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भारत

भाजपा एकदलीय शासन की तैयारी में

मोदी-शाह जोड़ी सहयोगी दलों को हाशिए पर धकेलना चाहती है
कल्याणी शंकर - 2014-11-14 12:16 UTC
25 साल पुराने शिवसेना के साथ अपने गठबंधन को अलविदा करने के भाजपा के फैसले से यह जाहिर है कि अब वह गठबंधन की राजनीति से अपने को मुक्त करना चाहती है और अपने दम पर ही देश की सरकार चलाना चाहती है। महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों मे प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति के गठबंधन युग को समाप्त करने की आहवान लोगों से किया था।
भारत

महाराष्ट्र की राजनैतिक उठापटक

शिवसेना को उद्धव की अपरिपक्वता का दंड भुगतना पड़ रहा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-11-13 11:57 UTC
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने अंततः अपने पुराने सहयोगी शिवसेना को अंगूठा दिखा ही दिया। जब चुनाव परिणाम सामने आ रहे थे और भाजपा को शिवसेना पर भारी बढ़त मिल रही थी, उसी समय यह संभावना दिखाई पड़ रही थी कि शायद भाजपा सरकार बनाने में शिवसेना की सहयोग ले ही नहीं। जब चुनाव के पहले शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन टूटा था, तब भी एक संभावना भाजपा के शरद पवार वाले एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की थी। इसलिए अभी जो कुछ महाराष्ट्र में हो रहा है, वह अप्रत्याशित नहीं है।
पाकिस्तान

अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं इमरान खान

उनके दोहरे गठबंधन को अब जनता का समर्थन नहीं
शंकर रे - 2014-11-12 10:51 UTC
पाकिस्तान में लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए चल रहा एक आंदोलन अब अपनी अंतिम सांस ले रहा है। देश के एक छोटे से तबके ने इस आंदोलन का चलाया था और इसका उद्देश्य बहुत ही पवित्र था। लेकिन इसमें छद्म लोकतंत्रवादी ताकतों का भी प्रवेश हो गया और उनके कारण यह आंदोलन लोकतंत्र के खिलाफ ही काम करने लगा था।
भारत

संयुक्त जनता दल के सामने समस्याएं ही समस्याएं

1977 से बिल्कुल अलग है 2014
अमूल्य गांगुली - 2014-11-11 11:19 UTC
हारे हुए महारथी फिर इकट्ठे हो रहे हैं। उनकी जीवटता को सलाम करना होगा। तीसरे मोर्चे की बार बार विफलता के बावजूद भी गैर कांग्रेस गैर भाजपा विकल्प के प्रयासों में वे अभी भी लगे हुए हैं। लगता है कि 1977 में लोकतंत्र बचाने के लिए की गई एकजुटता की सफलता अभी भी उनके हौसले को बढ़ाने का काम करती है।
भारत

तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों पर सबकी नजर

भाजपा को तीनों में बेहतर करने की उम्मीद
हरिहर स्वरूप - 2014-11-10 11:27 UTC
विधानसभा चुनावों का अगला दौर अब सामने है। झारखंड व जम्मू और कश्मीर के चुनाव दिसंबर में होंगे, तो दिल्ली के चुनाव अब शायद जनवरी में होंगे। इसका कारण यह है कि जब पहले दोनों राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई, उसके बाद ही दिल्ली विधानसभा को भंग किया गया। इसके कारण उसका चुनाव दो अन्य राज्यों के चुनाव के साथ नहीं करवाया जा रहा है।
भारत

चांडी सरकार को बार एसोसिएशन का झटका

इस संकट का लाभ उठाने को लेकर सीपीएम विभाजित
पी श्रीकुमारन - 2014-11-08 11:00 UTC
तिरुअनंतपुरमः बार आउनर एसोसिशन के एक सदस्य के रहस्योद्घाटन के बाद केरल सरकार का संकट बढ़ गया है। यह रहस्योद्घाटन प्रदेश के वित्तमंत्री के एम मणि के खिलाफ हुआ है। श्री मणि केरल कांग्रेस(मणि) के अध्यक्ष भी हैं और वे सत्तारूढ़ यूडीएफ के एक बड़े स्तंभ हैं।
भारत

वासन के इस्तीफे से कांग्रेस को लगा झटका

मूपनार के बेटे पर भाजपा डाल सकती है डोरे
कल्याणी शंकर - 2014-11-07 12:46 UTC
तमिलनाडु में कांग्रेस का विभाजन 129 साल पुरानी इस पार्टी के लिए संकट पैदा करने वाला है। हालांकि कांग्रेस के आलाकमान ने उस विभाजन को गुटीय संघर्ष का नतीजा बताया है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसका असर प्रदेश की ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा।
भारत

बढ़ती ही जा रही हैं ममता की समस्याएं

मुकुल राय के कद में कटौती ने मामले को और भी जटिल बनाया
आशिष बिश्वास - 2014-11-06 11:01 UTC
कोलकाताः पिछले महीने तृणमूल कांग्रेस की उच्च स्तरीय बैठक का नतीजा बहुत ही निराशाजनक रहा था।

बढ़ रहा है भारतीय वामपंथियों का संशय

कांग्रेस के बिना भाजपा से मुकाबला नहीं हो सकता
अमूल्य गांगुली - 2014-11-05 10:53 UTC
भारत में साम्यवाद का इतिहास राष्ट्रीय स्तर पर रणनैतिक गलत गणनाओं का इतिहास है और इसके कारण राज्य स्तर पर रणनीति अपनाने में गलतियां हुई हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि वामपंथी, जहां केन्द्र की राजनीति में हाशिए पर आ गए हैं, वहीं उनके मूल वैचारिक प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी ने भारी सफलाएं हासिल की हैं।
भारत

अब दिल्ली में आमचुनाव

आम आदमी पार्टी को एक और मौका
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-11-04 10:41 UTC
भारतीय जनता पार्टी द्वारा सरकार गठित करने से इनकार करने के बाद अब दिल्ली के मतदाताओं के सामने एक बार फिर अपनी सरकार चुनने की चुनौती खड़ी हो गई है। पिछले साल हुए चुनाव में दिल्ली के लोगों ने किसी पार्टी को सरकार चलाने का जनादेश नहीं दिया था और कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल की अल्पमत सरकार बनी थी। केजरीवाल सरकार के इस्तीफे के बाद ही यह साफ हो गया था कि बिना चुनाव के अथवा बिना गंदी राजनीति के नई सरकार नहीं बन सकती और आमचुनाव ही एकमात्र रास्ता बच गया था। बेहतर तो यही होता कि अरविंद केजरीवाल सरकार की सिफारिश मानते हुए उसी समय दिल्ली की विधानसभा भंग कर दी जाती और लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी करवा दिए जाते। पर न तो उस उपराज्यपाल नजीब जंग ने और न ही उस समय की कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने विधानसभा भंग कर चुनाव करवाने को कोई फैसला लिया। शायद कांग्रेस को लग रहा था कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता को दिल्ली से मुक्त रखकर देशभर में चुनाव लड़ने और प्रचार करने का मौका दिया जाय, जिससे कांग्रेस विरोधी मतों का विभाजन हो और फिर उससे कांग्रेस का फायदा हो। इसके अलावा कांग्रेस नेताओं को यह भी लग रहा होगा कि दिल्ली में फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार को समर्थन देकर वह आम आदमी पार्टी के विजयी सांासदों का समर्थन लेकर केन्द्र में सरकार बना सकती है।