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यह देश अपनों का देश है किसी और का नहीं

आंदोलन के तौर तरीकों को हमें बदलना होगा
भरत मिश्र प्राची - 2018-04-13 07:05
देश को आजादी तो मिली पर आज तक किसी ने इसे अपना नहीं समझा। सभी इसे आज तक इसे अपने अपने तरीेके से स्वहित में कमजोर बनाने में लगे है। आजतक आंदोलन के तौर तरीेके पूर्व की भाॅति ही देखे जा सकते जहां तोड़ - फोड़, आगजनी, रेल पटरी उखड़ने जैसी अहितकारी घटनाएं आज भी जारी हैं, जिनमें सबसे ज्यादा सार्वजनिक एवं राष्टीªय सम्पति का नुकसान ही होता है जिसकी भरपाई किसी और को नहीं , अपने को ही करनी पड़ती है। आज यह देश किसी और का नहीं , अपनो की ही देश है जिसे समझना बहुत जरूरी है। इस तथ्य को नहीं समझने के कारण आज भी लुटेरे इस देश को लूट रहे है। देश में सबकुछ रहते हुए भी विकास के कदम से कई कदम हम पीछे खड़े है। बाजारवाद में कभी अग्रणी रहा हमारा देश आज पीछे खड़ा है जहां विदेशी सामानों की भरमार है। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों की तहत लगे देश में बड़े उद्योग बंदी की कगार पर है। आंदोलन के तहत देश की करोड़ो की सम्पदा का आज तक नुकसान पहुंचा चुके है।

कौन है संसद में हंगामे के गुनहगार?

लोकतंत्र के भविष्य के लिए यह अशुभ संकेत है
अनिल जैन - 2018-04-10 09:21
देश की सबसे बडी पंचायत यानी संसद में जिस तरह का अभूतपूर्व गतिरोध इस बजट सत्र के दौरान बना, उसे देखते हुए डेढ दशक पुराना वाकया याद आता है। साल 2003 की बात है। उस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में राष्ट्रीय गठबंधन की सरकार थी। अमेरिका ने इराक पर हमला बोल दिया था। विपक्षी पार्टियां संसद में अमेरिका के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कराने की मांग कर रही थीं। विदेश मंत्रालय एक वक्तव्य जारी कर उस हमले की निंदा कर चुका था लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा संसद में निंदा प्रस्ताव लाने के पक्ष में नहीं थे। कुछ दिनों तक हंगामे की वजह से संसद में गतिरोध बना रहा। अंततः वाजपेयी ने सिन्हा और तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सुषमा स्वराज को बुलाकर उन्हें समझ दी कि संसद सुचारू रूप से चले यह जिम्मेदारी सरकार की होती है, लिहाजा हमें विपक्ष से सिर्फ मीडिया के माध्यम से ही संवाद नहीं करना चाहिए बल्कि संसद से इतर अनौपचारिक तौर पर भी बात करते रहना चाहिए।

चौहान की वोट बैंक राजनीति उलटी पड़ी

समर्थन कम विरोध ज्यादा
एल एस हरदेनिया - 2018-04-09 11:29
भोपालः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मतदाताओं का समर्थन जीतने के लिए जो कदम उठाए, उसका असर उल्टा हुआ। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 साल करने का निर्णय लिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह निर्णय राज्य सरकार के कर्मचारियों और उनके परिवारों के वोटों को उनके वोट बैंक में जोड़ देगा। लेकिन इस निर्णय ने सरकारी कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या को संतुष्ट नहीं किया बल्कि इसके कारण सरकार को बेरोजगार युवाओं के क्रोध का सामना करना पड़ा, जिनकी संख्या लाखों में है। सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से बेरोजगारों के लिए रोजगार की संभावनाएं कम हो जाती हैं। इसके अलावा, यह अस्थायी कर्मचारियों की संभावनाओं को भी प्रभावित करता है जो अपनी नौकरी स्थाई होने की उम्मीद में कम वेतन पर भी काम करते रहते हैं।

तमिलनाडु में सत्ता संघर्ष चरम पर

सत्तारूढ़ एआईडीएमके को मिल रही है जबर्दस्त चुनौती
एस सेतुरमन - 2018-04-07 11:32
दिसंबर 2016 में अपने सबसे दुर्जेय एआईएडीएमके मुख्यमंत्री, सुश्री जे जयललिता के निधन के बाद से तमिलनाडु में राजनीतिक उथल-पुथल में रहा है। पहले अम्मा की विरासत का दावा करने वाले दो प्रतिद्वंद्वी गुट सत्ता के लिए एक हो गए और बिना स्पष्ट बहुमत के सत्ता पर काबिज हैं। अब उसको जबर्दस्त चुनौती मिल रही है। यह चुनौती न केवल विपक्षी डीएमके से मिल रही है, बल्कि पार्टी से बाहर कर दिए गए दिनकरण भी सत्ता को डांवाडोल करने का प्रयास कर रहे हैं। डीएमके तो स्टालिन के नेतृत्व में तेजी से प्रदेश की राजनीति में उभर रहा है।

जाटलैण्ड की खाप क्या बंद नहीँ कर पाएगी हुक्का- पानी?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमली जामा पहनाना एक बड़ी चुनौती
प्रभुनाथ शुक्ल - 2018-04-06 09:24
सर्वोच्च न्यायलय ने हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय पर कानूनी चाबुक चला जातीय फैसलों के खिलाफ खाप को सोचने पर मजबूर कर दिया है। फैसले पर सरकार और खाप कितनी संवेदनशील होंगी यह तो वक्त तय करेगा, लेकिन खाप पंचायतों और उनके अस्तित्व पर खतरा खड़ा हो गया है। उनकी मनमर्जी अब नहीँ चलेगी। जातीय फैसलों के चलते खाप कभी लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल रखने पर तालिबानी फैसला सुनाती हैं, तो कभी आॅनर किलिंग को लेकर चर्चाओं में रहती हैं। सर्वोच्च अदालत का यह फैसला गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी की एक याचिका पर आया है। इस फैसले से क्या जातीय पंचायतों यानी खाप अब लोगों के हुक्के - पानी नहीँ बंद कर पाएगी ?

निमोनिया व दिमागी बुखार से बचाव की पहल

पीसीवी टीका से कवर होगा संपूर्ण मध्यप्रदेश
राजु कुमार - 2018-04-06 09:20
मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में से है, जहां शिशु मृत्यु दर, बाल मृत्यु दर एवं कुपोषण बहुत ही ज्यादा है। शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर को कम करना सरकार के लिए चुनौती रहा है। अभी भी आशातीत सफलता नहीं मिल पाई है, यद्यपि आईएमआर एवं आईएमआर में पिछले कुछ सालों में गिरवाट आई है। इसके लिए कारक बीमारियों से बचाव में टीकाकरण की भूमिका महत्वपूर्ण है।

सांसत में सरकार,दलित एक्ट पर पलटा

उपेन्द्र प्रसाद - 2018-04-05 12:22
अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारक) कानून, जिसे दलित या हरिजन एक्ट के रूप में भी जाना जाता है, आज नरेन्द्र मोदी की सरकार के गले का फंदा बन गया है। मोदी सरकार और खुद प्रधानमंत्री मोदी इस कानून को लेकर सांसत में पड़ गए हैं और उनकी उतनी फजीहत केन्द्र में सत्ता मे आने के बाद कभी नहीं हुई, जितना आज इस एक्ट के कारण हो रहा है।

तोड़-फोड़ की राजनीति राष्ट्रहित में कदापि नहीं

आंदोलन अहिंसक ही होना चाहिए
भरत मिश्र प्राची - 2018-04-04 10:51
आजादी के बाद देश में जब भी विरोध जताने की प्रक्रिया शुरू होती है, तोड़ - फोड़ की राजनीति शुरू हो जाती है। देश में कार्यरत वोट बटोरने की राजनीति से प्रेरित राजनीतिक पार्टियां अपने स्वहित में इस तरह के आंदोलन को शांत करने के बजाय और उग्र बनाने की दिशा में सक्रिय हो उठती है। इससे इस तरह के आंदोलन को भडकाने में और ज्यादा शह मिलने लगती है। इस तरह के आंदोलन में शामिल वास्तविकता से काफी दूर खड़ी भीड़ अपने ही देश को बर्वादी के कगार पर पहुंचाने में मददगार होती है।

बड़े पैमाने पर बैंक फ्राॅड और बढ़ता राजनैतिक जोखिम

वैश्विक निवेश बैंकर्स भारत को लेकर भयभीत
नन्तू बनर्जी - 2018-04-03 09:49
यह असामान्य दिख सकता है कि गोल्डमैन सैक्स और नोमुरा के नेतृत्व में वैश्विक निवेश बैंकर अचानक एक बेहतर निवेश और विकास गंतव्य के रूप में भारत के बारे में अपनी धारणा बदल रहे हैं। पिछले महीने भारत पर नोमुरा की शोध रिपोर्ट कहती है कि भारत में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ रही है और ‘सत्तारूढ़ बीजेपी बैकफुट पर है’। नोमुरा रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि राजनीतिक जोखिम निश्चित रूप से बड़ा है। निवेश बैंक की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकालती है कि 2018-19 की तीसरी तिमाही (सितंबर-दिसंबर) में लोकसभा चुनाव हो सकता है। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट 2 अरब डॉलर से अधिक की पीएनबी धोखाधड़ी के मद्देनजर भारत के पूर्वानुमानों को घटाकर देखती है। वैश्विक निवेश बैंकर ने चेतावनी दी है कि बढ़ते बैंक धोखाधड़ी से बैंकिंग क्षेत्र में विनियमन सख्त हो सकता है, जो क्रेडिट वृद्धि को बाधित कर सकता है।

हिंदुत्व बिहार की नई मुसीबत

इसे अपनी अस्मिता की तलाश करने की जरूरत
अनिल सिन्हा - 2018-04-02 09:36
बिहार ने पिछले 23 मार्च को 106 साल पूरे होने का जश्न मनाया। लेकिन ठीक इसी समय, राज्य के आठ शहरो मंे संाप्रदायिकता की आग भड़क उठी। इस आग से बचे रहने वाले बिहार में ऐसी स्थिति का आना राज्य के सामने नए खतरे का संकेत देता है। हर कसौटी पर पीछे चल रहे इस राज्य के पास दंगों और उपद्रव का दौर देखने का समय नहीं है। जातिवाद से झुुलस रहे इस राज्य में मजहबी जुनून इसे और भी पीछे ले जाएगा।