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दिल्ली चुनाव के लिए अनियमित काॅलोनियों पर राजनीति

राजनीति आसान पर नियमित होना कठिन
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-21 09:19
झारखंड का चुनाव समाप्त होना अभी बाकी है। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में उसके नतीजे आएंगे। लेकिन उसके पहले से ही दिल्ली में चुनावी माहौल बनने लगा है। हरियाणा और झारखंड के खराब प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के चुनाव को लेकर और भी ज्यादा सशंकित हो गई है। उन दोनों प्रदेशों के चुनाव नतीजों ने भाजपा नेताओं को दो सबक तो जरूर सिखा दिए हैं। पहला सबक तो यह है कि विधानसभा के चुनाव में मोदी मैजिक काम नहीं करता। लोकसभा चुनाव में हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की शानदार जीत हुई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे मायूसी मिली। हरियाणा की तो दसों लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हो गई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे बहुमत तक नहीं मिला और उसे अपनी एक विरोधी पार्टी के साथ उसे वहां सत्ता की भागीदारी करनी पड़ रही है।

अयोध्या पर फैसला और उसके बाद

क्षेत्रीय दलों में उत्तर प्रदेश मुस्लिम के विश्वास डिग रहे हैं
प्रदीप कपूर - 2019-11-20 09:53
लखनऊः अयोध्या के फैसले के बाद, मुस्लिम समुदाय उत्तर प्रदेश में बहस कर रहा है कि भविष्य में किस पार्टी को समर्थन देना है। गौरतलब हो कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलमानों के मन मुताबिक नहीं गया है। वे चाहते थे कि बाबरी मस्जिद जिस भूखंड पर खड़ी थी, वह भूखंड उन्हें मिले। पर सुप्रीम कोर्ट ने उस भूखंड के बदले अयोध्या में किसी और जगह मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन आबंटित करने का आदेश उत्तर प्रदेश की सरकार को दिया है।

चिकित्सा सुविधाओं के अभाव से जब्बार की मौत

भोपाल गैस पीड़ितों के नेता के निधन से हजारों शोकमग्न
एल एस हरदेनिया - 2019-11-19 10:53
भोपालः अब्दुल जब्बार की मौत से चिकित्सा सुविधाओं की गरीबी उजागर हुई है। जब्बार ने गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। यह संघर्ष उन्होंने उसी दिन दिसंबर 1984 में शुरू किया था, जिस दिन भोपाल में गैस त्रासदी हुई थी। यूनियन कार्बाइड कारखाने से लीक हुई घातक गैस से लाखों लोग प्रभावित थे, जो आबादी वाले इलाके के बीच में स्थित था। जब्बार ने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन नामक एक संगठन का गठन किया। इस संगठन की अधिकांश सदस्य महिलाएँ थीं, जिनमें बुर्का पहनने वाली मुस्लिम महिलाएँ भी शामिल थीं। उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों के आवासों की घेराबंदी करने के लिए अक्सर सड़क प्रदर्शनों में भाग लिया और दिल्ली का दौरा किया। यह जब्बार और उनके संगठन के अथक और निर्बाध प्रयासों के कारण था कि गैस पीड़ितों ने कई युद्ध जीते। कुछ अन्य संगठन भी गैस पीड़ितों को राहत देने के लिए मैदान में थे।

भारत की बढ़ती आर्थिक बदहाली

सरकार को पता ही नहीं चल रहा कि वह क्या करे
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-18 17:25
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को अगले कुछ वर्षों में ही भारत को 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प किया है। 5 ट्रिलियन का मतलब है 50 खरब। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को 10 प्रतिशत सालाना की विकास दर से विकास करना होगा। इतनी ऊंची दर अभी तक के इतिहास में भारत ने कभी प्राप्त नहीं किया है। लेकिन यदि उस लक्ष्य को हासिल करना है, तो विकास की इस दहाई अंक वाले दर को प्राप्त करना होगा।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फी वृद्धि

देश के गरीब मेधावी छात्रों पर करारा हमला
सी आधिकेशवन - 2019-11-16 09:57
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र सत्ताधारी शासन के खिलाफ लामबंद हैं। संघ परिवार की फासीवादी विचारधारा और अत्याचार से एक बार फिर जेएनयू पर हमला हो रहा है। फीस वृद्धि भारत में शिक्षा का व्यवसायीकरण और निगमीकरण करने के लिए केंद्र सरकार की मसौदा शिक्षा नीति का परिणाम है। जबरदस्त फीस वृद्धि यह सुनिश्चित करेगी कि जेएनयू केवल कुछ अमीर छात्रों के लिए पात्रता वाला विश्वविद्यालय बन जाएगा, जबकि एक विशाल बहुमत को सस्ती शिक्षा से वंचित कर दिया जाएगा। वर्तमान शुल्क वृद्धि प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक संस्थान में लगभग मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने वाले गरीब छात्रों के लिए एक झटका है।

क्या झारखंड में भाजपा का बेड़ा राम पार लगाएंगे?

जमीनी राजनीति तो इसके खिलाफ ही है
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-15 09:58
झारखंड विधानसभा के चुनाव की घोषणा के बाद अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निणर्य आया और उसके बाद विवादित स्थल पर राम मन्दिर का निर्माण की सारी बाधाएं समाप्त हो गई हैं। वहां राम मन्दिर का निर्माण भाजपा के एजेडें पर बहुत सालों से रहा है, हालांकि गठबंधन की राजनीति के तहत उस एजंेडे को वह स्थगित कर दिया करती थी। कहने की जरूरत नहीं कि वह एक राजनैतिक मुद्दा था और उस मुद्दे पर अंततः भाजपा जीत गई। उस जीत को वह झारखंड विधानसभा के चुनाव में भुनाना चाहेगी। सवाल उठता है कि क्या भाजपा वहां इसका चुनावी फायदा उठा पाएगी?

कांग्रेस के लिए शिवसेना कभी अछूत नहीं रही

पहले भी वे एक दूसरे की मदद करती रही हैं
अनिल जैन - 2019-11-14 10:15
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले चले घटनाक्रम में जब शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने की संभावनाएं बन रही थीं तो टेलीविजन चैनलों पर कई राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार हैरानी जता रहे थे। सभी का कहना था कि अगर कांग्रेस और शिवसेना साथ आते हैं तो यह भारतीय राजनीति में अनोखी घटना मानी जाएगी और इससे अभूतपूर्व अवसरवाद की मिसाल कायम होगी। अपने उग्र हिंदुवादी तेवरों के लिए जानी जाने वाली शिवसेना का भाजपा से करीब 30 साल पुराना नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस हाथ मिलाने की संभावना ने राजनीतिक विश्लेषकों से इतर कई आम लोगों को भी हैरान किया। मगर सवाल है कि क्या वाकई शिवसेना और कांग्रेस राजनीतिक तौर पर एक-दूसरे के लिए वैसे ही अछूत हैं, जैसा कि उन्हें समझा जा रहा है?

नेहरू की नजर में गांधी

समाजवादी नेहरू गांधी के अनुयाई क्यों थे
एल. एस. हरदेनिया - 2019-11-13 10:05
आधुनिक भारत को जिन दो महान व्यक्तियों ने सर्वाधिक प्रभावित किया वे हैं महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू। जहां गांधी ने भारत को आजाद कराने मंे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी वहींे जवाहरलाल नेहरू ने आजाद भारत के चहुंमुखी विकास में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। गांधी और नेहरू की आयु में पूरे 20 वर्ष का अंतर था। गांधी का जन्म सन् 1869 में हुआ था वहीें नेहरू का 1889 में। यह अंतर लगभग एक पिता और पुत्र की आयु के अंतर के बराबर था। इसलिए गांधी ने नेहरू को अपना पुत्र ही माना।

करतारपुर एक अच्छी पहल

आशंकाओं में लिपटा उम्मीदों का ऐतिहासिक गलियारा
अनिल जैन - 2019-11-11 17:14
नौ नवंबर 1989 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बांटने वाली बर्लिन की दीवार गिराने की शुरुआत हुई थी। 30 साल बाद 9 नवंबर को ही पाकिस्तान और भारत के बीच बना करतारपुर गलियारा भारत के सिक्ख श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। दुनिया के दो महाद्वीपों में घटी इन दो ऐतिहासिक घटनाओं के बीच सिर्फ अंतर 30 साल का ही नहीं हैं बल्कि और भी कई सारें फर्क हैं। मगर सबसे मोटा फर्क यह है कि जर्मनी की उस घटना से दो देशों के फिर से एक होने की शुरुआत हुई थीे। पर करतारपुर गलियारा खुलने से वैसा कुछ नहीं होने जा रहा। इस गलियारे से सिर्फ भारत के सिख श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित अपने सबसे बडे आस्था स्थल पर मत्था टेकने जा सकेंगे। इसके बावजूद इस घटना के ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

अयोध्या पर सुप्रीम फैसला

क्या अब काशी और मथुरा विवाद को खोला जाएगा?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-09 11:24
अयोध्या मसले पर सुप्रीम फैसला आ गया है और इसके साथ करीब पौने दो साल पुराना विवाद समाप्त हो गया है। ज्ञात इतिहास में पहला विवाद 1850 के दशक में शुरू हुआ था। 1880 के दशक में एक अदालती आदेश ने वह विवाद समाप्त कर विवादित स्थल के एक हिस्से पर हिन्दुओं को दूसरे हिस्से पर मुसलमानों को क्रमशः पूजा करने और नमाज पढ़ने का अधिकार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले मे उस अदालती फैसले की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है।