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महामारी के दौरान अमीर और अमीर हुए और गरीब और गरीब

अप्रैल से जुलाई के बीच भारतीय सुपर अमीरों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ गई
प्रभात पटनायक - 2020-10-24 08:55
धन वितरण डेटा की व्याख्या करना बेहद मुश्किल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टॉक की कीमतों में बदलाव धन वितरण को प्रभावित करते हैं, जिससे शेयर बाजार में तेजी से अमीरों को बहुत अधिक धन की प्राप्ति होती है, जबकि शेयर बाजार में गिरावट धन वितरण को रातोंरात कम असमान बना देती है। दूसरे शब्दों में, यह तथ्य कि अमीर अपनी संपत्ति का एक हिस्सा शेयरों के रूप में रखते हैं, इससे उनकी कुल संपत्ति का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है।

आंकडों की बाजीगरी और खुद की पीठ थपथपाने की कवायद

यूरोप- अमेरिका से क्यों, एशिया से तुलना क्यों नहीं?
अनिल जैन - 2020-10-23 08:57
कोरोना काल में पिछले सात महीने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात मर्तबा राष्ट्र से मुखातिब हो चुके हैं। यानी औसतन हर महीने एक बार। राष्ट्र के नाम अपने हर संदेश में उन्होंने कोरोना संक्रमण की भयावहता से तो देश को आगाह किया है, लेकिन दो महीने से भी ज्यादा समय तक लागू रहे देशव्यापी संपूर्ण लॉकडाउन के चलते आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुके और अपनी नौकरियां गंवा बैठे लोगों को आश्वस्त करने जैसी कोई बात एक बार भी नहीं की है। राष्ट्र के नाम उनके सातवें संबोधन में भी कुछ नई और ठोस नहीं रही।

दलबदल संसदीय लोकतंत्र का कोढ़ है

इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का कानून बनना चाहिए
एल. एस. हरदेनिया - 2020-10-22 17:09
दलबदल संसदीय लोकतंत्र का कोढ़ है। भारतीय संविधान लागू होने के बाद सबसे बड़ा दलबदल सन् 1967 में हुआ था. उस दलबदल में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका श्रीमती विजयाराजे सिंधिया (जिन्हें राजमाता के नाम से भी जाना जाता है) की थी। राजमाता लगभग व्यक्तिगत कारणों से तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र से नाराज हो गईं थीं। उस समय वे स्वयं कांग्रेस में थीं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और कांग्रेस और मिश्रजी के विरूद्ध चुनाव लड़ा। यद्यपि चुनाव में मिश्रजी जीत गए, परंतु उसके बावजूद राजमाता ने मिश्रजी को अपदस्थ करने का अभियान प्रारंभ कर दिया।

यह तो भाजपा में सिंधिया की ‘ज्योति’ बुझने का संकेत है

उपचुनावों में उन्हें नहीं मिल रहा है महत्व
अनिल जैन - 2020-10-21 09:08
मध्य प्रदेश में आगामी 3 नवंबर को जिन 28 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने जा रहे हैं, उनमें ज्यादातर सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उम्मीदवार हैं और उपचुनाव वाली ज्यादातर सीटें भी उसी इलाके की हैं, जिसे सिंधिया अपने प्रभाव वाला इलाका मानते हैं। लेकिन इसके बावजूद इन चुनावों में उन्हें भाजपा की ओर से कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दी गई है। ऐसे में सवाल है कि क्या आठ महीने पहले अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति मे अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुके हैं? इस सवाल का जवाब तो आने वाला समय ही देगा, मगर फिलहाल ऐसा लग रहा है कि भाजपा के लिए उनकी भूमिका और उपयोगिता अब वैसी नहीं रही, जैसी कुछ महीने पहले तक हुआ करती थी।

टीआरपी घोटाले से कैसे बचें

सभी सेट टॉप बॉक्स के साथ बैरोमीटर चिप जुड़ा होना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-10-20 16:22
टीआरपी घोटाले के पर्दाफाश होने के बाद हमारे सामने दो मुख्य चुनौतियां हैं। पहली चुनौती घोटालेबाजों को सजा देने की है और दूसरी चुनौती कोई ऐसी व्यवस्था करने की है, जिसमें टीआरपी घोटाला हो ही नहीं। सजा देने और दिलवाने का काम तो जांच एजेंसियों और अदालत का है, लेकिन टीआरपी घोटाला मुक्त व्यवस्था को अस्तित्व में लाने का काम भारत सरकार और खासकर इसकी एजेंसी ट्राई (टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का है। यह ट्राई की जिम्मेदारी है कि वह घोटाला रहित व्यवस्था को तैयार करने के लिए जो भी संभव हो सकता है, वह करे।

उत्तर प्रदेश में आदिवासी महिलाएं सुरक्षित नहीं

दलित नेता दारापुरी का दावा
प्रदीप कपूर - 2020-10-19 10:28
लखनऊः पूर्व आईजी और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता श्री एसआर दारापुरी ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में आदिवासी महिलाएं सुरक्षित नहीं, क्योंकि आदिवासी महिलाओं पर अत्याचारों की संख्या और दर राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं।

अयोध्या के बाद काशी और मथुरा संघ के राडार पर

भगवा ब्रिगेड के अनुसार आस्था कानून से ऊपर
विनय विश्वम - 2020-10-17 09:45
आरएसएस द्वारा नियंत्रित बीजेपी सरकार बार-बार विफल सरकार साबित हुई है। जीवन के हर दौर में इसने अपने ही वादों को धोखा दिया है। समाज का हर वर्ग सरकार की प्रतिक्रियावादी नीतियों का विरोध करने के लिए युद्ध के मैदान में आने को मजबूर है। किसानों, श्रमिकों, छात्रों, महिलाओं और दलितों, सभी ने अपने अनुभव से सीखा है कि जीवित रहने का एकमात्र तरीका एकजुट होकर सरकार द्वारा किए गए अत्याचारी उपायों से लड़ना है। लोगों के गुस्से को भांपते हुए, आरएसएस के विचारकों ने लोगों के आक्रोश के बीच अपनी नौका पार लगाने की रणनीति तैयार की है।

विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी ने सिंधिया को दरकिनार किया

सभी रैलियों में सिर्फ शिवराज ही दिख रहे हैं
एल एस हरदेनिया - 2020-10-16 12:05
भोपालः दो अप्रत्याशित घटनाक्रमों ने मध्यप्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य को नया आयाम दिया है। एक घटनाक्रम राज्य उच्च न्यायालय द्वारा राजनीतिक दलों, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को दिए गए अत्यधिक विवादास्पद दिशा- निर्देश से संबंधित है। वास्तव में उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ ने चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजनिक बैठकें करने के बारे में नए दिशानिर्देशों को लागू करने से रोक दी है। केंद्रीय दिशानिर्देशों के प्रवर्तन को रोकते हुए राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी रैलियों के लिए 100 से अधिक व्यक्तियों को जुटाने की अनुमति दी, अदालत ने गृह मंत्रालय को अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

कोश्यारी ने राज्यपाल पद की गरिमा नहीं रखी

वे राज्यपाल पद पर बने रहने के योग्य नहीं
अनिल जैन - 2020-10-15 11:23
संविधान की अनदेखी कर मनमाने तरीके से काम करने और अपने सूबे की सरकार के लिए नित-नई परेशानी खड़ी करने के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने एक बार फिर उद्दण्डता और निर्लज्जता का परिचय देते हुए साबित किया है कि वे राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बने रहने की न्यूनतम पात्रता भी नहीं रखते हैं। कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन के दौरान बंद किए गए मंदिरों को खोलने की अनुमति न दिए जाने पर सवाल उठाते हुए राज्यपाल कोश्यारी ने सूबे के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को जिस बेहूदा लहजे में पत्र लिखा है, वह न सिर्फ मुख्यमंत्री का बल्कि देश के उस संविधान का भी अपमान है, जिसकी शपथ लेकर वे राज्यपाल के पद पर बैठे हैं।

कोविड-19 और हमलोग

कोरोनावायरस एक चुनौती है और संदेश भी
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-10-14 10:17
पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत भी कोरोनावायरस की चपेट में है। भारत इससे शेष दुनिया की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही पीड़ित है। सबसे ज्यादा संक्रमित संख्या वाला देश बनने की ओर यह अग्रसर है और वायरस के संक्रमण से ज्यादा खतरनाक इसे अपनी अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हो रहा है। चारों ओर तबाही ही तबाही है। सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों से समस्या सुलझने के बदले और भी विकराल होती जा रही है। इस आपदा को अनेक निहित स्वार्थ अवसर में तब्दील करने पर लगे हुए हैं, जिससे जनत्रासदी और भी बढ़ रही है। दुर्भाग्य है कि उन स्वाथी तत्वों में हमारी सरकार भी शामिल हो गई है, जो इस आपदा के समय में आर्थिक नीतिगत मोर्चे पर ऐसे ऐसे बदलाव कर रही है, जिससे लोगों का शोषण और उत्पीड़न आने वाले समय में और बढ़ेगा। श्रम कानूनों को श्रमिकों के खिलाफ किया जा रहा है। अन्य कानूनों का भी यही हाल है।