Loading...
 
Skip to main content

View Articles

प्रशांत किशोर का राजनैतिक पतन

उनसे गलती कहां हुई
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-03-16 09:35 UTC
जब प्रशांत किशोर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने जनता दल(यू) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था, तो चर्चा यह होने लगी थी कि किशोर को नीतीश अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाने जा रहे हैं। वैसे उस दल में अनेक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव हैं, इसलिए एक और उपाध्यक्ष बन जाना कोई खास मायने नहीं रखता। सच तो यह है कि जनता दल (यू) के कितने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और वे कौन कौन हैं, इसकी जानकारी जनता दल(यू) के जानकार कार्यकत्र्ताओं को भी नहीं। प्रदेश स्तर पर तो उनकी संख्या सौ मे पहुंच जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर संख्या कम है, लेकिन कितने लोग उस पद पर हैं, इसकी जानकारी शायद बिहार प्रदेश जनता दल(यू) के उपाध्यक्ष पद पर बैठे सभी लोगों को नहीं होगी।

ग्लोबल आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा चालबाज चीन

वैश्विक आतंकवाद पर कब साफ होगी नीति और नीयत
प्रभुनाथ शुक्ल - 2019-03-15 10:39 UTC
वैश्विक आतंकवाद पर दुनिया कितनी संजीदा है इसका अंदाजा संयुक्त राष्ट सुरक्षा परिषद में चीन की चालों से चल गया है। परिषद के स्थायी स्दस्य देशों अमेरिका, ब्रिेटेन, फ्रांस और रसिया को ठंेगा दिखाते हुए चालबाज चीन ने यह बता दिया कि ग्लोबल आतंकवाद पर दुनिया के आंसू सिर्फ घड़ियाली हैं, जमींनी हकीकत दूसरी है। चीन चैथी बार वीटो का इस्तेमाल करते हुए भारत की कूटनीति पर पानी फेर दिया। भारत और उसका मित्र राष्ट अमेरिका चाह कर भी पाकिस्तानी आतंकी एंव जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक अजहर मसूद को अंतरराष्टीय आतंकवादी घोषित कराने में नाकामयाब रहे। हालांकि भारत चीन की फितरत से पूर्व परिचित था। आतंकी मसूद पर सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास हो जाता तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाती। वह किसी देश की यात्रा नहीं कर पाता। हथियार नहीं खरीद सकता था। उसकी संपत्तियां जब्त हो जाती। पुलवामा हमले के बाद भारत को पूरा भरोसा था कि वह अपनी कूटनीति के जरिए दुनिया के देशों को वैश्विक आतंकवाद की भयावहता समझाने में कामयाब होगा और मसूद को अंतर राष्टीय आतंकी घोषित करवा पाएगा, चालाबाज चीन खुद मसूद से डर गया और चैथी बार इस पर तकनीकी अडंगा लगा दिया। जबकि पूरी दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है। जिसमें परिषद से जुड़े सभी स्थाई और अस्थाई देश शामिल हैं।

कांग्रेस से मायावती क्यों डरती है?

अपने राजनैतिक अंत की ओर बढ़ रही हैं बसपा सुप्रीमो
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-03-14 07:51 UTC
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा नहीं है, क्योंकि मायावती नहीं चाहती थीं कि कांग्रेस उनके गठबंधन के साथ आए। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने साथ कांग्रेस को भी रखना चाहते थे और इसके लिए त्याग करने को भी तैयार थे। त्याग से उनका मतलब समाजवादी पार्टी का कम सीटों पर लड़ने से था। वैसे उन्होंने त्याग तो मायावती की बसपा के साथ गठबंधन करके भी किया। समाजवादी पार्टी बसपा से बड़ी पार्टी है। चुनाव में उसे बसपा से ज्यादा वोट भी मिले हैं और ज्यादा सीटें भी। लोकसभा चुनाव में बसपा का एक उम्मीदवार भी नहीं जीत पाया था, जबकि समाजवादी पार्टी के पांच उम्मीदवार जीत गए। उसके बाद दो उपचुनावों में भी सपा की जीत हुई। विधानसभा के आम चुनाव में बसपा के मात्र 19 विधायक विधानसभा मे आए, तो समाजवादी पार्टी 47 विधायक सदन के सदस्य बने।

2019 के चुनाव में कांग्रेस को सोनिया की जरूरत

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा के सेवानिवृत होने का यह सही समय नहीं
कल्याणी शंकर - 2019-03-13 19:40 UTC
अपना छठा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह तैयार, 72 वर्षीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी के एक बार फिर चुनाव लड़ने पर चल रही अटकलबाजी से समाप्त हो गई है। पिछले एक साल से अफवाहें चल रही थीं कि सोनिया गांधी अपनी अस्वस्थता के कारण सक्रिय राजनीति से हट गई हैं और अपना चार्ज अपने बेटे को पूरी तरह दे चुकी हैं। यह भी कहा जा रहा था कि अपने बेटे राहुल को तो उन्होंने अध्यक्ष पद दे ही दिया है और अब उनकी बेटी प्रियंका गांधी भी सक्रिय राजनीति मंे आ गइ्र हैं, तो फिर अब सोनिया राजनीति को अलविदा कह देंगी।

घोषित हुई चुनाव की तारीखें

पर विपक्षी एकता अभी भी दूर की कौड़ी
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-03-12 10:00 UTC
निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तारीखें घोषित कर दी हैं और चुनाव में भाजपा को पराजित कर सत्ता से बाहर करने के लिए ताल ठोकने वाले विपक्षी पार्टियों के नेता अभी भी सिर्फ ताल ही ठोंक रहे हैं। इस बात को उनको अहसास बहुत पहले हो चुका है कि बिना विपक्षी एकता के नरेन्द्र मोदी और उनकी भाजपा को सत्ता से बाहर नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभी भी देश में नरेन्द्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं। यह सच है कि 2014 जैसी लोकप्रियता अब उनकी नहीं रही और उस चुनाव की सफलता को वे बहुत संभव है कि दुहरा भी नहीं पाएं, लेकिन यह भी सच है कि फिर से सरकार बनाने के लिए 2014 जैसी सफलता जरूरी भी नहीं है। यदि भाजपा को दो सौ सीटें आ गईं और उनके सहयोगी दलों को 40 सीटें भी आ गईं, तो सरकार बनाकर उसे स्थायित्व देने में नरेन्द्र मोदी को बहुत मशक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

क्या वाकई भूतिया है राजस्थान विधानसभा

राजस्थान विधानसभा का भूतिया कनैक्शन
योगेश कुमार गोयल - 2019-03-11 10:19 UTC
जिस राजस्थान विधानसभा के भीतर निर्वाचित जनप्रतिनिधि अर्थात् विधायक के रूप में प्रवेश करने के लिए हर पांच साल बाद प्रत्याशियों के बीच जोर आजमाइश होती है, आपको जानकर हैरानी होगी कि उसी विधानसभा को पिछले कई वर्षों से भूतिया माना जाता रहा है। गत वर्ष दिसम्बर माह में नई विधानसभा के गठन के बाद से विधानसभा को अपशकुनी मानने वाले विधायकों को फिर से विधानसभा भवन में भूत का भय सताने लगा है। पिछले साल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा को भूतिया मानने वाले कुछ विधायकों ने तो इस बात पर खासा जोर भी दिया था कि 15वीं विधानसभा के गठन से पहले ही यज्ञ-हवन इत्यादि के जरिये विधानसभा भवन की शुद्धि की जानी चाहिए ताकि सभी 200 विधायक विधानसभा की कार्यवाही में सम्मिलित हो सकें।

आतंक की ‘जमात’ पर सरकारी ताला

अनुचित है इस कदम का विरोध
योगेश कुमार गोयल - 2019-03-08 08:59 UTC
केन्द्र सरकार द्वारा पुलवामा हमले के बाद से ही आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए लगातार कड़े कदम उठाए जा रहे है। इसी कड़ी में पहले घाटी में अलगाववादी नेताओं से उनकी सुरक्षा छीनने के बाद अब अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत 5 साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। इससे पहले भी दशकों पहले दो बार इस संगठन को प्रतिबंधित किया गया था। पहली बार 1975 में जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा इस पर दो साल का प्रतिबंध लगाया गया था और दूसरी बार केन्द्र सरकार द्वारा 1990 में इसे प्रतिबंधित किया गया था, जो दिसम्बर 1993 तक जारी रहा। यह ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की तरह का ऐसा संगठन है, जिसका प्रमुख उद्देश्य राजनीति में भागीदारी करते हुए राज्य में इस्लामी शासन की स्थापना करना माना जाता है।

मुस्लिम राष्ट्रों की महफिल में खुली भारत के ढोल की पोल

विशेष अतिथि बनाकर भी भारत का किया अपमान
अनिल जैन - 2019-03-07 10:22 UTC
पुलवामा में जैश-ए-मुहम्मद के दहला देने वाले फिदायीन हमले के बाद उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान की सरजमीं से संचालित हो रहे आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी तीखी प्रतिक्रिया होगी। यह सही है कि अमेरिका और रूस सहित दुनिया के तमाम देशों ने पुलवामा हमले की निंदा की है, लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को सीधे तौर पर किसी ने जिम्मेदार नहीं ठहराया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी एक सप्ताह की ऊहापोह के बाद जो निंदा प्रस्ताव पारित किया, उसमें पाकिस्तान का कहीं उल्लेख नहीं हुआ। ज्यादातर मुस्लिम राष्ट्र ही नहीं, बल्कि चीन भी पूरी तरह इस समय पाकिस्तान के साथ हैं।

दिग्विजय सिंह के बयानों से भाजपा को फायदा

मध्यप्रदेश के मंत्रियों के गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी भी जारी
एल. एस. हरदेनिया - 2019-03-06 16:18 UTC
भोपालः पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और राज्य के दो कैबिनेट मंत्रियों के विवादास्पद बयान ने भाजपा को कांग्रेस पर एक हमला करने का मौका दिया है।

विश्वविद्यालयों में तेरह प्वाइंट रोस्टर विवाद

हल नियुक्तियों को विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर करना है
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-03-05 10:23 UTC
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर चल रहा विवाद एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। यदि इस मुद्दे को केन्द्र सरकार ने जल्द हल नहीं किया, तो चुनाव में उसको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि यह आरक्षण से जुड़ा मसला है और सुप्रीम कोर्ट ने विषयवार आरक्षण के पक्ष में जो फैसला किया है, उससे आरक्षित वर्गो के अभ्यर्थियों को नुकसान हो रहा है। वे सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ बहुत दिनों से आंदोलन कर रहे हैं।