं हैं
कल्याणी शंकर - 2015-10-30 10:36 UTC
एक सौ तीस साल पुरानी कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर नये और पुराने का द्वंद्व सामने आ रहा है। माखनलाल फोतदार की नई पुस्तक ’’ चीनार लीव्स ’’ इस लड़ाई को सामने ला रही है। फोतेदार वरिष्ठ कांग्रेसियों के उस डर को जाहिर कर रहे हैं, जिसे अनुसार राहुल गांधी में नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है और वे पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ भी नहीं हो सकते हैं।