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दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित की ताजपोशी के निहितार्थ

लौटेगा दिल्ली में कांग्रेस का पुराना दौर?
योगेश कुमार गोयल - 2019-01-18 12:25
लोकसभा चुनाव से चंद माह पहले दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद से अजय माकन का इस्तीफा, उसके बाद 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित की प्रदेशाध्यक्ष पद पर ‘शीला दीक्षित आई है, बदलाव की आंधी आई है’ नारों के साथ ताजपोशी और साथ ही तीन कार्यकारी अध्यक्षों हारून युसूफ, राजेश लिलोठिया तथा देवेन्द्र यादव की नियुक्ति, राजनीतिक हलकों में यह सब आम चुनाव के मद्देनजर पार्टी आलाकमान द्वारा जातीय और धार्मिक समीकरण साधने का प्रयास माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद अगले साल के शुरू में ही विधानसभा चुनाव भी होने हैं, इस लिहाज से प्रदेश में पार्टी संगठन को पुनर्जीवित करने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनके संकेत स्पष्ट हैं। अलग-अलग समुदायों से तीन कार्यकारी अध्यक्षों के जरिये पार्टी ने सभी जातियों और वर्गों के मतदाताओं को साधने का दांव खेला है।

भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन से निकले संकेत

प्रधान मंत्री का भाषण भी निराशा भरा था
अनिल जैन - 2019-01-17 10:27
दिल्ली के रामलीला मैदान में ठीक पांच साल पहले भी इसी जनवरी के महीने में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद का अधिवेशन हुआ था। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर उनके सूर्योदय का दौर विधिवत प्रारंभ हो चुका था। उस अधिवेशन के माध्यम से उन्होंने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की हैसियत से अपना जो विजन देश के सामने रखा था, उसे सुनकर उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध करने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था- ‘आज नरेंद्र भाई को सुनकर ऐसा लगा जैसे हम विवेकानंद को सुन रहे हैं।’ हालांकि आडवाणी की इस प्रतिक्रिया में वास्तविकता का कम और चापलूसी तथा परिस्थितियों के आगे समर्पण का भाव ही ज्यादा था। अब पांच साल बाद उसी रामलीला मैदान में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को सुनने के बाद उन्हें विवेकानंद की उपमा देने या उनके भाषण की अतिश्योक्तिपूर्ण तारीफ करने की स्थिति में कोई नहीं है।

उत्तर प्रदेश में माया-अखिलेश गठजोड़

नतीजों का फैसला करेंगी वंचित जातियां
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-16 17:23
मायावती और अखिलेश यादव का गठजोड़ आखिर हो ही गया। 2017 के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद यह होना ही था। जिस तरह 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले लालू यादव और नीतीश कुमार का गठजोड़ अपनी अपनी राजनीति बचाने के लिए हुआ था, उसी तरह उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश अपनी अपनी राजनीति बचाने के लिए एक हुए हैं। नीतीश और लालू का गठजोड़ सफल रहा। नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री एक बार और बने। राजनैतिक रूप से बिहार में अप्रासंगिक हो रहे लालू यादव ने अपने बेटे तेजस्वी को बिहार की राजनीति में नीतीश की सहायता से स्थापित कर दिया। सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश में भी माया और अखिलेश का यह गठजोड़ बिहार के लालू-नीतीश के गठजोड़ की तरह सफल हो पाएगा?

क्या कर्ज माफी से मिलेगी किसानों को राहत

किसानों को मुश्किल में डाल दे कर्ज माफी
राजु कुमार - 2019-01-16 17:19
किसानों के कर्ज माफी एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। पिछले साल संपन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने यह घोषणा की थी कि उसकी सरकार आने पर किसानों के कर्ज माफ किए जाएंगे। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से भाजपा को बेदखल करने में कांग्रेस की इस घोषणा का बड़ा हाथ रहा है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते ही कमलनाथ ने सबसे पहले कर्ज माफी की फाइल पर दस्तख्त किए। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि यदि 10 दिन में कर्जमाफी पर अमल नहीं हुआ, तो मुख्यमंत्री को बदल दिया जाएगा। मध्यप्रदेश में ऐसी नौबत तो नहीं आई, लेकिन कर्ज में डूबे प्रदेश सरकार के लिए कर्ज माफी के लिए रकम जुटाना आसान नहीं है और यही वजह है कि इस योजना को स्वरूप देते-देते महीना भर का समय लग गया। अब मध्यप्रदेश सरकार ने ऋण माफी के लिए आवेदन पत्र जमा करना शुरू कर दिया है और मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि फरवरी के अंत तक पात्र किसानों के खाते में दो लाख रुपए तक की कर्ज माफी की रकम पहुंच जाएगी।

उत्तर प्रदेश में बुआ-बबुआ की जोड़ी

किस करवट बैठेगा ऊंट?
योगेश कुमार गोयल - 2019-01-15 16:42
लोकसभा को करीब 15 फीसदी सीटें देने वाले देश के बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ‘बुआ-बबुआ’ का 38-38 सीटों पर गठबंधन हो जाने और देशभर में महागठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस के इस सूबे में अलग-थलग पड़ जाने के बाद एक बार फिर यह बात आईने की तरह साफ हो गई है कि भारतीय राजनीति में न कोई किसी का स्थायी दुश्मन है और न दोस्त और न ही भारतीय राजनीति में नैतिकता और शुचिता नाम की कोई चीज शेष रह गई है। सपा-बसपा गठबंधन के बाद अब हर किसी की नजरें इसी राज्य की भावी राजनीति पर केन्द्रित हैं। दरअसल महागठबंधन बनाने के प्रयासों में जुटे विपक्षी दलों की यही कोशिश रही है कि किसी भी प्रकार भाजपा को सत्ता से बाहर किया जा सके और इस लिहाज हर किसी की नजरें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश पर ही टिकी थी क्योंकि कुल 545 सीटों वाली लोकसभा में 80 सीटें अकेले उत्तर प्रदेश से ही हैं, जिनमें 63 सामान्य और 17 आरक्षित सीटें हैं।

खसरा और रूबेला टीकाकरण से कोई भी बच्चा छूट न पाए

टीकाकरण की सफलता बच्चों को बीमारियों से रखेगी दूर
राजु कुमार - 2019-01-14 18:25
कल से मध्यप्रदेश में खसरा और रूबेला टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ होने जा रहा है। अभियान अगले एक माह तक चलाया जाएगा। यह देशव्यापी मीजल्स और रूबेला टीकाकरण अभियान का हिस्सा है। अभियान के तहत 9 माह से 15 वर्ष तक के सभी बच्चों को टीका लगाया जाएगा। इसमें सरकारी एवं निजी शालाओं, अस्पताल एवं अन्य संस्थाओं को शामिल किया गया है, जिससे कि कोई बच्चा छूटने न पाए। मध्यप्रदेश आज भी देश के उन राज्यों में शुमार है, जहां कुपोषण, शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर ज्यादा है। निमोनिया, डायरिया, खसरा जैसी बीमारियां भी बच्चों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन पिछले दो-तीन सालों से बाल स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार दिखाई दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण है टीकाकरण के प्रति लोगों में आई जागरूकता।

मध्यप्रदेश विधानसभा में परंपरा का उल्लंघन

अच्छा होता भाजपा ने अपना स्पीकर उम्मीदवार नहीं दिया होता
एल. एस. हरदेनिया - 2019-01-14 18:21
भोपालः "संविधान के अनुसार स्पीकर की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। परंतु परंपरा और व्यवहार के कारण स्पीकर की स्थिति संवैधानिक प्रावधानों से भी ऊँची और महत्वपूर्ण है"। ये शब्द हैं देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जो उन्होंने संसदीय प्रजातंत्र में स्पीकर की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए कहे थे।

हंगामे के बीच मध्यप्रदेश विधानसभा का सत्र संपन्न

कांग्रेस और भाजपा ने एक दूसरे के खिलाफ परंपरा तोड़ने का लगाया आरोप
एल एस हरदेनिया - 2019-01-12 11:03
भोपालः नवगठित मध्यप्रदेश विधानसभा का पहला सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। चार दिवसीय सत्र को अप्रिय दृश्य, आरोप प्रत्यारोप और विपक्ष द्वारा वाकआउट की एक श्रृंखला के रूप में याद किया जाएगा।

क्या मध्यप्रदेश भाजपा में पनप रही है गुटबंदी

सदन के बाहर और भीतर फेल हुई भाजपा
राजु कुमार - 2019-01-12 10:31
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार यह कहते रहे हैं कि उन्हें प्रदेश में राजनीति करनी है। कई बार केन्द्र में जाने की अटकलों को वे खुलकर नकारते रहे। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार में कभी कृषि मंत्री, तो कभी पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में उनके जाने की अटकलें लगती रही और वे इसे खारिज करते रहे। अभी संपन्न मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने उनके चेहरे पर ही चुनाव लड़ा। ऐसे में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ-साथ शिवराज को भी भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर केन्द्र की राजनीति में बुला लिया। मध्यप्रदेश में ही रहकर ताउम्र राजनीति करने की बात करने वाले शिवराज सिंह चौहान अब राज्य की राजनीति से दूर हैं। विधानसभा चुनाव हारने के बाद तीनों राज्यों में भाजपा के एकछत्र नेता के रूप में स्थापित इन नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में बुला लिए जाने को राजनीतिक विश्लेषक भाजपा में गुटबंदी पनपने की बात करने लगे हैं।

अनारक्षितों को 10 फीसदी आरक्षण बहुजन राजनीति का अंत

उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-11 12:11
मोदी सरकार द्वारा अनारक्षित समुदायों की कम आय वाले लोगों को आरक्षण देकर सामाजिक बदलाव को एक नई दिशा दे दी है। जाति आधारित भारतीय समाज पर इसका जबर्दस्त असर पड़ेगा और यह बदलाव सकारात्मक ही होगा। 1990 में वीपी सिंह सरकार द्वारा मंडल आयोग की कुछ सिफारिशों के लागू किए जाने के बाद भी समाज पर जबर्दस्त असर पड़ा था और उस असर को आजतक महसूस किया जा सकता है।