विकास की गंगा पर जाति की गंगा हावी
उपेन्द्र प्रसाद
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2015-09-02 11:28 UTC
नीतीश के नेतृत्व वाले राजनैतिक गठबंधन ने पटना में एक रैली आयोजित कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया और चुनाव प्रचार किस दिशा में जाएगा, इसे भी तय कर दिया। बहुत सालों के बाद किसी सभा में लालू यादव ने अपनी पिछड़ों और खासकर अपनी जाति का नाम इस तरह से लिया, जिससे अगड़ी जातियों के लोग उनसे दूर भाग जाएं। 1990 के मंडल आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए चुनावों में ही जाति को सार्वजनिक सभाओं में इतना तूल दिया था। बाद में चारा घोटाला में फंसने के बाद जब लालू यादव का पतन शुरू हो गया, तो उन्होंने अगड़ी जातियों पर भी डोरा डालना शुरू कर दिया था और उनकी कोशिश अगड़ी जातियों के साथ गठबंधन करने की थी। वे पिछड़े वर्ग की राजनीति से निकलकर यादव, मुस्लिम और राजपूत का गठबंधन भी करना चाहते थे। अपनी जाति के बाहर के पिछड़ों के प्रति लालू का रवैया सही नहीं था और वे उन्हें सत्ता में भागीदारी नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंनें यादवों के साथ मुसलमानों के साथ समीकरण बनाकर उसमें राजपूतों को भी शामिल करने की कोशिश की। उसमें वे सफल नहीं हुए, तो फिर उन्होंने भूमिहारों के साथ यादवों के रोटी-बेटी संबंध की बात करनी शुरू कर दी। लेकिन वे भी उनके साथ नहीं जुडे।