भारतीय अध्ययनदृष्टि के अनुसार शिक्षाक्षेत्र की पुनर्रचना
- 2013-04-07 07:25मनुष्य कुछ ज्ञान जन्म के समय ही अपने साथ लेकर आता है, जो उसके चेतन होने के कारण संभव हो पाता है। यह चेतना स्वयं में ज्ञान स्वरुप है जो शरीर के अंगों के संचालन का ज्ञान समटे रहती है। बच्चों का रोना, मुस्कुराना आदि इसी ज्ञान के कारण संभव होता है। परन्तु उसके बाद वह अनवरत ज्ञान अर्जित और संकलित करता रहता है - जो प्रथमत: अनुभवजन्य तथा बाद में चिंतनजन्य होता है। दोनों प्रकार से शिशु ज्ञानार्जन करते हुए और उनका उपयोग करते हुए अपनी आयु के विभिन्न पड़ावों की ओर बढ़ता जाता है। और फिर एक ऐसा पड़ाव आता है जब माता-पिता को निर्णय करना होता है कि वे अपनी संतान को आगे की शिक्षा के लिए पाठशाला भेजें।