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विश्व हिन्दी सम्मेलन: पहली बार होगा भोपाल में इसका आयोजन

एल एस हरदेनिया - 2015-09-09 11:21 UTC
भोपालः 10 सितंबर से मध्यप्रदेश की राजधानी में विश्व हिन्दी सम्मेलन शुरू हो रहा है। भोपाल के लिए यह पहला मौका है। इसमें 2000 से भी ज्यादा अतिथि हिस्सा ले रहे हैं। यह सम्मेलन 4 दिनों तक चलेगा।

भाजपा आरएसएस का दिल्ली सम्मेलन

भगवा एजेंडे का केन्द्र पर फिलहाल दबाव नहीं
अमूल्य गांगुली - 2015-09-09 11:18 UTC
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी सरकार को प्रमाण पत्र जारी करते हुए कहा कि यह सही दिशा में आगे बढ़ रही है। यह प्रमाण पत्र संघ ने मोदी सरकार को अपने दिल्ली के सम्मेलन के बाद दिया।

भाजपा से दोस्ती को लेकर एसएनडीपी ने पलटी मारी

इतिहास आखिर नतेशन ने ऐसा क्यों किया?
पी श्रीकुमारन - 2015-09-07 11:09 UTC
तिरूअनंतपुरमः राजनीति में एक सप्ताह का समय बहुत लंबा होता है। यदि श्री नारायण धर्म परिपालना योगम पीठ के महासचिव वेल्लापल्ली नतेशन से यह सवाल पूछ जाय, तो वह भी इस बात से अपने आपको सहमत पाएंगे।
भारत: दिल्ली

औरंगजेब रोड का नाम परिवर्तन

इतिहास के ऊपर सांप्रदायिकता की जीत
हरिहर स्वरूप - 2015-09-07 11:06 UTC
दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम ही क्यों बदला जाए, तुगलक रोड का नाम क्यों नहीं? औरंगजेब की तरह मुहम्मद बिन तुगलक भी अत्याचारी था। तुगलकी फरमान कितने डरावने होते थे, यह सबको पता है। अकबर भी मुसलमान था। उसके नाम से कोई रोड क्यों होना चाहिए? मुस्लिम शासको के नाम पर बने रोडो का नाम बदलने से इतिहास नहीं बदल जाता। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली का इतिहास बदलने के लिए औरंगजेब रोड का चुनाव किया है और उसका नाम बदल डाला है। औरंगजेब रोड का नाम अब बदल भी दिया गया है और बोर्ड पर वह नाम हटाकर एपीजे अब्दुल कलाम कर दिया गया है। लेकिन इस बदलाव का क्या मतलब है? इस बदलाव से दिल्ली और हिन्दुस्तान का इतिहास नहीं बदल जाता। यही कहा जा सकता है कि यह निर्णय संकीर्णतावादी था।

शास्त्री की वाशिंगटन यात्रा को दो बार टाला गया

प्रदेश में भारत पाक संबंध द्विपक्षीय एजेंडे में सबसे ऊपर था
कल्याणी शंकर - 2015-09-04 11:04 UTC
ताशकंद समझौते के बाद तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की वाशिंगटन यात्रा तय की गई थी, पर यात्रा हो न सकी। सच कहा जाय तो उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में वाशिंगटन की यात्रा दो बार हुई थी। पहली यात्रा जून 1965 के लिए तय की गई थी। पर उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅनसन ने उसे स्थगित कर दिया। वह शास्त्रीजी के लिए बहुत ही निराशाजनक था। दूसरी यात्रा 31 जनवरी, 1966 से 5 फरवरी, 1966 के लिए तय हुई थी। यदि शास्त्री जी जिंदा रहते, तो वे एक विजयी राजनेता के रूप में वाशिंगटन की यात्रा करते।

अब कैडर तैयारी पर नजर है मायावती की

प्रदेश में फिर से केन्द्रीय भूमिका में आने की कोशिश
प्रदीप कपूर - 2015-09-04 11:01 UTC
लखनऊः मायावती मिशन 2017 के लिए शुरू से ही गंभीर रही है, पर उसके नजदीक आने के साथ ही बसपा सुप्रीमो की गंभीरता बढ़ती जा रही है। अब उस चुनाव मे जीतकर अपनी सरकार बनाने के लिए अपनी पार्टी का कैडर बनाने की योजना पर काम कर रही है।

लालू के भाषण ने केजरीवाल को किया नीतीश से दूर

मंडल राज की बात से कांग्रेस भी असमंजस में
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-09-02 11:33 UTC
नई दिल्लीः पटना में लालू. नीतीश और कांग्रेस गठबंधन द्वारा आयोजित स्वाभिमान रैली का उद्देश्य अन्य रैलियों की तरह गठबंधन की चुनावी संभावना को बेहतर बनाना था। संभावना बेहतर हुई है या नहीं, इसका पता तो बाद में लगेगा, लेकिन उस रैली के अगले दि नही आम आदमी पार्टी ने घोषणा कर दी कि उनके नेता अरविंद केजरीवाल बिहार में नीतीश के लिए प्रचार नहीं करेंगे। अरविंद केजरीवाल ही नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के किसी अन्या नेता द्वारा भी नीतीश के समर्थन में प्रचार करने की संभावना को समाप्त कर दिया गया।

मोदी सरकार की विफलता अब स्पष्ट है

सड़कों को नया नाम देना उपलब्धि नहीं
अमूल्य गांगुली - 2015-09-02 11:30 UTC
मोदी सरकार के पहले 15 महीने की दो प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं? व्यंग्य करने वाले कहेंगे कि सरकार की दो प्रमुख उपलब्धियों में एक योजना आयोग को समाप्त करना और दूसरा औरंगजेब रोड का नाम बदलकर अब्दुल कलाम रोड कर देना रहा।

नीतीश की स्वाभिमान रैली

विकास की गंगा पर जाति की गंगा हावी
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-09-02 11:28 UTC
नीतीश के नेतृत्व वाले राजनैतिक गठबंधन ने पटना में एक रैली आयोजित कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया और चुनाव प्रचार किस दिशा में जाएगा, इसे भी तय कर दिया। बहुत सालों के बाद किसी सभा में लालू यादव ने अपनी पिछड़ों और खासकर अपनी जाति का नाम इस तरह से लिया, जिससे अगड़ी जातियों के लोग उनसे दूर भाग जाएं। 1990 के मंडल आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए चुनावों में ही जाति को सार्वजनिक सभाओं में इतना तूल दिया था। बाद में चारा घोटाला में फंसने के बाद जब लालू यादव का पतन शुरू हो गया, तो उन्होंने अगड़ी जातियों पर भी डोरा डालना शुरू कर दिया था और उनकी कोशिश अगड़ी जातियों के साथ गठबंधन करने की थी। वे पिछड़े वर्ग की राजनीति से निकलकर यादव, मुस्लिम और राजपूत का गठबंधन भी करना चाहते थे। अपनी जाति के बाहर के पिछड़ों के प्रति लालू का रवैया सही नहीं था और वे उन्हें सत्ता में भागीदारी नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंनें यादवों के साथ मुसलमानों के साथ समीकरण बनाकर उसमें राजपूतों को भी शामिल करने की कोशिश की। उसमें वे सफल नहीं हुए, तो फिर उन्होंने भूमिहारों के साथ यादवों के रोटी-बेटी संबंध की बात करनी शुरू कर दी। लेकिन वे भी उनके साथ नहीं जुडे।

गुजरात का पटेल आंदोलन

सख्ती जरूरी थी
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-08-28 10:54 UTC
गुजरात का पटेल आंदोलन जिस तेजी से शुरू हुआ, उसी तेजी से समाप्ति की ओर भी बढ़ रहा है। यह सभ्य समाज के लिए राहत की बात है। इसके लिए गुजरात पुलिस निश्चय ही बधाई की पात्र है। 1985 में जब माधव सिंह सोलंकी की सरकार ने ओबीसी के लिए आरक्षण लागू किया था, तब भी पटेलों ने उसके खिलाफ उग्र आन्दोलन किये और वह आन्दोलन बहुत लंबा खिंच गया था। सच तो यह है कि आरक्षण के खिलाफ पटेल बार बार आन्दोलन करते थे और आरक्षण के खिलाफ हुआ वह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम दंगे में तब्दील हो जाया करता था और सप्ताहों क्या, कभी कभी तो महीनों खिंच जाता था।