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ममता बनर्जी का करिश्मा ढलान पर

पंचायतों के चुनाव उनके भविष्य के लिए होंगे निर्णायक
कल्याणी शंकर - 2013-05-24 10:22
दो साल पहले जब ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल सरकार संभाली थी, तब उनसे उम्मीद की गई थी कि वे राज्य के खोये हुए गौरव को वापस लाएगी, वामपंथी शासन के दौरान आई मंदी की स्थिति को खत्म करेंगी और ममता शायद किसी ऐसी जादू की छड़ी का इस्तेमाल करेंगी, जिससे राज्य के लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। लेकिन क्या ऐसा हो सका है?

मोंटेक ने किया आधार के स्थाई पंजीकरण केंद्रों का शुभारंभ

एस एन वर्मा - 2013-05-24 09:08
नई दिल्ली। देश के प्रत्येक निवासी को एक विश्ष्टि पहचान और उसकी कहीं भी, कभी भी सत्यापन के लिए अंकीय आधार उपलब्ध कराने की अपनी संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने आज आधार समर्थित तीन नवीन सेवाओं का शुभारंभ किया और स्थायी पंजीकरण केद्रों के पहले समूह की स्थापना की घोषणा की।

भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार का मामला

नीतीश कार्ड विफल होने के बाद आडवाणी का गडकरी कार्ड
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-05-23 09:47
पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद जाहिर हो गया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश होना आसान नहीं है। लोकसभा में पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में अभी भी शामिल हैं। उधर लालकृष्ण आडवाणी ने भी मोदी के खिलाफ पूर्व पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को इस्तेमाल करने की रणनीति बनाने का संकेत दे दिया।

कौन होगा कांग्रेस का अगला प्रधानमंत्री

पी चिदंबरम या राहुल गाधी?
अमूल्य गांगुली - 2013-05-22 10:16
यह विचित्र लगता है, पर सच है कि पता नहीं चलता है कि कौन सा पल किसी व्यक्ति के पतन की शुरुआत साबित हो। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जो हाल के दिनों मंे पतन हुआ है, उससे तो ऐसा ही लगता है। कुछ समय पहले तक यह माना जा रहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद यदि कांगेस को सरकार गठन करने का मौका मिले, तो उस सरकार का गठन मनमोहन सिंह के द्वारा ही किया जाएगा। राहुल गांधी खुद कह रहे थे कि उनकी दिलचस्पी प्रधानमंत्री बनने मंे नहीं है।

कांग्रेस की छवि ठीक करने का एंटोनी का प्रयास विफल

इससे पार्टी के अंदर कलह बढ़ा
पी श्रीकुमारन - 2013-05-21 10:35
तिरुअनंतपुरमः कांग्रेस के संगठन में फेरबदल की कोशिश पार्टी की छवि को ठीक करने के लिए की गई थी, जो पार्टी के अंदर हो रही गुटबाजी के कारण बुरी तरह खराब हो चुकी थी। प्रदेश मंत्रिमंडल में सांप्रदायिक संतुलन भी बिगड़ा हुआ था। पार्टी संगठन मे फेरबदल कर उस असंतुलन से उपजी अशांति को भी कम करने की कोशिश की गई थी। लेकिन इस कदम से स्थिति और भी बिगड़ गई है और गुटबाजी और भी तेज हो गई है।

सीबीआई को स्वायत्तता के पीछे

ब्यूरो हमेशा सरकार के अधीन ही रही है
हरिहर स्वरूप - 2013-05-20 15:02
क्या सीबीआइ्र को वास्तव में स्वतंत्र बनाया जा सकता है और इसे पूरी स्वायत्ता दी जा सकती है? शायद कभी नहीं, क्योंकि राजनीतिज्ञ इसका इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वियों से हिसाब चुकता करने के लिए करते रहे हैं और आगे भी करता रहना चाहेंगे। जब तक कोई राजनीतिज्ञ सत्ता में है, वह सीबीआई के इस्तेमाल के खिलाफ हंगामा करता है और जब वह खुद सत्ता में चला आता है, तो फिर वह खुशी से उसी एजेंसी का बॉस बनना चाहता है।

ममता सरकार के दो साल

बंगाल में अभी भी रोशनी की कमी
आशीष बिश्वास - 2013-05-18 09:38
ममता बनर्जी सरकार के दो साल पूरे हो रहे हैं। तीसरे साल में इस सरकार के प्रवेश के साथ कहीं उत्साह का माहौल नहीं दिख रहा। दो साल पूरा होने का उत्सव मनाने का कोई कारण भी नहीं दिखाई पड़ रहा।

कांग्रेस लगातार पतन की ओर

मनमोहन सिंह का प्रशंसक कोई नहीं रहा
कल्याणी शंकर - 2013-05-18 09:35
मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल के 4 साल पूरे होने जा रहे हैं। जब पहले कार्यकाल का एक साल पूरा हुआ था, तो श्री सिंह ने खुद ही अपनी सरकार को 10 में से 6 अंक दिए थे। पर अब जब वे अपनी सरकार के 9 साल पूरे कर चुके हैं और दूसरे कार्यकाल का भी अंतिम साल शुरू होने वाला है, शायद ही कोई उन्हें 10 में से 4 अंक भी देना चाहेगा।

केरल सीपीएम की गांठ

क्या ताजा सहमति टिक पाएगी?
पी श्रीकुमारन - 2013-05-17 05:42
तिरुअनंतपुरमः केरल सीपीएम फिलहाल बेहतर स्थिति में है और वहां शांति है। पर सवाल यह है कि क्या पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा आपस में उलझ रहे नेताओं के बीच स्थापित की गई सहमति कितने दिनों तक कायम रहेगी? जिस फॉर्मूले के तहत समझौता हुआ है, उस फाॅर्मूले में सीपीएम के प्रदेश नेताओं का विश्वास बना रहेगा?

पटना की परिवर्तन रैली: क्या खोई सत्ता पा सकेंगे लालू?

उपेन्द्र प्रसाद - 2013-05-15 11:46
पटना में आयोजित विशाल परिवर्तन रैली का आयोजन करके लालू यादव ने साबित कर दिया है कि वे सत्ता से बाहर रहकर भी गांधी मैदान में लोगों की भारी भीड़ जुटा सकते हैं। जुटी हुई भीड़ के आकार को देखते हुए लालू की यह रैली सफल कही जाएगी। यह रैली निश्चय ही नीतीश कुमार द्वारा आयोजित रैली से बहुत बड़ी थी। सच कहा जाय, तो लालू का जनाधार अभी भी नीतीश के जनाधार से बहुत बड़ा है। यदि नीतीश अकेले लालू के खिलाफ मैदान में उतर गए, तो वे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के आगे कहीं भी टिक नहीं पाएंगे। इसका कारण बिहार की जाति की राजनीति है, जिसके उपज लालू और नीतीश दोनों हैं।