सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नेतृत्व का नयी बैंकिंग के साथ तालमेल नहीं
तेजी से बदलते भारतीय समाज के साथ पुरानी बैंकिंग की है असंगति
2022-11-24 10:39
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पहले कड़ाही में और फिर आग में। ठीक यही हालत है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रबंध निदेशकों और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के कार्यकाल के बारे में। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में नेतृत्व के कार्यकाल के बारे में बारहमासी शिकायत यह रही है कि शीर्ष पर लगातार बदलाव किया जाता रहा है जिससे अस्थिरता बढ़ी तथा निरंतरता में कमी हुई। अब ऐसा लगता है कि पेंडुलम दूसरे चरम पर चला गया है, स्थिरता की आवश्यकता तो है परन्तु स्थायित्व लाने का काम अत्यन्त बोझिल हो गया है और टिकाऊ भी नहीं जान पड़ता।