कॉमनवेल्थ खेलों की आड़ में खेले जा रहे खेल की असलियत अब सामने आने लगी है। अभी तो खेल होने में लगभग तीन माह बाकी हैं और उससे पहले ही घोटालों की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। खेल अभी खेले भी नहीं गये और पारितोषिक के रूप में करोड़ों के वारे न्यारे हो गए। दिल थाम के बैठिए यह पारितोषिक अरबों में पहुंचनेवाला है। अधिकतर लोगों का मानना है कि देश में बड़े खेल आयोजन होने से देश में बाहर का पैसा आता है, देश के बुनियादी ढांचे का विकास होता है, दुनिया में देश का नाम रोशन होता है.... ये तीनों बातें अपनी जगह ठीक हैं। देश में बाहर से खूब पैसा आया है, बुनियादी ढांचे का विकास— बनने के साथ ही उखड़ती टाइलें, रिसते स्टेडियम और न जाने क्या... बेहतरीन ढंग से हो रहा है। रही बात देश के नाम रोशन की, वह तो हो ही रहा है। खेलों से पहले देश दुनियाभर में चर्चा में आ गया है। वैसे भी खेल खत्म होने के बाद कौन-सा चर्चा में आ जाता। पदकों के लिए हम तरसते ही रहते हैं अगर इस बार भी तरस गए तो कौन-सी आफत आ जाएगी।