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किसानों के मुद्दों से ध्यान हटाते हैं दंगे

सांप्रदायिक तनाव से सभी पार्टियां उठाती हैं फायदा
प्रदीप कपूर - 2015-10-15 10:52 UTC
लखनऊः क्या राजनैतिक पार्टियां लोगों की मूल समस्या से जनता का ध्यान हटाने के लिए सांप्रदायिक दंगे कराती हैं? दादरी दंगों के बाद महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, गन्ना के बकायों के भुगतान न हो पाने के कारण किसानों में पनपा आक्रोश और भूमि अधिग्रहण कानून से मोहभंग जैसे मसले मीडिया से गायब क्यों हो गए हैं?

मोदी बनाम भारतीय जनता पार्टी

क्या प्रधानमंत्री संघ परिवार को जीत पाएंगे?
अमूल्य गांगुली - 2015-10-15 10:49 UTC
जिस तरह से कांग्रेस के जीन में भ्रष्टाचार भरा हुआ है, उसी तरह भारतीय जनता पार्टी के जीन में सांप्रदायिकता का वास है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार बार घोषणा कर रहे हैं कि उनकी प्राथमिका सिर्फ और सिर्फ विकास है। लेकिन पार्टी उन्हें अपनी ओर खींच रही है और उनकी सरकार को सांप्रदायिक रंग दे रही है। और यदि सांप्रदायिकता का रंग सरकार और देश पर चढ़ा, तो फिर देशी अथवा विदेशी निवेशक निवेश करने से डरेंगे। सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के साथ हो रहे हितों के इस टकराव में विजयी हो पाएंगे?

बिहार के पहले चरण का चुनाव: रिकार्ड मतदान के मायने

उपेन्द्र प्रसाद - 2015-10-13 11:12 UTC
बिहार विधानसभा के पहले चरण में 57 फीसदी से भी ज्यादा मतदान हुए। मतदान का यह फीसदी 2010 के विधानसभा चुनावों से ज्यादा तो है ही, पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा भी ज्यादा है। 2010 में इन 49 सीटों पर कुल मिलाकर करीब 51 फीसदी मतदान हुए थे। जाहिर है, इस बार मतदान 6 फीसदी ज्यादा हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत 56 था। यानी लोकसभा का मतदान प्रतिशत भी इस बार बिहार विधानसभा के लिए हुए चुनाव के मतदान फीसदी के सामने कम साबित हो गया, जबकि पिछली बार नरेन्द्र मोदी की लहर चल रही थी। इस बार चुनाव प्रचार के दौरान किसी तरह की लहर नहीं दिखाई पड़ रही थी।

महाराष्ट्र में 'सनातन' आतंक को सत्ता की शह

संस्था की वेबसाइट पर लोगों के लिए निर्देश
अनिल जैन - 2015-10-13 11:11 UTC
हमारे देश में महाराष्ट्र की ख्याति एक ऐसे सूबे के रूप में रही है, जिसकी सरजमीं से कई प्रगतिशील और सुधारवादी आंदोलनों का सूत्रपात हुआ और जहां पैदा हुए कई क्रांतिकारी संत कवियों और समाज सुधारकों ने लोगों को अंधविश्वासों और तमाम तरह की रूढियों की कैद से आजाद करा कर उन्हें उदात्त मानवीय मूल्यों और विचारों से अनुप्राणित किया है। आज उसी महाराष्ट्र में अंधविश्वासों और उन पर आधारित धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ बोलना या लिखना बेहद जोखिम भरा काम हो गया है। जो कोई यह काम करने की हिम्मत करता है, उसे धर्म के ठेकेदार बने लफंगों द्बारा पहले तो धमकी दी जाती है और फिर उस पर या तो जानलेवा हमले किए जाते हैं या फिर उसकी हत्या कर दी जाती है। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी पत्थर या बम बरसाए जाते हैं। यह एक किस्म का आतंकवाद है जिसे सनातन संस्था नामक एक संगठन चला रहा है और महाराष्ट्र की सरकार मूकदर्शक बनी हुई है।

दादरी के भूले हुए सबक

सबसे पहले प्रशासनिक विफलता को दुरुस्त करें
सुगतो हाजरा - 2015-10-10 10:47 UTC
दो समुदायों के बीच पनप रहे टकराव उस समय विस्फोटक रूप धारण कर लेते हैं जब प्रशासनिक व्यवस्था विफल हो जाती है और जिन संस्थाओं को हमने लोगों में सद्भाव बनाए रखने के लिए बनाया है, वे काम करना बंद कर देती हैं। और जब वे काम करना बंद कर देती हैं, तो उसी तरह की घटनाएं घटती हैं, जिन्हें हमने पिछले दिनों दादरी में देखा। वहां कुछ लोगों ने अफवाह फैलाई और फिर एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी गई।

गाय की राजनीति बिहार में हावी

विकास का मुद्दा हो गया है बाहर
कल्याणी शंकर - 2015-10-10 10:44 UTC
किसी ने यह नहीं सोचा था कि बीफ पर प्रतिबंध लगाने का मसला और आरक्षण बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दे के रूप में हावी हो जाएंगे। लेकिन वहां की राजनैतिक पार्टियां विकास के मुद्दे को भूलकर उनकी ही चर्चा में लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार ने भी विकास के मुद्दे को पीछे धकेल दिया है। हिन्दू गाय की पूजा करते हैं। गाया अब बिहार चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गई है।

लालू का साथ पड़ रहा है नीतीश को भारी

यादव नेता के बयानों से हो रहा है नुकसान
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-10-08 11:03 UTC
लोकसभा चुनाव हार के बाद अपने राजनैतिक अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे नीतीश ने लालू के साथ हाथ मिला लिया था। उनके दल की सरकार अल्पमत में आ गई थी, इसलिए भी लालू का समर्थन लेना उनके लिए जरूरी हो गया था। लालू यादव एक के बाद एक 5 आम चुनाव हार चुके थे। 2005 फरवरी में हुए विधानसभा सभा चुनाव में उन्हें 75 सीटें मिलीं। उसी साल नवंबर में हुए विधानसभा के चुनाव में जीती गई सीटों की संख्या घटकर 55 हो गई और 2010 में हुए विधानसभा के चुनाव में तो लालू के मात्र 22 विधायक ही जीत पाए थे। इस दौरान 2009 और 2014 में हुए लोकसभा चुनावों मंे भी लालू का दल हारा। उनके लिए सबसे बुरी बात तो यह थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी बीवी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती भी चुनाव हार गईं थी। उसके पहले 2010 में हुए विधानसभा के चुनाव में भी राबड़ी देवी दोनों जगहों से चुनाव हारी थीं। लालू यादव खुद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र सीट से चुनाव हारे थे, हालांकि एक अन्य सीट सारण से चुनाव जीतकर वे लोकसभा में पहुंचने में सफल हो गए थे।

दादरी बीफ हत्या मुजफ्फरनगर की है पुनरावृति

मिशन 2017 के लिए भाजपा की तैयारी
प्रदीप कपूर - 2015-10-08 10:59 UTC
लखनऊः दादरी में अखलाक की यह कहते हुए की गई हत्या कि वह बीफ खा रहा था मुजफ्फरपुर घटना की याद दिला देता है। वह घटना लोकसभा की तैयारियांे के बीच घटी थी और यह घटना उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच घटी है।

क्या भाजपा-एसएनडीपी गठबंधन सफल हो पाएगा?

हनीमून जल्द ही समाप्त हो सकता है
पी श्रीकुमारन - 2015-10-06 10:22 UTC
तिरुअनंतपुरमः भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का सिर आजकल सातवें आसमान पर है। इसका कारण पार्टी का श्री नारायण धर्म परिपालना योगम ( एसएनडीपी) के साथ किया गया गठबंधन है। यह गठबंधन हाल ही मे हुआ। गठबंधन के पहले योगम के महासचिव वेल्लापल्ली नतेशन की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ बैठक हुई थी।

गोमांस पर लालू का बयान भारी पड़ सकता है नीतीश गठबंधन पर

उपेन्द्र प्रसाद - 2015-10-06 10:19 UTC
शुरू से ही बिहार का चुनाव एक अनिश्चय भरा चुनाव दिखाई पड़ रहा था। 1990 के बाद का यह पहला चुनाव है, जिसमें किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। नीतीश और लालू के एक मंच पर आ जाने और कांग्रेस का भी साथ मिल जाने के बाद यह गठबंधन बेहद मजबूत बन गया था। लालू यादव का मूल आधार उनकी अपनी जाति यादव है। वे नीतीश को पसंद नहीं करते, लेकिन जब भाजपा नेताओं ने जंगल राज का मुद्दा उठाया और भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की मांग कर दी, तो यादव जाति के लोग नीतीश की तरफ झुकने लगे थे। इन दोनों घटनाओं के कारण लालू और नीतीश के गठबंधन की मजबूत और बढ़ी। लेकिन नरेन्द्र मोदी का जादू भी बिहार में अभी कम नहीं हुआ है। उनकी सभाओं मंे उमड़ रही भीड़ और प्रदेश के अति पिछड़े वर्गो के बीच लालू अलोकप्रियता का लाभ भी भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा था। जाहिर है, टक्कर कांटे की थी।