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दिल्ली में भारत जीत गया और नफरत हार गई

उपेन्द्र प्रसाद - 2020-02-11 10:50 UTC
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बार फिर विजयी हुई है। यह उसका कोई साधारण विजय नहीं है। एक मायने में यह 2015 वाली विजय से भी बड़ी है, क्योंकि उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उतना जोर नहीं लगाया था, जितना इस बार लगा दिया। हां, यह सच है कि नरेन्द्र मोदी ने इस बार कम चुनावी रैलियां की। लेकिन इसका कारण यह था कि भारतीय जनता पार्टी नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगाना चाहती थी। उसे पहले ही दिन से पता था कि दिल्ली चुनाव की डगर उसके माकूल नहीं है, क्योंकि केजरीवाल सरकार का प्रदर्शन यहां बहुत ही शानदार रहा था। केजरीवाल का जादू चुनावी माहौल बनते ही लोगों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था कि शायद भाजपा को शून्य सीटों से ही संतोष करना पड़े। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव में अपने आपको उस तरह नहीं झोंका, जिस तरह किसी भी विधानसभा चुनाव में अपने आपको झोंकने की उनकी आदत है।

मोहन भागवत ने मप्र पर इतना ध्यान क्यों केंद्रित कर रखा हैं?

वे एक के बाद एक शिविरों में भाग ले रहे हैं
एल एस हरदेनिया - 2020-02-10 10:33 UTC
भोपालः मध्यप्रदेश में आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत द्वारा दिए जा रहे अतिरिक्त ध्यान पर रहस्य छाया हुआ है। पिछले तीन से चार महीनों में भागवत ने राज्य के कई शहरों में शिविरों का आयोजन किया है। वर्तमान में, वह भोपाल में पांच दिवसीय शिविर में भाग ले रहे हैं। राज्य में आरएसएस के विशेष ध्यान के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक यह है कि कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने नरम हिंदुत्व की छवि बनाने के लिए कई कार्यक्रम किए हैं। कमलनाथ की रणनीति कांग्रेस के लिए काम करती प्रतीत होती है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव-2003

शीला के काम ने कांग्रेस को फिर जिताया, भाजपा को फिर मिली करारी हार
अनिल जैन - 2020-02-08 15:42 UTC
केंद्र में एनडीए की सरकार होने के बावजूद दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर शीला दीक्षित को काम करने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। पूरे पांच साल के दौरान केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच शायद ही कभी टकराव की स्थिति पैदा हुई हो। हालांकि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बनने के एक साल बाद यानी 1999 में ही केंद्र में वाजपेयी सरकार गिरने की वजह से देश को फिर मध्यावधि चुनाव का सामना करना पडा। दिल्ली की जिस जनता ने एक साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बुरी तरह धूल चटाई थी, उसी जनता ने इस बार लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटें भाजपा की झोली में डाल दी थी। लेकिन जब 2003 के विधानसभा चुनाव का वक्त आया तो कांग्रेस पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनाव मैदान में उतरी, क्योंकि शीला दीक्षित सरकार के पास थे पांच साल के विकास कार्य और उनकी निरंतरता का मुद्दा। दूसरी ओर कई गुटों में बंटी भाजपा बिल्कुल मुद्दाविहीन स्थिति में थी। अलबत्ता वाजपेयी सरकार का ‘शाइनिंग इंडिया’ और ‘फील गुड फैक्टर’ का प्रचार जोरों पर था।

दिल्ली विधानसभा चुनाव-1998

शर्मनाक हार के साथ भाजपा सत्ता से बेदखल, शीला युग शुरू
अनिल जैन - 2020-02-07 15:32 UTC
दिल्ली विधानसभा का तीसरा चुनाव नवंबर 1998 में हुआ। उस समय तक राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था। 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारकर सत्ता से बाहर हो चुकी थी। देश गठबंधन राजनीति के युग में प्रवेश कर चुका था। गैर भाजपा विपक्षी दलों के संयुक्त मोर्चा की दो अल्पकालिक सरकारें देश देख चुका था और फरवरी 1998 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए की सरकार केंद्र में बन चुकी थी। उसी सरकार में मंत्री सुषमा स्वराज से इस्तीफा दिला कर भाजपा ने उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव के ऐन पहले दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था। दूसरी तरफ केंद्र की सत्ता से बाहर हो चुकी कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी पीवी नरसिंहराव के हाथ से निकलकर सीताराम केसरी के पास होता हुआ फिर से गांधी-नेहरू परिवार के हाथों में आ चुका था और सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बन चुकी थीं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव-1993

भाजपा की धमाकेदार जीत और पांच साल में तीन मुख्यमंत्री
अनिल जैन - 2020-02-06 09:50 UTC
देश की आजादी के बाद 1952 में गठित दिल्ली की पहली विधानसभा को उसके एक कार्यकाल यानी पांच साल के बाद ही खत्म कर दिल्ली को पूरी तरह केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। फिर 1966 से 1992 तक दिल्ली में महानगर परिषद रही। महानगर परिषद का चुनाव भी 1983 में आखिरी बार हुआ था, जिसमें कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था। वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 के तहत केंद्र शासित दिल्ली को औपचारिक रूप से एक राज्य के रूप में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित कर यहां विधानसभा, मंत्रिपरिषद और राज्यसभा की सीटों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान निर्धारित किए गए, जिनके मुताबिक 1993 में फिर विधानसभा चुनाव का सिलसिला शुरू हुआ।

हिन्दू राष्ट्र की ओर बढ़ रहे हैं मोदी सरकार के कदम

संघ का उद्देश्य संघीय व्यवस्था को समाप्त करना भी है
एल एस हरदेनिया - 2020-02-05 12:01 UTC
जब से भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र मेें बहुमत हासिल किया है तब से अत्यधिक धीमी गति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेेंडे पर काम करना प्रारंभ कर दिया है। वैसे तो संघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। परंतु यह काम एक झटके में नहीं किया जा सकता। अतः उसे अत्यधिक चतुराई से किया जा रहा है। सन् 2014 के आमचुनाव में भी भाजपा ने लोकसभा में बहुमत हासिल किया था परंतु 2014 से 2019 तक भाजपा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे ऐसा लगा हो कि उसके कदम हिन्दू राष्ट्र की तरफ बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह था कि भाजपा नहीं चाहती थी वह कोई ऐसा काम करे जिससे उसे 2019 में बहुमत से हाथ धोना पड़े। जब भाजपा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी के हाथ में था तब वे कहा करते थे कि इस समय हमारे तीन प्रमुख लक्ष्य हैंः 1. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण; 2. समान नागरिक संहिता बनाना और 3. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना।

दिल्ली विधानसभा का पहला आम चुनाव

चौधरी ब्रह्म प्रकाश चुने गए थे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री
अनिल जैन - 2020-02-04 16:41 UTC
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की नई विधानसभा चुनने के लिए आगामी आठ को होने जा रहे चुनाव को मीडिया के विभिन्न माध्यमों में दिल्ली विधानसभा का सातवां चुनाव बताया जा रहा है, लेकिन वस्तुतः यह आठवां चुनाव है। दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव देश आजाद होने के बाद अक्टूबर 1951 में हुए पहले आम चुनाव के साथ ही हुआ था, जिसका नतीजा मार्च 1952 में आया था।

फैज भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल थे

शायर की बेटी ने विवादित नज्म पर पैदा भ्रम को दूर किया
शंकर रे - 2020-02-03 11:06 UTC
प्रसिद्ध उर्दू कवि फैज अहमद फैज कभी भी भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल के रूप में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त करना नहीं छोड़ा। अपनी मृत्यु के कई दशक के बाद भी वे अपना यह काम बतौर कर रहे हैं। हाल की घटनाओं ने केवल यह एक बार फिर साबित किया है। अनादोलु एजेंसी के साथ एक विशेष साक्षात्कार में लाहौर स्थित बड़ी बेटी सलीमा हाशमी ने कहा कि उनके शब्द दिन लगातार दिन बीतने के साथ अधिक से अधिक सार्थक होते जा रहे हैं। वे खुद एक प्रसिद्ध कलाकार, चित्रकार और शिक्षक के रूप में ख्यात हैं। वह ‘हम देखेंगे’ कविता के बारे में विवाद का जिक्र कर रही थीं, जो पिछले महीने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के कानपुर परिसर में गाया गया था।

चुनावी बांड स्कीम भाजपा को लाभ पहुंचा रही है

पारदर्शिता की कमी के कारण यह लोकतंत्र के लिए घातक है
के रवीन्द्रन - 2020-02-01 11:26 UTC
चुनाव आयोग को सौंपी गई 2018-19 के लिए पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट में 2,410 करोड़ रुपये से अधिक की कुल आय दर्शाई गई। पिछले वर्ष की रिपोर्ट में दर्शाई गई उसकी 1,027 करोड़ रुपये की तुलना में यह 134 प्रतिशत की वृद्धि है।

मोदी को अपनी सरकार की विश्वसनीयता स्थापित करनी चाहिए

भाजपा नेताओं का एक वर्ग बेचैन है
अरुण श्रीवास्तव - 2020-01-31 10:31 UTC
अचानक एक सहज सवाल ने बिहार के राजनीतिक हलकों में चक्कर लगाना शुरू कर दिया है, जिससे भाजपा के खेमें में बेचैनी छा रही है। वह सवाल यह है कि भाजपा सरकार कौन चला रहा है? वह नरेंद्र मोदी हैं या अमित शाह?