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भारत

मोदी से आशाएं और आशंकाएं

निवेशक इंतजार करना चाहेंगे
अमूल्य गांगुली - 2014-04-30 11:03
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का पहला असर यह होगा कि इससे निवेशकों में नया विश्वास पैदा होगा। लेकिन यह कहना गलत होगा कि पैसे की थैलियां मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही भारत में आने लगेंगी। सच तो यह है कि पहले निवेशक यह देखना चाहेंगे कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद देश का राजनैतिक और सामाजिक माहौल कैसा है।
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वाड्रा प्रकरण पर राजनैतिक गहमागहमी

प्रियंका का प्रचार कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-04-29 17:12
नई दिल्लीः आधे से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हो जाने के बाद एकाएक भारतीय जनता पार्टी ने राॅबर्ट वाड्रा की कमाई और संपत्ति को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है। सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति राॅबर्ट के ऊपर लगे इस तरह के आरोपों को तूल देने में भाजपा हमेशा से बचती रही है। कहते हैं कि राॅबर्ट की संपत्ति और आय से जुड़ी जानकारी पूरे दस्तावेजों के साथ भाजपा नेताओं के पास पिछले 4 सालों से है। लेकिन उसे उसने कभी मुद्दा नहीं बनाया। संसद में उसको लेकर कभी हंगामा नहीं किया। पिछले साल जब आम आदमी पार्टी ने इससे संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक करने शुरू किए और राॅबर्ट पर गांधी परिवार पर हमला तेज किया, तब भी भाजपा उस पर नर्म ही रही। रस्म अदायगी के तौर पर उसके नेताओं ने भी कुछ शब्द जरूर कहे, लेकिन संसद में उस मामले पर हंगामा कभी नहीं किया।
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विकास के गुजरात माॅडल का सच

दरअसल यह गुजराती माॅडल है
नन्तू बनर्जी - 2014-04-28 17:21
भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी बहुत समय से विकास के गुजरात माॅडल की चर्चा कर रहे हैं। लोकसभा के इस चुनाव में इसे एक प्रमुख मुद्दा भी बना दिया गया है। चूंकि वे गुजरात विकास माॅडल के नाम पर लोगों से वोट मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री बनने पर इसी माॅडल को पूरे देश में लागू किया जाएगा और पूरे भारत को गुजरात की तरह ही विकसित बना दिया जाएगा, उनके विरोधी उस विकास माॅडल की आलोचना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे गुजरात का नुकसान ही हुआ है। इसके लिए वे अपनी तरफ से आंकड़े भी दे रहे हैं। तरह तरह की बातें की जा रही है। नरेन्द्र मोदी खुद कह रहे हैं कि इस तरह के विकास को अंजाम देने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए, तो उनके विरोधी इस माॅडल कम धज्जियां उड़ा रहे हैं।
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कांग्रेस ने फिर खेला सांप्रदायिक कार्ड

लाभ से ज्यादा नुकसान ही होगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-04-26 10:24
संस्कृत में एक कहावत है, ’’विनाशकाले विपरीत बुद्धि’’। यह कहावत कांग्रेस पर सटीक साबित हो रही है। चुनावी घमासान के बीच उसने अपने घोषणापत्र में कुछ और जोड़ करते हुए सांपद्रायिक राजनीति का खेल खेल डाला है। सांप्रदायिक राजनीति का यह खेल मुसलमानों का वोट पाने के लिए है। उसने उन्हें खुश करने के लिए उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था करने का वायदा कर डाला है। वायदे के अनुसार कांग्रेस दलित अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा देगी और ओबीसी कोटे के 27 प्रतिशत को हिंदू और मुस्लिम के लिए बंटवारा कर देगी।
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आंध्र के विभाजन से कांग्रेस की हालत खस्ता

क्या अविभाजित प्रदेश की 42 सीटें सरकार बनाने में निर्णायक होंगी
कल्याणी शंकर - 2014-04-25 10:43
अपनी 42 लोकसभा सीटों के साथ आंध्र प्रदेश हमेशा केन्द्र की सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। 1996 की संयुक्त मोर्चा की दो सरकारों के गठन में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। उस समय उनकी पार्टी के पास आंध्र प्रदेश से जीते अन्य लोकसभा सांसद थे। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के गठन का मार्ग भी तभी प्रशस्त हुआ था, जब चन्द्रबाबू नायडू ने संयुक्त मोर्चा को छोड़कर उनकी सरकार बनवाने का फैसला किया था। 1999 में भी श्री नायडू ने अपनी वह भूमिका जारी रखी और इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी के लिए आंध्र प्रदेश के टीडीपी सांसद संजीवनी का काम करते रहे। 2004 में आंध्र प्रदेश की राजनीति ने करवट ली। चन्द्रबाबू नायडू की पार्टी बुरी तरह हारी और कांग्रेस जीती। कांग्रेस के साथ टीआरएस के पांच लोकसभा सांसद भी जीते और उन्होंने केन्द्र कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के गठन का रास्ता साफ कर दिया। 2009 में भी कांग्रेस को मिली आंध्र प्रदेश की सफलता ने उसे केन्द्र में सत्ता पर बैठा दिया।
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भाजपा को केरल में इतिहास बनाने की उम्मीद

पर तीसरी ताकत बनने का सपना पूरा नहीं हुआ
पी श्रीकुमारन - 2014-04-24 14:35
तिरुअनंतपुरमः केरल में मतदान हो चुके हैं और इसके बाद भाजपा के नेताओं को पूरा विश्वास हो चला है कि वे इस बार प्रदेश में एक नया इतिहास बनाएंगे। अभी तक केरल लोकसभा या विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी कभी जीती नहीं है। उसे लग रहा है कि इस बार तिरुअनंतपुरम के उनके उम्मीदवार पी राजगोपाल चुनाव जीतकर रहेंगे और इस प्रकार वह केरल में चुनाव जीतने का इतिहास बनाएगी।
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कांग्रेस को तीसरे मोर्चे से उम्मीद

अस्थिरता के बाद फिर से चुनाव संभव
अमूल्य गांगुली - 2014-04-23 15:06
कांग्रेस को लग है कि एक तीसरा मोर्चा, जिसे बाहर से उसका समर्थन हासिल होगा, नरेन्द्र मोदी को सत्ता में आने से रोक सकता है। यह सुनने में दूर की कौड़ी लगता हो, लेकिन इसमें सच्चाई भी हो सकती है। राजनाथ सिंह का भाजपा को अपने बूते बहुमत हासिल करने का ख्वाब तो ख्वाब ही रहेगा, ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 230 से 240 सीटें हासिल हो सकती हैं। शेष 30 से 40 लोकसभा सदस्यों का समर्थन हासिल करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
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24 अप्रैल का मतदान मुलायम के लिए महत्वपूर्ण

परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर
प्रदीप कपूर - 2014-04-22 16:28
लखनऊः 24 अप्रैल को हो रहा मतदान मुलायम सिंह यादव के लिए काफी मायने रखता है। यह उनके लिए ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। उनके परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
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नरेन्द्र मोदी ने पीएम बनने की तैयारी शुरू की

भाजपा और संध की उनपर गड़ी है नजर
हरिहर स्वरूप - 2014-04-21 10:28
लोकसभा के लिए मतदान भी अभी तक सभी जगह संपन्न नहीं हो पाएग हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने अभी से अपने आपको अगले पीएम के रूप में देखना शुरू कर दिया है। चुनावी सभाओं और पत्रकारों को दिए गए साक्षात्कारों में उन्होंने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं की चर्चा शरू कर दी है। वह बताने लगे हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे।
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सरकार के दो सत्ता केन्द्र पर बहस

मनमोहन को सोनिया का नेतृत्व क्यों स्वीकार करना पड़ा
कल्याणी शंकर - 2014-04-19 09:28
इस बात पर बहस कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक कमजोर प्रधानमंत्री थे और सरकार के अंदर दो सत्ता केन्द्रों के अस्तित्व का होना एक सफल परीक्षण था या विफल अब एक बेमतलब की कसरत रह गई है। सच तो यह है कि 1998 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस पर कब्जा किया था, तो उसके बाद से वह लगातार कांग्रेस के अंदर सत्ता की एक अकेली केन्द्र थी। उनका नेतृत्व सिर्फ कांग्रेस द्वारा ही नहीं, बल्कि यूपीए के अंदर के कांग्रेस के सहयोगियों द्वारा भी स्वीकार कर लिया गया था। करुणानिधि को सोनिया गांधी के नेतृत्व से कोई परेशानी नहीं थी। एनसीपी का गठन किया तो गया था सोनिया गांधी का विरोध करते हुए, लेकिन जब यह यूपीए का हिस्सा बना तो इसके अध्यक्ष शरद पवार को सोनिया का नेतृत्व स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं हुई। लालू यादव भी बढ़चढ़कर सोनिया गांधी के नेतृत्व का समर्थन कर रहे थे।