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बंगाल की भयावह तस्वीर तो चुनाव के बाद सामने आएगी

भाजपा नेताओं की सत्ता की हवश उस तबाही का कारण होगी
अनिल जैन - 2021-04-23 10:36 UTC
पश्चिम बंगाल में जहां इस समय विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, कोरोना का संक्रमण बुरी तरह फैल चुका है। चूंकि राज्य का समूचा प्रशासन चुनाव आयोग के अधीन काम कर रहा है, लिहाजा संक्रमण और मौतों के सही आंकडें सामने नहीं आने दिए जा रहे हैं। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि उससे सटे बिहार और झारखंड में भी हालात बेहद भयावह है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के लिए भीड इन दोनों राज्यों से भी जुटाई जा रही है। इन तीनों ही राज्यों की सही तस्वीर अभी मीडिया भी पेश नहीं कर रहा है, क्योंकि उसका पूरा ध्यान उन ‘हत्यारी’ चुनावी रैलियों और रोड शो का सीधा प्रसारण करने में लगा है, जिनका आयोजन ‘ऐतिहासिक बेशर्मी’ के साथ किया जा रहा है।

कोरोना से निबटने की कोई समझ ही नहीं है मोदी के पास

वे क्षुद्र राजनीति और चुनाव प्रचार में ही उलझे हुए हैं
डॉ अरुण मित्रा - 2021-04-22 11:27 UTC
प्रधानमंत्री ने कुंभ में तीर्थयात्रियों को वापस जाने की अपील करने में बहुत देर कर दी है कि कुंभ को अब प्रतीकात्मक होना चाहिए। क्षति पहले ही हो चुकी है। यदि वर्तमान में कुंभ के लोग जगह खाली करना शुरू करते हैं, तो क्षेत्र के पूरी तरह से मुक्त होने में कई दिन लग सकते हैं। ये लोग पूरे देश से आए हैं और अब घर लौटकर वे वायरस को ग्रामीण इलाकों में भी ले जाएंगे, जहां आज तक इस बीमारी का कम प्रकोप है।

पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश में कोरोना का सुपर स्प्रेडर बन सकता है

सीपीआई अतुल अंजान ने कोविड प्रबंधन के घ्वस्त होने के लिए योगी सरकार को कोसा
प्रदीप कपूर - 2021-04-21 10:18 UTC
लखनऊः भाकपा के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान ने महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश में अराजक स्थिति के लिए राज्य प्रशासन के पतन को जिम्मेदार ठहराया है। अतुल अंजान ने कहा कि जब इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दूसरी लहर की गंभीरता के बारे में चेतावनी दी थी तो स्थिति से निपटने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से कोई तैयारी नहीं की गई।

अनुशासनहीनता हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गई है

हमें अपने इस चरित्र को बदलना पड़ेगा
एल एस हरदेनिया - 2021-04-20 09:49 UTC
जब नेपोलियन रूस से हार कर वापस आया तो उससे हार का कारण पूछा गया। उसका उत्तर था, ‘मुझे लेफ्टिनेंट जनरल फ्रास्ट ने हराया है’ (फ्रास्ट बाईट अत्यधिक बर्फीली सर्दी में होने वाली खतरनाक बीमारी है)। इसी तरह यदि कोई मुझसे पूछे कि कोरोना की भयावह दूसरी लहर का मुख्य कारण क्या है? तो मेरा उत्तर होगा ‘अनुशासनहीनता’। मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि अनुशासनहीनता हमारे खून में प्रवेश कर गयी है। किसी देश में अनुशासन है या नहीं इसका अंदाजा उस देश की सड़कों को देखकर लगाया जा सकता है। हमारे देश में अक्सर यह देखने को मिलता है कि बत्ती लाल होने के बावजूद वाहन चालक उसकी परवाह किये निकल रहे हैं। समाचारपत्रों में छपी एक खबर के अनुसार मोटर साइकिल पर सवार चार लोगों की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। इस खबर से यह स्पष्ट होता है कि हमारे देश में चार लोग मोटर साइकिल पर बैठते हैं। सड़कों पर कभी अनुशासन का पालन नही होता है।

चुनाव आयोग क्या सरकार का ‘आज्ञाकारी सेवक’ है?

केरल की राज्यसभा की तीन सीटों के चुनाव का मामला
अनिल जैन - 2021-04-19 10:28 UTC
पिछले छह-सात सालों के दौरान केंद्र सरकार की करतूतों से वैसे तो देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं की साख और विश्वसनीयता पर बट्टा लगा है, लेकिन चुनाव आयोग की साख तो पूरी तरह ही चौपट हो गई है। हैरानी की बात यह है कि अपने कामकाज और फैसलों पर लगातार उठते सवालों के बावजूद चुनाव आयोग ऐसा कुछ करता नहीं दिखता, जिससे लगे कि वह अपनी मटियामेट हो चुकी साख को लेकर जरा भी चिंतित है। उसकी निष्पक्षता का पलडा हमेशा सरकार और सत्तारूढ दल के पक्ष में झुका देखते हुए अब तो कई लोग उसे चुनाव मंत्रालय और केंचुआ तक तक कहने लगे हैं।

अखिलेश यादव अब आक्रामक दलित कार्ड खेल रहे हैं

बसपा के पतन के बाद वह दलितों को अपने साथ लाने की जबर्दस्त कोशिशें कर रहे हैं
प्रदीप कपूर - 2021-04-17 10:50 UTC
लखनऊः समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूरे राज्य में 130 वीं आंबेडकर जयंती मनाकर दलितों को अपने खेमे में लाने के लिए आक्रामक दलित कार्ड खेला है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देशों के बाद, समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अंबेडकर की प्रतिमा के पास दीया जलाकर राज्य भर में अंबेडकर जयंती मनाई। हजारों समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं ने राज्य में दलित बस्तियों का दौरा किया और दलितों के साथ बातचीत की और उन्हें दीया और मोमबत्तियाँ दीं।

कोराना के बढ़ते प्रकोप के बीच पश्चिम बंगाल का चुनाव

भाजपा का चुनावी आकलन गड़बड़ाता जा रहा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-04-16 10:55 UTC
पश्चिम बंगाल के चुनावों को आठ चक्रों में कराने को भारतीय जनता पार्टी का फैसला उसके खिलाफ ही जा रहा है। यह सच है कि मतदान आठ चक्र में करवाने का फैसला औपचारिक रूप से भारत के निर्वाचन आयोग का है, लेकिन किसी को इसमें संदेह नहीं कि यह फैसला आयोग ने भाजपा की इच्छानुसार ही लिया था। इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी का आकलन यह था कि लंबे समय तक चुनाव प्रचार के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अधिक से अधिक सभाओं में भाषण करने का मौका मिलेगा और अपने भाषणों से लोगों को मोहित कर वे भारतीय जनता पार्टी की जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

पश्चिम बंगाल के 2021 का चुनाव 1987 के चुनाव से मिलता जुलता है

तब राजीव गांधी ने एक बड़ी चूक कर दी थी, इस बार मोदी-शाह ने बड़ी चूक कर दी है
नित्य चक्रवर्ती - 2021-04-15 11:43 UTC
पश्चिम बंगाल में मौजूदा विधानसभा चुनाव प्रचार और 1987 के चुनाव प्रचार कुछ समानताएं दिख रही है। 1987 के विधानसभा चुनावों में की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में सक्रियता दिखा रहे हैं। लेकिन अभिनेता अलग हैं। 1987 में, कांग्रेस के प्रधान मंत्री के रूप में राजीव गांधी ने चुनाव को एक व्यक्तिगत चुनौती के रूप में लिया था। तब मुख्यमंत्री ज्योति बसु की वाम मोर्चा सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि मौजूदा विधानसभा चुनावों में, वाम मोर्चा की छोटी भूमिका है।

त्रिपुरा में लेफ्ट को नया नेतृत्च ही उसे फिर जिंदा कर सकता है

सीपीएम नेतृत्व ने आदिवासियों की आकांक्षा को लंबे समय से नजरअंदाज किया है
सागरनील सिन्हा - 2021-04-14 11:00 UTC
इस समय देश में वामपंथी राजनीति अस्तित्व संकट के दौर से गुजर रहा है। वामपंथ का नेतृत्व विकास के बारे में और बात करने की कोशिश करता है, युवाओं को रोजगार प्रदान करता है और गरीबों की सामाजिक स्थितियों में सुधार करता है। हालांकि, जब वोट की बात आती है, तो वामपंथी वोट पाने में विफल होते हैं। त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनाव में सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चा अपना खाता खोलने में भी विफल रहा। इससे एक बार फिर प्रमाणित होता है कि वामपंथ गंभीर संकट में है।

चालू वित्त वर्ष की विकास दर का अनुमान लगाना कठिन

कोरोना की नई लहर अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती
नंतू बनर्जी - 2021-04-13 12:25 UTC
पिछले दो सप्ताह में देश भर में कोविद के मामलों में अचानक उछाल से भारत के चालू वित्त वर्ष में आर्थिक सुधार की संभावना को खतरा है। पिछले महीने ही, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और रिजर्व बैंक सहित कई राष्ट्रीय और वैश्विक संस्थानों ने भारत की अर्थव्यवस्था में 10-12.5 प्रतिशत की संभावित वृद्धि का अनुमान लगाया था। दुर्भाग्य से, कोरोनवायरस की नई लहर इन आशाजनक अनुमानों को संदिग्ध बना दिया है। क्या अर्थव्यवस्था को फिर से लॉकडाउन, आंचलिक मुद्दों, औद्योगिक बंदी, यात्रा प्रतिबंधों और वाणिज्यिक व्यवधानों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा जैसा कि पिछले साल हुआ था?