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संदर्भ : बढ़ता हुआ आतंकवाद

अब मुस्लिम समाज के कर्तव्य

राजकिशोर - 2008-09-30 10:52
जब भी कोई आतंकवादी घटना होती है, टीवी पर, रेडियो पर, अखबारों में कुछ मुस्लिम नाम आना शुरू हो जाते हैं। पहले पत्रकारिता का एक नियम होता था कि दो समुदायों के बीच हिंसा होने से किसी भी समुदाय का नाम नहीं छापा जाता था। इसके पीछे उद्देश्य यह होता था कि सामप्रदायिक हिंसा की आग अन्य क्षेत्रों में न फैले। अब भी इस नियम का पालन होता है। कभी-कभी नहीं भी होता।
भारतीय न्यायालयों में भ्रष्टाचार

फिर न्यायाधीश ने सुनवाई छोडी

भविष्य निधि घोटाले में एक और नया मोड़
ज्ञान पाठक - 2008-08-08 07:52
नई दिल्ली: लगभग 23 करोड़ रुपये के भविष्य निधि घोटाले की सुनवाई करने के मामले में पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने स्वयं को अलग कर लिया था, और अब दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी एन अग्रवाल ने भी वैसा ही किया। अब किसी अन्य पीठ को इसकी सुनवाई करनी पड़ेगी जिसपर घोटाले के अभियुक्त न्यायाधीशों को बचाने का आरोप न हो या न लग पाये।
सबसे भ्रष्ट और निकम्मी सरकार

मनमोहन सिंह की छवि पर बट्टा

किसके संरक्षण में हैं बेअंकुश मंत्री और अधिकारी
विष्णुगुप्त - 2008-04-30 17:20
इस समय केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली और वामपंथियों द्वारा समर्थित संप्रग सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट, निक्कमी, विफल और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्धारण में भी दिशाहीन सरकार है। मनमोहन सिंह की कैबिनेट में एक से बढ़कर एक भ्रष्ट और आपराधिक छवि वाले मंत्री हैं। उन पर न तो मनमोहन सिंह का नियंत्रण है और न ही सत्ता की असली केन्द्र सोनिया गांधी का।
भारतीय क्रिकेट की दुर्दशा पर पूरा देश हैरान

देख तमाशा क्रिकेट का

हरभजन दोषी है और भारतीय क्रिकेट बोर्ड तथा टीमों को खरीदने वाले कारपोरेट घराने भी
विष्णु गुप्त - 2008-04-28 04:38
भद्रजनों का खेल माने जने वाले क्रिकेट को नौटंकी का तमाशा बना दिया गया है। पैसा कमाना एकमेव लक्ष्य बना लिया गया है। आखिर क्यों राजनीतिज्ञ, व्यापारी और नौकरशाह क्रिकेट का भाग्यविधाता बने हुए हैं? इस प्रश्न का उत्तर भी क्रिकेट प्रेमियों को चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने रोकी दोषियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई

न्यायालय, न्याय और नांदीग्राम

लेकिन जारी रहेगी सीबीआई की कार्यवाही, गोली चालन ‘अनुचित’ की टिप्पणी हटाने से इनकार
ज्ञान पाठक - 2007-12-13 13:26
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति बैठते हैं और उनके पास, हम मानकर चलते हैं कि ज्यादा विवेक है। हो सकता है कि सीबीआई को पश्चिम बंगाल पुलिस के दोषी अधिकारियों और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरु करने से रोकने के पीछे भी कोई राज हो और वह राज भी मानवता के उच्च मानदंड के अनुकूल हो। लेकिन ऐसा निर्णय अद्भुत है और कई कारणों से अद्भुत।
संप्रग सरकार के कपटी आश्वासनों पर भरोसा नहीं

संसद में छल बल और बेवसी

भारतीय विपक्ष भी आशंकित और सत्तापक्ष के सहयोगी गठबंधन साथी भी
ज्ञान पाठक - 2007-12-06 11:50
कल राज्य सभा में भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि भारत अमेरिकी नाभिकीय समझौते के लागू होने के बाद सरकार सदन की भावना का ख्याल रखेगी। आखिर ऐसा करने का राज क्या है और उनकी बातों पर क्या सोचा जाना चाहिए?
कांग्रेस में चापलूसी और निकम्मेपन का घुन

राहुल का नुस्खा और इलाज

नब्ज पकड़ी पर नीयत ठीक हो तो बात बने
ज्ञान पाठक - 2007-11-22 16:26
काग्रेस की बीमारी क्या है? संगठन में क्या - क्या परिवर्तन करने की आवश्यकता है? पार्टी को जीवंत कैसे बनाया जाये?... आदि - आदि। ऐसे सवाल नये नहीं हैं। नया है तो यह कि अब राहुल गांधी को मैदान में उतारा गया है और उन्होंने कुछ बातें भी कहीं, नुस्खा भी बताया। लेकिन...
राहुल ने पकड़ी यूपी कांग्रेस की असल बीमारी

लेकिन इलाज का सवाल

मुर्दा हो चुकी कांग्रेस क्या जिंदा भी हो सकेगी
हिसाम सिद्दीकी - 2007-11-21 12:57
आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी राहुल गांधी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की असल बीमारी समझ चुके है। यह अंदाजा उन्हीं की बातों से पिछले दिनो लखनऊ में उस वक्त लगा जब वह मीडिया से मुखातिब हुए। पार्टी का मर्ज जानकर उन्होंने यह तो जाहिर कर दिया कि वह एक सियासी डाक्टर बन चुके है, लेंकिन अस्ल सवाल यह है कि क्या वह इतने माहिर हैं।
अप्रत्याशित विदेशी धनागम से भारत को खतरा

भोजन की घटती उपलब्धता

वित्त मंत्री को ऐसे आर्थिक विकास पर गर्व
ज्ञान पाठक - 2007-11-12 18:53
भारत के वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने देश के आर्थिक विकास की एक तस्वीर पेश करते हुए देश के आर्थिक संपादकों के एक सम्मेलन में कहा कि उन्हें और उनकी सरकार को गर्व है। उन्होंने कहा कि ऐसा गर्व क्षमा योग्य है। लेकिन क्या भारत की जनता उन्हें क्षमा कर सकेगी विशेषकर वे जिनके लिए भोजन की उपलब्धता घटी है? उन्होंने देश की विकास दर सकल घरेलू उत्पाद का 9.4 प्रतिशत बताया लेकिन यह भी स्वीकार किया कि प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता कम होती जा रही है। सवाल है कि ऐसे विकास का हमारी आम जनता क्या करेगी?

ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से

यह धोखा है कामरेड

जनविरोधी नीतियों के साथ भी और विरोध में भी !
System Administrator - 2007-11-11 06:41
सोचने के लिए मजबूर करने वाली बात यह है कि केन्द्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की जो सरकार चल रही है वह तो वामपंथी राजनीतिक पार्टियों के समर्थन पर ही चल रही है। यदि वामपंथी राजनीतिक पार्टियों को यह ज्ञान है कि सरकार की नीतियां “जन विरोधी और श्रमिक विरोधी” हैं तो वे ऐसी सरकार को समर्थन ही क्यों दे रहे हैं।