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मौसम की अति से नहीं, साधनहीनता से मरते हैं लोग

ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती का सामना कैसे करेंगे हम?
अनिल जैन - 2019-01-31 09:52
कहीं भूख और कुपोषण से होने वाली मौतें तो कहीं गरीबी और कर्ज के बोझ से त्रस्त किसानों के खुदकुशी करने के जारी सिलसिले के बीच ही हर साल सर्दी की ठिठुरन, बारिश-बाढ और गरम लू के थपेडों से भी लोग मरते है। असमय होने वाली ये मौतें नग्न सच्चाइयां हैं हमारे उस भारत की जिसके बारे में दावा किया जाता है कि वह तेजी से विकास कर रहा है और जल्द ही दुनिया की एक महाशक्ति बन जाएगा। ये सच्चाइयां सिर्फ हमारी सरकारों के 'शाइनिंग इंडिया’ और 'भारत निर्माण’ 'न्यू इंडिया’ 'स्टार्टअप इंडिया’, 'स्टैंडअप इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों और अर्थव्यवस्था के बारे में किए जाने वाले गुलाबी दावों की ही खिल्ली नहीं उडाती हैं बल्कि व्यवस्था पर काबिज लोगों की नालायकी और संवेदनहीनता को भी उजागर करती है।

फरवरी का चुनावी बजट, होगी तोहफों की बरसात

उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-30 11:35
फरवरी के पहले दिन पेश होने वाला केन्द्रीय बजट लेखानुदान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह एक पूर्ण बजट होगा। भाजपा नेताओं के बयान से इस बात की पुष्टि होती है। अबतक परंपरा तो यही रही थी कि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले पेश किए बजट को लेखानुदान का ही रूप दे दिया जाता था, जिसके तहत अगली सरकार के गठन तक सरकारी खर्च का इंतजाम हो जाता था। चुनाव के बाद जो सरकार बनती थी, वह साल का पूर्ण बजट पेश करती थी।

भाजपा नेता बाबूलाल गौर को कांग्रेस से चुनाव लड़ने का आॅफर

भाजपा नेताओं ने कहा कांग्रेस के पास अपने उम्मीदवार नहीं
एल एस हरदेनिया - 2019-01-29 08:49
भोपालः कांग्रेस महासचिव के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका गांधी की नियुक्ति का मध्यप्रदेश के नेताओं और आम कांग्रेस के लोगों ने स्वागत किया है। पार्टी के कई नेताओं ने उम्मीद जताई है कि यूपी के अलावा प्रियंका मध्य प्रदेश का भी दौरा करेंगी। उन्हें उम्मीद है कि उनकी यात्राओं से पार्टी के लोगों का मनोबल बढ़ेगा। सिंधिया की नियुक्ति को उन्हें राज्य के मामलों से दूर रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया के लिए महत्वपूर्ण है। यदि उन्हें दूर रखा जाता है, तो यह राज्य की कई समस्याओं से जूझते हुए कमलनाथ को राहत दे सकता है।

बिहार में महागठबंधनः मंजिल पर पहुंचना आसान नहीं

उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-28 11:21
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन तो हुआ, लेकिन महागठबधन नहीं हो सका। कांग्रेस उससे बाहर ही रही और बिना कांग्रेस के शामिल हुए माया और अखिलेश के उस गठबंधन को महागठबंधन कहा ही नहीं जा सकता। उत्तर प्रदेश के बाद बिहार पर सबकी नजरे लगी हुई है, क्योंकि वहां भी अभी तक महागठबंधन पर कुछ ठोस फैसला न हो सका है। वैसा बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले एक महागठबंधन बना था, जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी और कहने को वह महागठबंधन अभी भी अस्तित्व में है, क्योंकि जनता दल(यू) के बाहर जाने के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल के साथ कांग्रेस उसमें बनी हुई है। लेकिन उसमें छोटे छोटे कुछ और दलों के आ जाने के बाद उस महागठबंधन के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो गया है। इसका कारण छोटी छोटी पार्टियों की बड़ी बड़ी मांगे हैं और उन्हें मानने के लिए कांग्रेस कुर्बानी करने को तैयार नहीं है।

सक्रिय राजनीति में प्रियंका

क्या उत्तर प्रदेश मे चलेगा उनका सिक्का?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-25 11:32
प्रियंका गांधी आखिरकार कांग्रेस की सक्रिय राजनीति मे खुलकर सामने आ ही गई। सक्रिय तो वह पहले भी थी, लेकिन उनकी चुनावी सक्रियता अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित थी। पर्दे के पीछे से भी वह निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेती थी। पिछले दिनों तीन राज्यों के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नाम तय करने में वह शामिल थीं, लेकिन उनकी यह सक्रियता एकतरफा ही थीं। चूंकि वह घोषित रूप से राजनीति मंे सक्रिय नहीं थीं, इसलिए उनका कांग्रेस के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं से कोई सीधा संबंध नहीं था। अब चूंकि वे कांग्रेस की एक महासचिव बन गई हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी मिल गई है, तो वह सबकुछ एकतरफा तरीके से नहीं कर पाएंगी, बल्कि उन्हें कांग्रेस नेताओं और कार्यकत्र्ताओं की पहुंच के अन्दर अपने आपको रखना होगा।

मुकम्मल कामयाबी से दूर है हमारा गणतंत्र

फिर भी यह कहना उचित नहीं कि गणतंत्र पूरी तरह विफल
अनिल जैन - 2019-01-24 09:42
अपने गणतंत्र के 70 वें वर्ष में प्रवेश करते वक्त हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यही हो सकती है कि क्या वाकई तंत्र और गण के बीच उस तरह का सहज और संवेदनशील रिश्ता बन पाया है जैसा कि एक व्यक्ति का अपने परिवार से होता है? आखिर आजादी और फिर संविधान के पीछे मूल भावना तो यही थी। महात्मा गांधी ने इस संदर्भ में कहा था- ‘मैं ऐसे संविधान के लिए प्रयत्न करुंगा जिसमें छोटे से छोटे व्यक्ति को भी यह अहसास हो कि यह देश उसका है, इसके निर्माण में उनका योगदान है और उसकी आवाज का यहां महत्व है। मैं ऐसे संविधान के लिए प्रयत्न करुंगा जहां ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं होगा, जहां स्त्री-पुरुष के बीच समानता होगी और इसमें नशे जैसी बुराइयों के लिए कोई जगह नहीं होगी।’ दरअसल, भारतीय गणतंत्र के मूल्यांकन की यही सबसे बड़ी कसौटी हो सकती है।

ईवीएम पर एक बार फिर बवाल

वीवीपीएटी जुड़ने के बाद इस पर सवाल उठाना अनुचित
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-23 16:15
ईवीएम पर एक बार फिर सवाल उठाए जा रहे हैं। कोलकाता में ममता बनर्जी द्वारा आयोजित रैली में विपक्ष के अनेक नेताओं ने ईवीएम के खिलाफ आग उगली और देश को एक बार फिर बैलट पेपर के युग में ले जाने की मांग की। उस रैली के चंद दिनों बाद ही लंडन में एक प्रेस कान्फ्रेंस में किसी सैयद शुजा ने दावा कर दिया कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है और उन्हें हैक कर न केवल 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे बदले गए, बल्कि दिल्ली विधानसभा के 2015 में हुए चुनाव के नतीजे भी बदले गए। उसने दावा किया कि 2014 में उसने 12 लोगों की टीम के साथ यह काम खुद किया था। उसकी टीम के 11 लोग मार डाले गए और वह अपनी जान बचाकर खुद अमेरिका में रह रहा है।

भारत में एक बार फिर गठबंधन युग की दस्तक

भाजपा 2014 की जीत को दुहरा नहीं पाएगी
हरिहर स्वरूप - 2019-01-22 09:51
भारत गठबंधन के युग में प्रवेश करने के लिए बिल्कुल तैयार है, क्योंकि एक दल का शासन समाप्त होता दिखाई दे रहा है। जैसा कि स्थिति है न तो भाजपा और न ही कांग्रेस अपने दम पर केंद्र या राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को शायद आखिरी बार भारी बहुमत मिला था। इस साल के आम चुनावों में भगवा पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है और अगर उसे सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है तो उसे गठबंधन बनाना होगा। यही हाल कांग्रेस का भी है। गठबंधन का मतलब अस्थिरता और अच्छे प्रशासन की कमी है। याद कीजिए जपमे अयाराम, गयाराम ”साठ के दशक और फिर प्रचलित अस्थिरता।

उभर रहे हैं नए राजनीतिक समीकरण

कोलकाता रैली से भाजपा विरोध को नई मजबूती मिली
अनिल सिन्हा - 2019-01-21 09:37
विपक्षी पार्टियों की कोलकाता रैली ने विपक्ष की एकता सिद्ध कर दी है। इसने २०१९ के चुनावों के संघर्ष की तस्वीर भी साफ कर दी। भारतीय जनता पार्टी इस उम्मीद में थी कि यह संभव नहीं हो पायेगा। लेकिन एकता सिर्फ जमीन पर ही नहीं उतरी है, बल्कि इससे जुड़े संकल्प भी दिखाई दे रहे हैं। लेकिन एकता रैली इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण कहानी बता रही है। यह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अकेला हो जाने की कहानी। देश के प्रधानमंत्री पद पर शायद ही ऐसा कोई आदमी पहले रहा हो जिसे अपना हर छोटा बड़ा बचाव खुद ही करना पड़ा हो। उन्होंने गुजरात के नजदीक सिलवासा में एक कार्यक्रम में कोलकाता रैली का जिस तरह मजाक बनाने की कोशिश की, उससे उनकी बेचारगी ही सामने आई। विपक्षी नेता उन पर जमकर हमले कर रहे हैं, लेकिन उनके बचाव में भारतीय जनता पार्टी के तय हमलावरों के अलावा कोई सामने नहीं आ रहा है। भाजपा में बहुत सारे लोग हैं जो इस तमाशे का खामोशी से आंनद भी ले रहे हैं। एनडीए का कोई दल उनके लिए खड़ा नहीं होता और शिव सेना जैसे सहयोगी तो विपक्ष के साथ ही खड़े हो जाते हैं। चुनाव के नजदीक आने पर हमले बढेंगे और प्रधानमंत्री का अकेलापन बढ़ेगा। उन्हें भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को याद करना चाहिए। ऐसे में उनके व्यवहार के कारण विरोधियों को भी उन पर हमला करने में संकोच होता था।

कमलनाथ की समय से होड़

लोकसभा चुनाव के पहले कुछ कर दिखाने की चुनौती
एल एस हरदेनिया - 2019-01-19 09:43
भोपालः मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने राज्य के प्रशासन और राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालते हुए तीन महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। तीन फैसलों में निजी व्यक्तियों को प्रशासन में शामिल करना, मीसा के पेंशनधारियों को मिल रहे पेंशन समाप्ति की घोषणा में सुधार करना और किसानों के लिए कर्जमाफी घोषणा की औपचारिक शुरुआत करना शामिल है।