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भोपाल गैस त्रासदी के 35 वर्ष

उस भीषणतम गैस त्रासदी को अभी भुगत रहा है भोपाल
अनिल जैन - 2019-12-02 11:22
इंसान को तमाम तरह की सुख-सुविधाओं के साजो-सामान देने वाले सतर्कताविहीन या कि गैरजिम्मेदाराना विकास कितना मारक हो सकता है, इसकी जो मिसाल भोपाल में साढे़ तीन दशक पहले देखने को मिली थी, उसे वहां अभी अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी मध्य प्रदेश के दौरे पर होते हैं तो वे अपने भाषण में कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए भोपाल गैस कांड का जिक्र करना नहीं भूलते हैं। मोदी अपने भाषण में उस भयावह गैस कांड के लिए जिम्मेदार अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन के भारत से भाग निकलने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराते हैं। लेकिन उस गैस त्रासदी के बाद जो त्रासदी वहां आज तक जारी है, उसका जिक्र वे कभी नहीं करते।

शिवसेना और कांग्रेस का साथ

क्या मुंबई पहले की तरह कास्मोपाॅलिटन नगर बन पाएगा?
एल एस हरदेनिया - 2019-11-30 15:48
अभी तक कांग्रेस का यह दावा था कि उसने कभी किसी साम्प्रदायिक दल से हाथ नहीं मिलाया। संभवतः उसे इस बात पर गर्व भी था। अब पहली बार ऐसा हो रहा है। इसके क्या दूरगामी परिणाम होंगे यह तो भविष्य में ही पता लगेगा। इस संदर्भ में शिवसेना के चरित्र को समझना आवश्यक है। शिवसेना स्वयं को शिवाजी महाराज का अनुयायी बताता है। परंतु इतिहास इस बात का गवाह है कि शिवाजी स्वयं एक अत्यंत उदारवादी राजा थे। उनके संबंध में एक अत्यधिक संवेदनशील कहानी प्रचलित है। एक युद्ध में एक मुस्लिम राजा को हराकर शिवाजी के सैनिक एक अत्यधिक सुंदर मुस्लिम रानी को ले आए। वे उसे शिवाजी को तोहफे के रूप में देना चाहते थे। उसे देखकर शिवाजी आक्रोषित हो गए। उन्होंने उसे तत्काल ससम्मान वापिस भेजने का आदेश दिया। आदेश देते हुए शिवाजी ने कहा, "काश मेरी मां इतनी सुंदर होती तो मैं भी उतना ही सुंदर होता"।

झारखंड चुनाव पर महाराष्ट्र की छाया

भाजपा के लिए यह चुनाव हुआ और भी मुश्किल
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-29 17:18
महाराष्ट्र में हुए राजनैतिक उठापटक में भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह परास्त हुई है। चुनावों में तो जनादेश उसे ही मिला था। शिवसेना के साथ मिलकर उसे सरकार बनानी थी, लेकिन अपने पुराने वायदे को पूरा नहीं करने के कारण उसे शिवसेना और सत्ता दोनों का साथ छोड़ना पड़ा। सेना का दावा है कि लोकसभा चुनाव के पहले जब वह भाजपा से गठबंधन नहीं करना चाहती थी, तो अमित शाह उद्धव ठाकरे की इस मांग से सहमत हो गए थे कि महाराष्ट्र में जब अगली सरकार बनेगी तो उसमें भाजपा और शिवसेना बराबर बराबर सत्ता की भागीदारी करेंगे। इसका मतलब था कि सरकार में दोनों पार्टियों के मंत्रियों की संख्या बराबर होगी और दोनों पार्टियों के नेता ढाई ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री के पद पर रहेंगे। लेकिन भाजपा इस वायदे से मुकर गई। महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं ने तो यहां तक कहा कि अमित शाह ने ऐसा कोई वायदा किया ही नहीं था। दूसरी तरफ अमित शाह ने इस विवाद पर अपना मुह तक नहीं खोला। उन्होंने न तो शिवसेना के दावे का खंडन किया और न ही पुष्टि। इससे यह माना गया कि उद्धव ठाकरे सच ही बोल रहे थे।

मध्यप्रदेश में सिंधिया का है बड़ा जनाधार

कांग्रेस नेतृत्व को उनका ख्याल रखना चाहिए
एल.एस. हरदेनिया - 2019-11-28 11:28
भोपालः महाराष्ट्र में भाजपा के ‘खेल’ को उजागर करने और हराने में कांग्रेस और अन्य दल व्यस्त थे, वहीं कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर प्रोफाइल को बदलकर मध्य प्रदेश में हलचल मचा दी। सिंधिया ने अपनी प्रोफाइल से अपनी पार्टी के सभी संदर्भों को हटा दिया, जिसमें यह तथ्य भी शामिल थे कि वह कांग्रेस के पूर्व सांसद और यूपीए सरकार के पूर्व मंत्री हैं। मीडिया ने इसे एक संकेत के रूप में देखा कि सिंधिया कांग्रेस से बाहर निकलने के लिए तैयार हैं और भाजपा में शामिल हो सकते हैं। संविधान की धारा 370 को रद्द करने के केंद्र के फैसले का समर्थन करने की उनकी पृष्ठभूमि को याद करते हुए इस अटकल को हवा दी गई। हालांकि, सिंधिया ने इन सभी अटकलों को आधारहीन करार दिया।

भाजपा विरोधी खेमे में शिवसेना

क्या हिन्दू बनाम हिन्दू की राजनीति शुरू होगी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-27 10:50
शिवसेना के नेतृत्व में महाराष्ट्र में सरकार का गठन हो रहा है। सेना कोई पहली बार वहां सरकार का गठन नहीं कर रही है। पहले भी वहां सेना का मुख्यमंत्री हुआ करता था। लेकिन पहले शिवसेना ने भाजपा को साथ लेकर अपनी सरकार बनाई थी। पर इस बार वह भाजपा के खेमे से बाहर है और भाजपा विरोधियों के साथ मिलकर उसकी सरकार बन रही है। यह भारतीय राजनीति की एक अजूबी घटना है, लेकिन अब भारत का राजनीति अजूबी घटनाओं का अभ्यस्त हो गया है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने बूते पूर्ण बहुमत मिलना भी एक अजूबी घटना ही थी। उसके बाद 2019 में मोदी के नेतृत्व में ही भाजपा को मिली उससे भी बड़ी जीत एक और अजूबी घटना थी।

राज्यपालों के पतन की कलंक गाथा

अनिल जैन - 2019-11-26 10:46
पंचतंत्र में चालाक बंदर और मूर्ख मगरमच्छ की एक कहानी है, जिसमें बंदर अपना कलेजा खाने को आतुर मगरमच्छ से अपनी जान बचाने के लिए कहता है कि मैं तो अपना कलेजा नदी किनारे जामुन के पेड पर संभालकर रखता हूँ और वहां से लाकर ही तुम्हारी इच्छा पूरी कर सकता हूँ। हमारे तमाम राज्यपालों का हाल भी पंचतंत्र की कहानी के बंदर जैसा ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि वह बंदर तो अपनी जान बचाने के लिए अपना कलेजा पेड पर रखे होने का बहाना बनाता है, लेकिन हमारे राज्यपाल सचमुच अपना विवेक दिल्ली में रखकर राज्यों के राजभवनों में रहते हैं। दिल्ली में उनके विवेक का इस्तेमाल वे लोग करते हैं जो व्यावहारिक तौर पर उनके ‘नियोक्ता’ होते हैं।

नेहरू के कारण आज देश में लोकतंत्र कायम है

उन्होंने देश को एक अनूठा संविधान दिया
एल एस हरदेनिया - 2019-11-25 11:19
दिनांक 25 नवंबर 1949 को संविधान को अंतिम रूप से पारित किया गया था। इसी संविधान से देश का प्रशासन संचालित हो रहा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी संविधान के सहारे देश में लोकतंत्र की ऐसी नींव डाली जो आजतक पूरी तरह से पुख्ता है।

जेएनयू आंदोलन का हमें समर्थन क्यों करना चाहिए

शिक्षा के 90 फीसदी आबादी की पहुंच से बाहर होने का खतरा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-23 09:57
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों का आंदोलन चल रहा है। हो सकता है कि इन पंक्तियों के प्रकाशन के समय उनकी मांगें मान लिए जाने के कारण वह समाप्त भी हो जाए। जो भी हो, इस आंदोलन को हम सिर्फ जेएनयू तक ही सीमित करके नहीं देख सकते। इसे हमें बड़े फलक पर देखना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था से है। जेएनयू एकमात्र ऐसा शिक्षा संस्थान नहीं है, जहां की फी बढ़ाई गई है, बल्कि देश के तमाम शिक्षा संस्थानों में शुल्क बढ़ाए जा रहे हैं, खासकर उन संस्थानों में जो केन्द्र सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं।

झारखंड में भाजपा लड़ रही है एक हारती हुई लड़ाई

अकेले चुनाव लड़ने का उसे होगा नुकसान
अरुण श्रीवास्तव - 2019-11-22 11:29
झारखंड भाजपा के वरिष्ठ नेता सरयू राय आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में सीएम रघुबर दास के खिलाफ संयुक्त निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। दास का विरोध करने के राय के इस फैसले से कोई आश्चर्य नहीं हुआ। कॉरपोरेट क्षेत्र को बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए आदिवासी जमीन हासिल करने में मदद करने और भ्रष्ट तत्वों को संरक्षण देने की दास की रुझान ने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा के लिए यह कठिन चुनाव साबित होगा।

दिल्ली चुनाव के लिए अनियमित काॅलोनियों पर राजनीति

राजनीति आसान पर नियमित होना कठिन
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-11-21 09:19
झारखंड का चुनाव समाप्त होना अभी बाकी है। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में उसके नतीजे आएंगे। लेकिन उसके पहले से ही दिल्ली में चुनावी माहौल बनने लगा है। हरियाणा और झारखंड के खराब प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के चुनाव को लेकर और भी ज्यादा सशंकित हो गई है। उन दोनों प्रदेशों के चुनाव नतीजों ने भाजपा नेताओं को दो सबक तो जरूर सिखा दिए हैं। पहला सबक तो यह है कि विधानसभा के चुनाव में मोदी मैजिक काम नहीं करता। लोकसभा चुनाव में हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की शानदार जीत हुई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे मायूसी मिली। हरियाणा की तो दसों लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हो गई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे बहुमत तक नहीं मिला और उसे अपनी एक विरोधी पार्टी के साथ उसे वहां सत्ता की भागीदारी करनी पड़ रही है।